PM Modi ने जिन आदि शंकराचार्य की मूर्ति का अनावरण किया उनका इतिहास भी जान लीजिये
Adi Shankaracharya: केदारनाथ धाम में आदि शंकराचार्य की 13 फ़ीट ऊँची और 35 टन वजनी मूर्ती स्थापित की गई है
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को केदारनाथ धाम में आदि शंकराचार्य जी की मूर्ति का अनावरण किया। इस विशालकाय मूर्ति की ऊंचाई 13 फ़ीट है और यह 35 टन वजनी है। केदारनाथ मंदिर की स्थापना आदि शंकराचार्य द्वारा ही की गई थी। साल 2013 में केदरनाथ धाम में आये प्रलय के बाद आदि शंकराचार्य की पुरानी मूर्ति खंडित हो गई थी जिसके बाद अब जाकर शंकराचार्य की मूर्ति की स्थापना की गई है। करीब 130 टन वजनी विशालकाय चट्टान को तराशने के बाद 35 टन की मूर्ति को आकर दिया गया है। ये मूर्ति वहीं स्थापित की गई है जहां आदि शंकराचार्य ने समाधी ली थी। सनातन धर्म में आदि शंकराचाय का महत्त्व सर्वोपरि रहा है आइये जानते हैं उनका इतिहास।
कौन थे आदि शंकराचार्य (Who was Adi Shankaracharya)
आदि शंकराचार्य को भगवान शिव का अवतार माना जाता है, आदि शंकराचार्य का जन्म 507-508 ईसा पूर्व (B.C) में केरल के कालपी/कालड़ी गाँव में हुआ था उनके पिता शिवगुरु भट्ट और माता का नाम विशिष्टा देवी था. ऐसा कहा जाता है की शिवगुरु और उनकी पत्नी ने पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान शिव जी की आराधना की जिसके बाद भोलेनाथ ने उनकी तपस्या दे प्रशन्न होकर उन्हें पुत्र का वरदान दिया था. लेकिन उन्होंने कहा था की ये पुत्र सर्वज्ञ होगा लेकिन अल्पायु होगा, यदि दीर्घ पुत्र की कामना है तो वह सर्वज्ञ नहीं होगा। जिसपर शिवगुरु ने अल्पायु सर्वज्ञ पुत्र का वरदान माँगा था। इसके बाद भोलेनाथ ने स्वयं उनके घर जन्म देने का वरदान दिया था। वैशाख शुक्ल पंचमी के दिन आदि गुरु का जन्म हुआ और उनका नाम शंकर रखा गया।
वेदों का था कंठस्त ज्ञान
आदि शंकराचार्य से उनके पिता का साया काफी कम उम्र में उठ गया, उनकी माँ विशिष्टा देवी ने उन्हें वेदों का अध्यन करने गुरुकुल भेज दिया, शंकराचार्य को पहले से ही वेद,पुराण,उपनिषद,रामायण,महाभारत सहित सभी सनातन धमग्रंथ कंठस्त याद थे। शंकराचार्य जब सिर्फ 2 साल के थे तभी से उन्हें धर्म और उपनिषदों का ज्ञान था, 7 वर्ष उन्होंने सन्यास जीवन अपना लिया
माँ के लिए मोड़ दिया था नदी का रुख
शंकराचार्य को जगत गुरु बनाने का श्रेय उनकी माँ को जाता है, वो आदि शंकराचार्य अपनी माँ की हमेशा सेवा करते थे, उनकी माँ को रोज़ स्नान करने के लिए गाँव से दूर बहने वाली नदी तक जाना पड़ता था लेकिन मातृ भक्ति में जगत गुरु ने नदी का रुख अपने गाँव की ओर मोड़ दिया था।
ऐसे बने सन्यासी
एक कथा के अनुसार शंकराचार्य ने अपनी माँ से सन्यासी बनने की इक्षा ज़ाहिर की जिसपर उन्होंने ऐसा करने से मन कर दिया, जिसके बाद जगद्गुरु ने अपनी माँ को नारद मुनि के सन्यासी बनने की घटना का उदाहरण दिया के कैसे नारद सन्यासी बनना चाहते थे, लेकिन उनकी माँ ने उन्हें मना कर दिया था और सर्प दंश से उनकी माँ की मृत्यु हो गई थी. यह जान कर विशिष्टा देवी को दुःख हुआ और उन्होंने शंकराचार्य से यह कहते हुए अनुमति दी के उनके ऊपर हमेशा मातृछाया रहेगी। शंकराचार्य ने भी अपनी माँ को वचन दिया था कि वो अंतिम समय तक उनके साथ रहेंगे। जव उनकी माँ परलोक सिधार गईं तब शंकराचार्य उनका अंतिम संस्कार करने गए लेकिन लोगों ने इसका विरोध किया, शंकराचार्य ने कहा जब मैने माँ को वचन दिया था तब मैं सन्यासी नहीं था। लेकिन उनका किसी ने साथ नहीं दिया और उन्होंने अपने घर के ही सामने अपनी माँ का अंतिम संस्कार किया था। आज भी कालड़ी गांव में घर के सामने ही दाह संस्कार किया।
चरों पीठों की स्थापना शंकराचार्य ने की
केरल से पदयात्रा करते हुए शंकराचार्य काशी गए जहाँ से उन्होंने योग और ब्रम्हज्ञान की प्राप्ति की, इसके बाद वे बिहार के महिषी पहुंचे,वहां पर उन्होंने आचार्य मंडन मिश्रा को शास्त्रार्थ में हराया, आदि शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की, उत्तर में बद्रिकाश्रम, पश्चिम में द्वारिका में शारदा मठ, दक्षिण में श्रंगेरी मठ और पूर्व में गोवर्धन मठ की स्थापना की थी, 32 वर्ष की उम्र में आदि शंकराचार्य ने केदारनाथ धाम में मौजूद मंदिर के पीछे समाधी ली थी और उस पवित्र स्थान पर उनकी विशालकाय मूर्ति का अनावरण किया गया है