अफगानिस्तान का 'पंजशीर'; जिसके नाम भर से खौफ में आ जाता है 'तालिबान', दो दशक से अमेरिकी सेना भी नहीं घुस पाई अफगानी शेरो की इस धरती में...
अफगानिस्तान का 'पंजशीर'; जिसके नाम भर से खौफ में आ जाता है 'तालिबान', दो दशक से अमेरिकी सेना भी नहीं घुस पाई अफगानी शेरो की इस धरती में...
अफगानिस्तान की राजधानी काबुल से लगभग 150 किमी दूर एक प्रांत है, जिसे पंजशीर (Panjshir) के नाम से जाना जाता है. पंजशीर एक ऐसा प्रांत है, जहां तालिबान (Taliban) के खिलाफ लड़ाकू तैयार किए जाते हैं. इस इलाके के नाम भर से तालिबान खौफ में आ जाता है. लगभग 1 लाख की आबादी वाले पंजशीर के शेरो ने कई लड़ाइयां लड़ी हैं और तालिबानियों को पटखनी दी है.
पंजशीर में पिछले दो दशक से अमेरिकी सेना तक प्रवेश नहीं कर पाई है. अफगानियों को अब पंजशीर के शेरों पर भरोसा है. सूत्र बताते हैं कि एक बार फिर अफगानिस्तान (Afghanistan) से तालिबानियों को भगाने की मुहीम पंजशीर में शुरू हो चुकी है. लड़ाकुओं को ट्रेन किया जा रहा है. कहा जाता है पंजशीर का एक लड़ाकू तालिबान के आधा सैकड़ा आतंकियों पर भारी पड़ता है.
आज तक तालिबान 'पंजशीर' पर कब्जा नहीं कर सका है. इस बार अफगानिस्तान की सत्ता तक पहुँच चुके तालिबान की सबसे बड़ी चुनौती भी पंजशीर के लड़ाकुओं को हराकर पंजशीर में कब्जा करने की है. जिसकी शुरुआत भी की जा चुकी है.
तालिबान विरोधी गुटों का केंद्र है पंजशीर
पंजशीर को तालिबानी विरोधी गुटों का केंद्र भी कहा जाता है. यहां आज भी शान से काफी ऊंचाई में अफगानिस्तान का झंडा लहरा रहा है. 1996 के युद्ध में भी तालिबान पंजशीर से बुरी तरह से हार गया था. सोवियत संघ भी पंजशीर के शेरो के सामने घुटने टेक चुका है. उसे भी यहां युद्ध में हार मिली थी. यह तालिबानियों की कब्रगाह है.
एक ओर जहां पूरा अफगानिस्तान तालिबानियों के सामने खौफ के साये में जी रहा है, वहीं इस घाटी में तालिबानियों की कब्रगाह बनाने का काम शुरू हो चुका है. इलाकों में इंकलाब जिंदाबाद के नारे लग रहें हैं. शान से अफगानी तिरंगा लहरा रहा है. तालिबानी विरोधी गट एक साथ आ चुके हैं. हजारों लड़ाकों का जमावड़ा लग चुका है. अब बस इन्तजार है तो सिर्फ इनके युद्ध की शंखनाद का.
इस वादी का नाम पाँच भाईयों के सम्मान में रखा गया है जिन्होनें 10वीं शताब्दी ईसवी में महमूद ग़ज़नी ले लिए यहाँ एक दुर्गम नदी पर बाँध बना डाला था. तबसे यह धरती योद्धाओं की धरती मानी जाती है.
पूर्व राष्ट्रपति सालेह कर रहें तालिबान विरोधी मुहीम की अगुवाई
अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह पंजशीर में तालिबान के खिलाफ शुरू हो रही इस मुहीम की अगुवाई कर रहें हैं. अमरुल्लाह के अनुसार पाकिस्तान ने 80 के दशक में जिस तालिबान को बनाया था, उस तालिबान और इस तालिबान में काफी फर्क है. तालिबान को सीधी पाकिस्तानी सेना ट्रेनिंग देती रही है. आर्थिक मदद, कूटनीतिक सहायता भी पाकिस्तान से मिलती रही है.
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश छोड़ने के बाद अमरुल्लाह सालेह खुद को अफगान का संवैधानिक राष्ट्रपति बता रहें हैं और उन्ही की अगुवाई में विद्रोह का बिगुल फूंकने की तैयारी हो रही है. जिसकी शुरुआत पंजशीर से ही हो रही है. इसमें अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह, अफगानिस्तान के वॉर लॉर्ड कहे जाने वाले जनरल अब्दुल रशीद दोस्तम, अता मोहम्मद नूर के सैनिक और अहमद मसूद की फौजें शामिल हैं.
पंजशीर में दो तरफ से तालिबानियों पर हमला
रिपोर्ट्स के मुताबिक, परवान प्रॉविंस में सालेह की फौजों ने चारिकार इलाके को कब्जा लिया है. अफगानी सैनिकों ने पंजशीर के बाहरी इलाकों में पाकिस्तान समर्थित तालिबानियों पर हमला किया और उन्हें वहां से हटा दिया. ये नॉर्दन अलायंस की बड़ी कामयाबी कही जा सकती है, क्योंकि चारिकार काबुल को उत्तरी अफगानिस्तान के सबसे बड़े शहर मजार-ए-शरीफ को जोड़ता है.
पूरे पंजशीर पर कब्जे की तैयारी
रिपोर्ट्स में ये भी कहा जा रहा है कि अफगान सरकार के वफादार सैनिक मार्शल अब्दुल रशीद दोस्तम और अता मोहम्मद नूर की अगुआई में सालेह की फौजों के साथ जुड़ रहे हैं और अब इनका इरादा पूरे पंजशीर इलाके पर कब्जे का है. चारिकार पर कब्जे के दौरान सालेह की फौजों ने पंजशीर की ओर से हमला किया और दोस्तम की फौजों ने उत्तर की ओर से हमला किया.
पंजशीर अकेला ऐसा प्रांत है, जो तालिबान के कब्जे से बाहर है. रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया है कि सालेह और दोस्तम की फौजों के अलावा अहमद मसूद के विद्रोही भी तालिबान के खिलाफ खड़े हो गए हैं. अहमद मसूद पूर्व अफगानी नेता अहमद शाह मसूद के बेटे हैं, जिन्हें पंजशीर के शेर के नाम से जाना जाता था. मसूद के विद्रोहियों की ताकत बढ़ रही है.