चुनाव से पहले पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अमिताभ की आवाज में बोला कुछ ऐसा कि मच गया हड़कंप
चुनाव से पहले पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अमिताभ की आवाज में बोला कुछ ऐसा कि मच गया हड़कंप भोपाल। मध्यप्रदेश में राज्यसभा और
चुनाव से पहले पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अमिताभ की आवाज में बोला कुछ ऐसा कि मच गया हड़कंप
भोपाल। मध्यप्रदेश में राज्यसभा और विधानसभा के 24 सीटों पर उपचुनाव होना है। इससे पहले ही राजनीति गर्माई हुई है। कांग्रेस की ओर से एक वीडियो ( video ) जारी किया गया है, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को दिखाया गया है, साथ ही उसमें कविता के जरिए अपनी बात कही गई है। कविता भी अमिताभ बच्चन की आवाज में पढ़ी गई है।निसर्ग तूफ़ान का असर! मध्यप्रदेश के रीवा समेत कई जिलों में भारी बारिश की चेतावनी
प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता सैय्यद जाफर ने यह वीडियो सोशल मीडिया पर जारी किया है। इसमें एक कविता है जो कवि विकास बंसल की कविता को अमिताभ बच्चन की आवाज में प्रस्तुत किया गया है। इसमें कमलनाथ कह रहे हैं कि मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूं। वीडियो में कमलनाथ को कई अंदाज में दिखाया गया है। कभी वे हंसते हुए तो कभी मुस्कुराते हुए तो कहीं-कहीं गुस्से में नजर आ रहे हैं। इस वीडियो में कमलनाथ कह रहे हैं कि मध्यप्रदेश को लेकर उनका एक सपना था उसे साकार करें।
चुनाव की तैयारी मध्यप्रदेश की 24 सीटों पर उपचुनाव होना है। इससे पहले ही सभी दल सक्रिय होने लगे हैं। हालांकि कोरोना काल को देखते हुए चुनाव की तारीखों का ऐलान अब तक नहीं हुआ है।
इंटरवल के बाद फिर आएंगे इससे पहले कमलनाथ ने हाल ही में छिंदवाड़ा में मीडिया को संबोधित करते हुए कहा था कि अभी इंटरवल हैं हम फिर सत्ता में आएंगे। उन्होंने कहा था कि पिच्कर तो अभी बाकी है।
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वीडियो में अमिताभ की आवाज में है यह कविता
मुठ्ठी में कुछ सपने लेकर, भरकर जेबों में आशाएं दिल में है अरमान यही, कुछ कर जाएं कुछ कर जाएं सूरज-सा तेज नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे सूरज-सा तेज नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे
अपनी हद रौशन करने से, तुम मुझको कब तक रोकोगे तुम मुझको कब तक रोकोगे…
मैं उस माटी का वृक्ष नहीं जिसको नदियों ने सींचा है मैं उस माटी का वृक्ष नहीं जिसको नदियों ने सींचा है बंजर माटी में पलकर मैंने मृत्यु से जीवन खींचा है मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूं मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूं शीशे से कब तक तोड़ोगे।
मिटने वाला मैं नाम नहीं, तुम मुझको कब तक रोकोगे तुम मुझको कब तक रोकोगे…।
इस जग में जितने ज़ुल्म नहीं, उतने सहने की ताकत है इस जग में जितने ज़ुल्म नहीं, उतने सहने की ताकत है तानों के भी शोर में रहकर सच कहने की आदत है मैं सागर से भी गहरा हूँ.. मैं सागर से भी गहरा हूं तुम कितने कंकड़ फेंकोगे।
चुन-चुन कर आगे बढूंगा मैं, तुम मुझको कब तक रोकोगे तुम मुझको कब तक रोकोगे।
झुक-झुककर सीधा खड़ा हुआ, अब फिर झुकने का शौक नहीं.. झुक-झुककर सीधा खड़ा हुआ, अब फिर झुकने का शौक नहीं.. अपने ही हाथों रचा स्वयं.. तुमसे मिटने का खौफ़ नहीं तुम हालातों की भट्टी में… जब-जब भी मुझको झोंकोगे तब तपकर सोना बनूंगा मैं, तुम मुझको कब तक रोकोगे तुम मुझको कब तक रोकोगे।
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