Onion Price: प्याज की खेती कर बुरे फंसे किसान, महाराष्ट्र की मंडियों में कीमत केवल 50 पैसा प्रति किलो
किसान है तो वह सिर्फ खेती ही करेगा। चाहे इसे उसका पेशा कहिए या फिर मजबूरी
Pyaj Mandi Bhav: किसान है तो वह सिर्फ खेती ही करेगा। चाहे इसे उसका पेशा कहिए या फिर मजबूरी। किसान का बेटा खेत में पैदा होता है और खेती करते हुए मर जाता है। भारत देश के किसान को कई अलंकार प्राप्त है। कोई इसे अन्नदाता कहता है तो कोई भूमिपुत्र। इसे देश के लोगों का जीवन भी कहा जाता है। लेकिन इसकी दुर्दशा पर बात करने वाले तो बहुत हैं लेकिन कोई इनकी मूल समस्या पर ध्यान नही दे रहा। गेहूं के दाम बढे तो निर्यात रोक दिया गया और जैसे ही निर्यात रूका गेहूं के दाम धडाम हो गये। लेकिन जब महाराष्ट्र में प्याज के दाम 50 पैसे हो गये तो कोई देखने वाला नही है।
जाने कहां है कितने दाम
महाराष्ट्र में गिरते प्याज के दाम के बीच हम आपको बताना चाह रहे हैं कि किस दाम पर कहां प्याज बिक रही है। महाराष्ट्र के नाशिक में सबसे ज्यादा प्याज पैदा कीजाती है। यहां कि येवला मंडी में प्याज की न्यूनतम दाम 50 पैसे प्रतिकिलो है। वही सताना मंडी में 75 पैसे में प्याज बिक रही है। ऐसे ही राज्य के अन्य मंडियों में भी है।
फौरन सरकार ने गेहूं पर लगाई रोक
इस बार देश का गेहूं विदेश भेजा जा रहा था। ऐसे में देश की मंडियों में दाम बढ गये। सरकारी खरीदी प्रभावित हुई। फिर विदेश जाने पर रोक लग गया और गेहूं के दाम 200 से 300 रूपये धड़ाम से गिर गये। रोक लगाने के पीछे का कारण निकला कि देश के भंडार खाली है।
सरकार बदल चुकी है प्याज
इसी बीच सरकार को यह नही दिख रहा है कि जिस प्याज के दाम ने सरकार बदल दी वह अब सबसे निचले दर पर बिक रही है। किसानों को एक ट्राली प्याज के उतने दाम भी नहीं मिल रहे हैं जिससे वह भाड़ा चुका सके। लागत और उत्पादन में लगी पूंजी तो छोड़ ही दीजिये।
रूलाने वाले दाम
अगर हम आपको दाम बतएंगें ते आप भी अवश्य ही हैरान हो जायेंगे। आज महाराष्ट्र की मंडियों में प्याज 50 पैसे प्रति किलो की दर से बिक रहा है। यह वही 50 पैसा है जिस सिक्के को सरकार ने अब बंद कर दिया है। 50 पैसे की कोई वैल्यू नही है। फिर भी यह किसानों के उत्पाद की कीमत तय कर रहा है। ऐसे में आप सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि जब किसान के उत्पादन की कीमत उस पैसे के बाराबर हो जिसे बंद कर दिया गया है। तो किसान की दशा क्या होगी।
वाह रे दुखियारा किसान
अब तो सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि वाह रे हमारा देश और हमारे देश के किसानों की दुर्दशा। दशा सुधारने के लिए कहने वाले तो बहुत है लेकिन उसकी वास्तविक दशा सुधारने का कितना प्रयास हुआ यह अपके सामने है। कहने का मतलब यह कि महंगा बिके तो प्रतिबंध, सस्ता बिके तो कोई देखने वाला नही है।