Dwarkadhish Temple: द्वारका के ध्वज की 10 रहस्यमयी बातें
दिन में 3 बार बदला जाता है ध्वज
जानकारी के अनुसार यह भारत का एक अकेला ऐसा मंदिर है, जहां पर दिन में 3 बार सुबह, दोपहर और शाम को 52 गज की ध्वजा चढ़ाई जाती है। कभी कभी इसे 5 बार भी बदला गया है।
10 KM से स्पष्ट दिखाई देता है ध्वज
यह ध्वज इतना बड़ा है कि इसे आप 10 किलोमीटर दूरी से भी लहराता हुए देख सकते हैं। दूरबीन से इस पर बने चिन्ह को भी देखा जा सकता है।
2 साल इंतजार करना होता है
ध्वजा श्रद्धालुओं की और से ही चढ़ाई जाती है लेकिन इसके लिए 2 साल तक की वेटिंग रहती है।
84 फुट लम्बी है धर्मध्वजा
यह मंदिर 5 मंजिला है जो 72 खंभों पर स्थापित है। मंदिर का शिखर 78.3 मीटर ऊंचा है और शिखर पर करीब 84 फुट लम्बी धर्मध्वजा फहराती रहती है।
ध्वज पर बने हैं सूर्य और चंद्र
इस धर्म ध्वजा में सूर्य और चंद्रमा बने हुए हैं। इसके पीछे यह मान्यता है कि जब तक इस धरती पर सूर्य चंद्रमा रहेंगे तब तक द्वारकाधीश का नाम रहेगा।
इस समय ध्वज के तरफ नहीं देखा जा सकता
ध्वज उतारते और लगाते समय कुछ समय के लिए मंदर के शिखर से ध्वज गायब रहता है। जब ध्वज बदलने की प्रक्रिया होती है उस तरफ देखने की मनाही होती है।
सात रंगी होता है ध्वज
मंदिर के शिखर सतरंगी ध्वजा लगाया जाता है। श्रीकृष्ण के स्वरूप और व्यक्तित्व में यही सात रंग समाए हुए हैं। मुख्यतः ये रंग हैं- लाल, हरा, पीला, नीला, सफेद, भगवा और गुलाबी।
अबोटी ब्रह्मण लहराते हैं ध्वज
मंदिर पर ध्वजा चढाने-उताने और दक्षिणा पाने का अधिकार अबोर्ट ब्राह्मणों को प्राप्त है। ध्वज बदलने के लिए एक बड़ी सेरेमनी होती है।
नया ध्वज चढ़ाने के बाद पुराने पर अबोटी ब्राह्मणों का हक होता है। इसके कपड़े से भगवान के वस्त्र वगैरह बनाए जाते हैं। मंदिर के इस ध्वज के एक खास दर्जी ही सिलता है।