वेस्टर्न्स फर्म को लीड करने वाले सभी CEO हिंदुस्तानी ब्राम्हण क्यों हैं, इंडिया में उन्हें बढ़ने से क्या रोक रहा
Why all the CEOs leading the Westerns firm are Brahmins: दुनिया की बड़ी कंपनियों में ब्राह्मणों का राज है जबकि इंडियन मार्केट में वैश्य जाती के बिजनेसमैन का बोलबोला है
Why all the CEOs leading the Westerns firm are Bramhans: Adobe, Alphabet, IBM, Match Group (Tinder App वाली कंपनी) Microsoft, OnlyFans के जितने भी CEO हैं उनसब में एक चीज़ कॉमन है। यह सभी 6 कंपनियों के CEO भारतीय मूल के हैं। हालांकि यह कोई चौकाने वाली बात नहीं है, अमेरिका की ज़्यादातर कंपनियों में भारतीय एम्प्लोयी काम करते हैं। जिसमे सबसे ज़्यादा वैज्ञानिक, डॉक्टर्स और बिज़नेस लीडर शामिल हैं।
नोट: (इस आर्टिकल का जातिवाद को बढ़ावा देने कतई नहीं है, यह आर्टिकल Times Of India के The Economist ने अंग्रेजी में पब्लिश किया गया था उसी के हिसाब से आर्टिकल लिखा गया है । अब दुनिया की टॉप कंपनी में ब्राम्हण लीड कर रहे हैं तो कर रहे हैं, बात खतम, इसमें भसड़ करने वाली कोई बात नहीं ओके.)
दुनिया की ज़्यादातर दिग्गज कंपनियों के CEO के भारतीय होने के अलावा भी एक सिमिलैरिटी है, यह सभी CEO हिन्दू धर्म के अनुसार सर्वोच्च जाती के हैं, वो सभी सीईओ ब्राम्हण हैं। भारत कि 140 करोड़ की आबादी में सिर्फ 5 करोड़ या उससे थोड़ा अधिक संख्या में मौजूद ब्राम्हण दुनिया की टॉप कम्पनीज को लीड करते हैं। लेकिन भारत में रहने वाले ब्राम्हण इतने आगे क्यों नहीं बढ़ पाते, देश की कंपनियों में जितने भी सीईओ हैं उनमे ब्राम्हणों की गिनती काफी कम है।
अल्फाबेट के सीईओ सुन्दर पिचाई (Sundar Pichai)
माइक्रो सॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला (Satya Nadella)
IBM अरविन्द कृष्णा (Arvind Krishna)
Match ग्रुप शर्मिष्ठा दुबे (Sharmistha Dubey)
Adobe शांतनु नारायण (Shantanu Narayen)
Only Fans आम्रपाली गान (Amarapali Gan)
ये सभी सीईओ ब्राम्हण जाती से ताल्लुख रखते हैं।
यह आश्चर्य की बात है, क्योंकि भारत के अपने बोर्डरूम में ब्राह्मणों का उतना वर्चस्व नहीं है। पूर्व पुजारी जाति के सदस्य शिक्षा, विज्ञान और कानून जैसे क्षेत्रों की तुलना में बिज़नेस में कम उत्कृष्टता प्राप्त करते हैं। पिछले 15 वर्षों में सुप्रीम कोर्ट के एक चौथाई न्यायाधीश ब्राह्मण रहे हैं, और विज्ञान में भारत के चार नोबेल पुरस्कारों में से तीन न केवल ब्राह्मणों द्वारा जीते गए हैं, बल्कि तमिल ब्राह्मणों के एक छोटे उपसमूह ने जीते हैं।
जबकि भारत में ऐसा नहीं है
भारत के बड़े बिजनेसमैन बड़े पैमाने पर वैश्य या व्यापारी जातियों के पारंपरिक व्यापारिक समुदायों से सम्बन्ध रखते हैं। फोर्ब्स की 2021 (Forbes Report 2021) में भारत के सबसे धनी लोगों की सूची में पहली 20 एंट्री पर विचार करें बारह बनिया, हिंदू या जैन साहूकारों की एक वैश्य उप-जाति और उत्तर-पश्चिमी भारत के व्यापारी हैं, जो देश की आबादी का 1% से भी कम हिस्सा हैं। उन बनिया अरबपतियों में से पांच मारवाड़ी भी हैं, जो मूल रूप से राजस्थान के व्यापारी परिवारों का एक कसकर अंतर्विवाहित समूह है, जिसमें भारत के कई शुरुआती उद्योगपति शामिल हैं।
तो भारत में ब्राम्हणों को बढ़ने से कौन रोक रहा है
तो भारतीय ब्राह्मण विदेशों में व्यापार में नाम क्यों कमा रहे हैं ? एक उत्तर यह है कि क्योंकि भारत में व्यापार स्थापित नेटवर्क वाले लोगों के पक्ष में है, प्रतिभाशाली ब्राह्मणों ने प्रवास करने का यह कोशिश की है। किताबीपन की परंपरा ने उनके लिए परीक्षा पास करना और सबसे बड़े अवसरों वाले देशों में प्रवेश करना आसान बना दिया है। भारत में सकारात्मक कार्रवाई ने उन्हें भी दूर कर दिया है। जब अमेरिका की उपराष्ट्रपति, कमला हैरिस की माँ कॉलेज की शिक्षा प्राप्त करना चाह रही थीं, तब निचली जातियों के लिए कोटा ने तमिल ब्राह्मणों के लिए कॉलेज में प्रवेश प्राप्त करना बहुत कठिन बना दिया था। इसलिए उसने अमेरिका में छात्रवृत्ति के लिए आवेदन किया, जहाँ रिजर्वेशन नहीं है और पढाई में भेदभाव नहीं है उन्होंने वहीं पीएचडी की उपाधि प्राप्त की और कैंसर शोधकर्ता बन गई। यानी के कहीं ना कहीं आरक्षण ने ब्राम्हण और अन्य सामान्य जाति वाले टैलेंटेड लोगों को दबा दिया है।
एक बार फिर कह रहे हैं, इस आर्टिकल का मतलब ब्राम्हणवाद को बढ़ावा देना नहीं है जो सच है तो सच है