क्या KGF असली घटना पर आधारित है: सच में मौजूद है कोलार गोल्ड फील्ड, दफन हैं सैकड़ों मजदूरों की लाशें
Is KGF based on real events: अगर आपको लगता है कि KGF फिल्म पूरी तरह फिक्शन मतलब काल्पनिक है तो यह आपकी ग़लतफहमी है
Does the Kolar Gold Field really exist: KGF चैप्टर 2 ने बॉक्सऑफिस में धमाका कर दिया है. फिल्म बॉलीवुड के इतिहास में हिंदी वर्जन में पहले दिन सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी है. लोग अब KGF 3 का उसी तरह इंतज़ार कर रहे हैं जैसे चैप्टर 1 के रिलीज होने के बाद चैप्टर 2 का करते थे. इसमें कोई शक की बात नहीं है कि KGF इंडियन सिनेमा इंडस्ट्री की सबसे शानदार फिल्मों में से एक है. लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा कि KGF की कहानी असली है या काल्पनिक। वैसे अगर आपको KGF की कहानी पूरी तरह नकली लगती है तो यह आपकी गलतफहमी है. KGF असली में मौजूद है और इसी के कारण ब्रिटिशर्स ने भारत में बिजली शुरू की थी.
कोलार गोल्ड फील्ड कहां मौजूद है: KGF मतलब कोलार गोल्ड फील्ड (Kolar Gold Field) भारत के कर्नाटक राज्य के दक्षिण पूर्व इलाके में मौजूद है. बेंगलुरु-चेन्नई एक्सप्रेसवे पर 100 किलोमीटर दूर KGF टाउनशिप भी है. यह दुनिया की सबसे कीमती जमीन हुआ करती थी क्योंकी यहां धरती से सचमुच सोना निकलता था. 121 सालों तक यहां से सोना निकलता रहा.
KGF की असली कहानी (Real Story Of KGF in Hindi)
कोलार गोल्ड फील्ड का इतिहास: बात है साल 1871 की जब भारत में ब्रिटिश राज था. एक ब्रिटिश सैनिक 'माइकल फिट्ज़गेराल्ड लेवेली' ने बेंगलुरु में अपना घर बसाया था. उसे भारत की भौगोलिक संरचना और भारत के इतिहास को जानने में काफी दिलचस्पी थी. उसे एक दिन साल 1804 में छपे एशियाटिक जर्नल का लेख दिखा। उस जर्नल में लिखा था "कोलार में इतना सोना है कि हाथ से जमीन खोदकर भी उसे निकाला जा सकता है'
दरअसल सन 1799 में हुए श्रीरंगपट्टनम युद्ध में अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को मारकर कोलार और आसपास के इलाके में कब्ज़ा कर लिया था. बाद में इस जमीन के टुकड़े को मैसूर के राजाओं के नाम कर दिया गया. मैसूर के राजवंश यह जानते थे कि कोलार में बहुत सोना है. उन्हें चोल साम्राज्य की वो कहानी मालूम थी जब वह कोलार की जमीन को हाथ से खोदकर सोना निकाल लेते थे.
कोलार गोल्ड फील्ड में सोना मिलने की कहानी
History Of Kolar Gold Fields: ब्रिटिश हुकूमत के लेफ्टिनेंट जॉन वॉरेन ने कोलार में दबे सोने का पता लगाने पर इनाम जारी कर दिया था. जिसके बाद वहां के ग्रामीण कोलार से अपनी बैलगाड़ी के साथ लेफ्टिनेंट वॉरेन के पास गए थे. वॉरेन ने देखा कि जिस बैलगाड़ी से ग्रामीण उसके पास आए थे, उसके पहियों में जो मिट्टी थी उसमे सोना था.
कोलार में एक वक़्त इतना सोना था कि हाथ से खोदी गई 56 किलो मिट्ठी में गूंजभर सोना निकल आता था. इसके बाद अंग्रेज कोलार में खुदाई करना शुरू कर चुके थे. कई लोगों को मार डाला गया, लोगों को खुदाई करने के लिए मजबूर किया गया, असहाय लोगों की हत्या की गई और उस सुनहरी जमीन को मजदूरों की खून से लाल कर दिया गया. साल 1084 से 1860 तक यहां से सोना निकालने के लिए खूब प्रयास हुए लेकिन अंग्रेजों को सफलता नहीं मिली।
माइकल फिट्ज़गेराल्ड लेवेली को जब कोलार के बारे में मालूम हुआ तो उसने फिर से सोने की तलाश करना शुरू कर दी. 1873 में माइकल फिट्ज़गेराल्ड लेवेली ने मैसूर के राजा से कोलार में खुदाई करने की इजाजत मांगी। और उसे 20 साल तक खुदाई करने की अनुमति मिली, 2 साल का समय सिर्फ मजदूर जुटाने में जाया हो गए साईट में खुदाई का काम साल 1875 से शुरू हुआ. और जमीन ने सोना उगलना शुरू कर दिया।
KGF में औरतें, बच्चे, बूढ़े, जवान सभी दिन रात सिर्फ खुदाई करते थे, उन्हें इसके लिए पैसे भी नहीं मिलते थे. वो गुलाम थे. उनके साथ वैसा ही बर्ताव होता था जैसे फिल्म में दिखाया गया है।
KGF के कारण ही देश में बिजली आई
KGF की असली कहानी: अंग्रेजों को 24 घंटे सिर्फ सोना नज़र आता था लेकिन रात के अँधेरे में चिमनी से काम मुश्किल हो जाता था. मजबूरन अंग्रेजों को सिर्फ KGF में खुदाई करने के लिए भारत में बिजली लानी पड़ी. लोगों को लगा कि उनकी किस्मत चमक गई लेकिन अंग्रेज बिजली देने के बदले भारत की जमीन से सोना चुरा रहे थे.
कोलार से 130 किलोमीटर दूर कावेरी में बिजली प्लांट लगाया गया. जो आज एशिया का दूसरा सबसे बड़ा प्लांट है. वर्तमान में उस स्थान को शिवंसमुद्र के नाम से जाना जाता है जो कर्नाटक के मांड्या जिले में है।
जब KGF में बिजली आई तो खुदाई का काम मशीनों से होने लगा. साल 1902 तक अंग्रेजों ने भारत का 95% सोना निकाल लिया था. 1905 तक भारत सोने की खुदाई के मामले में पूरी दुनिया में 6 वें नंबर पर आ गया था.
KGF को भारत का इंग्लैंड कहा जाता था
कोलार गोल्ड फील्ड का असली सच: कोलार का मौसम ठंडा था इसी लिए इसे भारत का इंग्लैंड कहा जाता था. जब यहां से जमीन सोना उगलने लगी तो धीरे-धीरे ब्रिटिश यहां बसने लगे. मजदूरों की संख्या लाखों में हो गई. मजदूर खदान के पास में ही घर बनाकर रहने लगे. साल 1947 में जब देश आज़ाद हुआ तो अंग्रेजों को जितना सोना ले जाते बना वो ले गए. बाद में KGF का सरकार ने राष्ट्रीयकरण कर दिया।
भारत की आज़ादी के बाद KGF का क्या हुआ
कोलार गोल्ड फील्ड की असली कहानी: आज़ादी के बाद अंग्रेज तो चले गए लेकिन वहां रहने वाले मजदूरों के लिए कुछ नहीं बदला, साल 1970 में भारत गोल्ड माईनस लिमिटेड कंपनी ने फिर से खदान को शुरू करवाया। लेकिन उस खदान में सिर्फ पत्थर बचे थे जितना सोना था सब अंग्रेज ब्रिटेन ले जा चुके थे. 1979 तक ऐसी हालत हो गई कि मजदूरों को कंपनी मजदूरी भी नहीं दे पा रही थी. साल 2001 के आते-आते कंपनी को इतना घाटा हुआ कि बिजली बिल भी भर पाने में वो सक्षम नहीं थी.
क्या KGF में अभी भी सोना है
क्या KGF से अभी भी सोना निकलता है: अब यहां सिर्फ बड़े-बड़े गड्ढे और खंडहर है. यहां सोना नहीं बचा है. साल 2016 में सरकार ने फिर से KGF की नीलामी की थी लेकिन अभी तक वह प्रक्रिया जारी है। काम 2001 से बंद है। सरकार का मानना है कि यहां आज भी सोना मौजूद है। यहां सिर्फ सोना नहीं बंद पड़ी खदानों में सैकड़ों मजदूरों की लाशें भी दफन हैं
KGF से कितना सोना निकला
सरकार का कहना है कि अंग्रेजों ने सिर्फ कोलार गोल्ड फील्ड से 900 टन सोना निकाला था. आज के हिसाब से लगभग 42000 मिलियन डॉलर मतलब 42 बिलिन डॉलर मतलब 32,04,33,12,00,000.00 रुपए। हालांकि अंग्रेजों ने इससे ज़्यादा सोना निकाला होगा ऐसा भी अनुमान है. भारत को इसी लिए सोने की चिड़िया कहा जाता था.