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आज के ही दिन विंध्यवासियों से छीन लिया गया था "विंध्य" क्या भविष्य में वापस बनेगा अगल प्रदेश
विंध्य प्रदेश : साल 1947 में जब भारत क्रूर ब्रिटिश राज से मुक्त हुआ और एक आज़ाद राष्ट्र बना तब विंध्यप्रदेश एक स्वतंत्र राज्य हुआ करता था. उस वक़्त विंध्य की कमान कप्तान अवधेश प्रताप सिंह के हाथों में थी और राज्य के प्रमुख बघेल वंश के महाराजा मार्तण्ड सिंह जूदेव थे। 1951 तक अवधेश प्रताप सिंह ने विंध्य की बागडोर संभाली और जब विंध्य प्रदेश का गठन किया गया तो प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री के रूप में पंडित शम्भूनाथ शुक्ल पहले मुख्यमंत्री बने। विंध्य प्रदेश का गठन सेंट्रल इंडिया एजेंसी के पूर्वी भाग की रियासतों को मिला कर किया गया था और विंध्य प्रदेश का अस्तित्व इसे मध्यप्रदेश के मिला कर ख़त्म कर दिया गया। 1 नवंबर 1956 को विंध्यप्रदेश का मध्यप्रदेश में विलय हो गया और इसी के साथ रीवा से विंध्य की राजधानी होने का हक़ भी छीन लिया गया।
सन 1956 तक विंध्य प्रदेश का छेत्रफल 60 हज़ार वर्ग किलोमीटर था, यहाँ की आबादी 35 लाख 75 हज़ार थी और 60 विधानसभा सहित 6 लोकसभा और राजयसभा सीटें थी। विंध्यप्रदेश मध्यप्रदेश में विलय सर्वसम्मति से हुआ ,इसका विरोध करने वालों की तादात भी काफी थी लेकिन राजनीती में कमजोर पकड़, अशिक्षा और आर्थिक पिछड़ापन विंध्य के रखवालों के साहस पर भारी पड़ गया। प्राकृतिक सम्पादों से भरपूर विंध्य अब मध्यप्रदेश के लिए सिर्फ एक भौगोलिक हिस्सा बन गया था. साल 2000 में एक बार फिर पूर्व विधानसभा अध्यक्ष पंडित श्री निवास तिवारी की अगुवाई में विंध्य प्रदेश के सपने को साकार करने की योजना बनाई गई लेकिन राजनितिक मतभेदों के चलते वो मीठा ख्वाब सिर्फ ख्वाब बन कर रह गया और कभी पूरा नहीं हो पाया।
लोग विंध्य के लिए इतने भावुक क्यों है
जिस तरह विंध्य का मध्यप्रदेश में विलय हुआ उसी तरह मालवा, बुंदेलखंड, चंबल, जैसी कई रियासतों और राज्यों को मिला कर मध्यप्रदेश का गठन किया गया, आज़ादी के पहले तो मध्यप्रदेश जैसा कुछ था ही नहीं इन सभी छोटे छोटे राज्यों को मिला कर मध्यप्रदेश को वजूद में लाया गया। लेकिन विंध्य क्षेत्र के लोग इसके विलय के बाद से ही विंध्यप्रदेश की मांग करने लगे थे, विंध्य को लकेर यहां के रहने वाले काफी भावुक हैं, वो हर हाल में विंध्य को दोबरा बनते देखना चाहते हैं।
क्या ये सपना कभी सच होगा
विंध्य के सफ़ेद शेर स्व श्री निवास तिवारी ने विंध्य को दोबारा प्रदेश बनाने की अगुवाई की लेकिन उनकी योजना विफल रही, प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो विंध्य प्रदेश बनाने की आवाज दब गई और जिन तक विंध्य पुनर्निर्माण की गूंज सुनाई देनी चाहिए थी उन्होंने अपने कानों में ठिप्पी खोंस ली थी। देखा जाए तो पहले की तुलना में विंध्य के लिए आवाज उठाने वालों की संख्या घट गई. रीवा संभाग ने नेताओ के अलावा किसी और को विंध्य प्रदेश की नहीं पड़ी है। जबकि विंध्य के अंदर रीवा, सतना, सीधी, शहडोल,अनूपपुर, सिंगरौली, पन्ना, छ्ततरपुर, टीकमगढ, दतिया और उमरिया विंध्य का भाग था।
इन्होने उठाया है बीड़ा
वर्तमान में मैहर के विधायक नारायण त्रिपाठी और मऊगंज के पूर्व विधायक लक्ष्मण तिवारी के सिवाय विंध्य के लिए आवाज उठाने वाला है ही नहीं। ये दोनों नेता अपनी तरफ से विंध्य को फिर से एक राज्य बनाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
क्या दोबारा विंध्य बन पाएगा प्रदेश
सबसे बड़ा सवा यही है कि क्या विंध्य दोबरा से एक राज्य बन पाएगा ? दशकों से जो प्रयास किए जा रहे हैं कभी सफल होंगे ? वैसे तो विंध्य एकलौता ऐसा राज्य नहीं था जिसका मध्यप्रदेश में विलय हुआ, मालवा, बुंदेलखंड, जैसी कई रियासतों और भौगोलिक क्षेत्रों को मिला कर मध्यप्रदेश का गठन हुआ। अब अगर हर क्षेत्र के रहने वाले ये कहने लगें कि हमको हमारा मालवा लौटा दो, कोई बोले हमको चंबल लौटा दो तो कोई कहे हमे बुंदेलखंड अलग चाहिए तो क्या सरकार इसे स्वीकार्य करेगी ? वैसे ही विंध्य को दोबारा राज्य बनाने पर कोई भी सरकार कभी विचार नहीं कर सकती।
विंध्य में हीरा, सोना, चुना पत्थर, पर्यटन, कोयला, सहित खनिजों को भण्डार है ये अगर मध्यप्रदेश से अलग हो कर राज्य बन जाए तो MP का एक तिहाई रेवेन्यू खत्म हो जाएगा। कोई भी सरकार नहीं चाहेगी के विंध्य को अलग कर दिया जाए। लेकिन ये अलग बात है कि अगर विंध्य दोबरा से प्रदेश बनता है तो रीवा इसकी राजधानी होगी और विंध्यप्रदेश विकास काफी तेज़ी से होगा।