5 मनुष्यों पर किया गया अब तक का सबसे खतरनाक एक्सपेरिमेंट, 69 वर्ष बाद खुला राज, आप जानेंगे तो कांप उठेगी रूह
69 वर्ष बाद एक देश का ऐसा रहस्य खुला जिसे सुनने और पढ़ने के बाद आपकी रूह कांप जाएगी। क्योंकि यह पांच जिंदा मनुष्यों पर किया गया एक घातक एक्सपेरिमेंट था। कहा तो यहां तक जाता है कि उस एक्सपेरिमेंट में शामिल किए गए 5 में से किसी की भी जान नहीं बची। साथ में 1 अन्य व्यक्ति को भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। 6 लागों की बलि के बाद भी यह एक्सपेरिमेंट फेल रहा। तभी तो आज तक इसके बारे में किसी ने कोई चर्चा नहीं की।
क्या था एक्सपेरिमेंट
इस एक्सपेरिमेंट को "स्लीप एक्सपेरिमेंट" नाम दिया गया था। जैसा कि इसके नाम से पता चलता है कि सोने से संबंधित प्रयोग किया गया था। बताते हैं कि 1940 में जब दूसरा विश्वयुद्ध चल रहा था, उस समय रूस भी इस युद्ध में शामिल था। उसने कई कैदियों को यहां बंद कर रखा था।
कहते हैं कि उसी समय रूस के कई वैज्ञानिकों के दिमाग में एक प्रयोग करने का सूझा। रूस के वैज्ञानिक चाहते थे कि यह पता लगाया जा सके कि उनके सैनिक बिना आराम किए, बिना सोए कितने दिन तक युद्ध में हिस्सा दे सकते हैं।
फिर शुरू हुआ एक्सपेरिमेंट
बताते हैं इसके लिए रूस के वैज्ञानिकों ने बंदी बनाए गए कैदियों को तैयार किया। कैदियों से बात की गई उनसे कहा गया कि अगर वह इस एक्सपेरिमेंट में उनका साथ देते हैं तो एक्सपेरिमेंट पूरा होने के बाद उन्हें रिहा कर दिया जाएगा। वैज्ञानिकों की यह बात सुनकर रूस की कैद में बंद 5 कैदी तैयार हुए।
रखा गया चेंबर में
इस प्रयोग के लिए एक चेंबर बनाया गया जो कांच का था। अंदर के लोग बाहर नहीं देख सकते थे लेकिन बाहर से अंदर के लोगों की पूरी प्रक्रिया देखी जा सकती थी। साथ ही उस चेंबर में एक ऐसी गैस छोड़ी गई जिसके प्रभाव से व्यक्ति चाहकर भी नही सो सकता। चेंबर में खाने, पीने, रहने का पूरा इंतजाम किया गया। माइक्रोफोन और कैमरा लगाए गए।
कैदियों को डाल दिया गया चेंबर में
बताते हैं कि कैदियों को चेंबर में डाल दिया गया। अब बाहर बैठे हैं वैज्ञानिक उनकी सारी हरकतों को वॉच करने लगे। बताते हैं कि पहला दिन बिल्कुल सामान्य रहा। कैदी सोए नहीं, दूसरा और तीसरा दिन भी ठीक रहा।
चौथे दिन कैदियों की हरकतें बदलने लगी। थके हुए और आंखों में नींद दिख रही थी लेकिन गैस के प्रभाव से सो नहीं पा रहे थे।
पांचवें दिन से शुरू हुआ
पांचवें दिन कैदियों की दिनचर्या पूरी तरह से बदल चुकी थी। वह आपस में बात कर रहे थे लेकिन वह भी एक साथ। कोई किसी की सुन नहीं रहा था। 6वें और 7वें दिन हालत ज्यादा खराब हुई। 9वें दिन एक कैदी जोर जोर से चिल्ला रहा था। इतना जोर से चिल्ला रहा था कि अगर उसे सीधे सुना जाए तो कान के पर्दे फट जाए। लेकिन दूसरे कैदियों पर कोई असर नहीं पड़ रहा था।
10वें दिन से भयावह हुआ यह प्रयोग
10वें दिन से लेकर 13वें दिन के बीच यह प्रयोग अपने भयावह रूप में पहुंच गया। जिसे सुनने के बाद शायद है कि आपके यहां आंख से आंसू निकल आए। बताया गया है कि वैज्ञानिक ऐसा देख पा रहे थे कि चेंबर में बंद कैदी आवाज तो निकालना चाहते हैं लेकिन उनके मुंह से आवाज नहीं निकल रही।
13वें दिन देखा गया कि कैदी मृतक के समान चेंबर में पड़े हुए हैं। वैज्ञानिकों ने इस संबंध में कमांडर से बात की। जिनकी निगरानी में यह प्रयोग चल रहा था। साथ ही कहा कि इस प्रयोग को रोक देना चाहिए। लेकिन कमांडर ने अनुमति नहीं दी।
शुरू हुआ मौत का सिलसिला
कहते हैं कि 15वें दिन जब कैदियों की कोई हरकत नहीं आई तो वैज्ञानिक चेंबर के अंदर गए। वहां पर दीवार में खून के छींटे पड़े हुए थे। कई कैदी के शरीर में मांस नहीं था। ऐसा लग रहा था मानो कैदी ने ही कैदी का मांस नोच कर खा लिया। कई कैदियों की हड्डी बाहर दिख रही थी।
ऐसे में वैज्ञानिकों ने तय किया कि नींद न आने वाली गैस का रिसाव बंद कर दिया जाए। गैस बंद कर दी गई लेकिन कुछ ही देर में एक कैदी की मौत हो गई। उसकी लाश को बाहर निकाला गया।
कमांडर को साइंटिस्ट ने मारी गोली
अब यह तय हुआ कि इस एक्सपेरिमेंट को रोक दिया जाए। जिससे अन्य चार की जिंदगी बच सके। लेकिन कमांडर ने अनुमति नहीं दी। वह तो साइंटिस्ट को कैदियों के साथ रहने के लिए भेजने वाला था। तभी साइंटिस्ट ने कमांडर को गोली मार दी।
इलाज के लिए ले जाए गए कैदी
अब इन चार कैदियों को चेंबर से बाहर निकाल कर इलाज के लिए ले जाया गया। लेकिन इलाज के दौरान अन्य तीन कैदियों की मौत हो गई। चौथा कैदी जीवित रहा लेकिन वह चेंबर में जाने की जिद कर रहा था। उसकी हरकतें देखकर ऐसा लगता था जैसे यह आदमी नहीं है। ऐसे में वैज्ञानिकों ने उसे भी गोली मार दी। क्योंकि यह बाहर निकलने पर समाज के लिए खतरा पैदा कर सकता था।
और बंद हो गया एक्सपेरिमेंट
बेनतीजा रहे इस एक्सपेरिमेंट को बंद कर दिया गया। इस एक्सपेरिमेंट के बारे में किसी को कोई भी जानकारी नहीं दी गई। 2009 में एक वेबसाइट ने इस संबंध का आर्टिकल लिखा। जिसके बाद विश्व स्तर पर रसिया का यह अमानवीय प्रयोग कहा जाने लगा। देशों में विरोध होने लगे लेकिन रसिया ने इसे काल्पनिक कहानी कह कर अपना पल्ला झाड़ लिया। लेकिन जानकारों का कहना है कि इस एक्सपेरिमेंट से जुड़े हुए तथ्य आज भी मौजूद है।