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विंध्य प्रदेश का इतिहास: मध्य प्रदेश की स्थापना या विंध्य प्रदेश की बरसी? क्या कभी रीवा वापस बनेगा विंध्य की राजधानी
![विंध्य प्रदेश का इतिहास: मध्य प्रदेश की स्थापना या विंध्य प्रदेश की बरसी? क्या कभी रीवा वापस बनेगा विंध्य की राजधानी विंध्य प्रदेश का इतिहास: मध्य प्रदेश की स्थापना या विंध्य प्रदेश की बरसी? क्या कभी रीवा वापस बनेगा विंध्य की राजधानी](https://www.rewariyasat.com/h-upload/2022/11/01/50517-vindhya-pradesh.webp)
History of Vindhya Pradesh: आज 1 नवंबर है यानी मध्य प्रदेश का स्थापना दिवस है, लेकिन प्रदेश का एक भाग ऐसा है जहां MP Foundation Day की खुशियां नहीं बल्कि विंध्य प्रदेश के छीन लिए जाने का गम मनाया जाता है. बात 1947 की है जब भारत ब्रिटिश हुकूमत से आज़ाद हुआ था और तब विंध्य प्रदेश एक स्वतंत्र राज्य हुआ करता था. तब विंध्य की कमान कप्तान अवधेश प्रताप सिंह (Awadhesh Pratap Singh) के हाथ में थी. और राज्य के प्रमुख महराजा मार्तण्ड सिंह जूदेव हुआ करते थे.
1951 तक अवधेश प्रताप सिंह ने विंध्य को संभाले रखा और जब प्रथम चुनाव हुए तो विंध्य के पहले मुख्यमंत्री पंडित शम्भुनाथ शुक्ल (Pandit Shambhunath Shukla) हुए. विंध्य प्रदेश का निर्माण सेंट्रल इंडिया एजेंसी के पूर्वी भाग की रियासतों को मिलाकर किया गया था लेकिन 1 नवंबर 1956 के दिन विंध्य प्रदेश को मध्य प्रदेश में मिलाकर इसका अस्तित्व खत्म कर दिया गया और रीवा जिले से राजधानी होने का हक़ छीन लिया गया.
विंध्य प्रदेश का इतिहास
सन 1956 तक विंध्य प्रदेश का छेत्रफल 60 हज़ार वर्ग किलोमीटर था. यहाँ की आबादी 35 लाख 75 हज़ार थी और 60 विधानसभा सहित 6 लोकसभा और राजयसभा सीटें थी। विंध्यप्रदेश मध्यप्रदेश में विलय सर्वसम्मति से हुआ ,इसका विरोध करने वालों की तादात भी काफी थी लेकिन राजनीती में कमजोर पकड़, अशिक्षा और आर्थिक पिछड़ापन विंध्य के रखवालों के साहस पर भारी पड़ गया। प्राकृतिक सम्पादों से भरपूर विंध्य अब मध्यप्रदेश के लिए सिर्फ एक भौगोलिक हिस्सा बन गया था. साल 2000 में एक बार फिर पूर्व विधानसभा अध्यक्ष पंडित श्री निवास तिवारी की अगुवाई में विंध्य प्रदेश के सपने को साकार करने की योजना बनाई गई लेकिन राजनितिक मतभेदों के चलते वो मीठा ख्वाब सिर्फ ख्वाब बन कर रह गया और कभी पूरा नहीं हो पाया।
विंध्य के लिए लोग इतने भावुक क्यों है
जिस तरह विंध्य का मध्यप्रदेश में विलय हुआ उसी तरह मालवा, बुंदेलखंड, चंबल, जैसी कई रियासतों और राज्यों को मिला कर मध्यप्रदेश का गठन किया गया, आज़ादी के पहले तो मध्यप्रदेश जैसा कुछ था ही नहीं इन सभी छोटे छोटे राज्यों को मिला कर मध्यप्रदेश को वजूद में लाया गया। लेकिन विंध्य क्षेत्र के लोग इसके विलय के बाद से ही विंध्यप्रदेश की मांग करने लगे थे, विंध्य को लकेर यहां के रहने वाले काफी भावुक हैं, वो हर हाल में विंध्य को दोबरा बनते देखना चाहते हैं।
क्या दोबारा विंध्य प्रदेश का गठन होगा?
विंध्य के सफ़ेद शेर स्व श्री निवास तिवारी ने विंध्य को दोबारा प्रदेश बनाने की अगुवाई की लेकिन उनकी योजना विफल रही, प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो विंध्य प्रदेश बनाने की आवाज दब गई और जिन तक विंध्य पुनर्निर्माण की गूंज सुनाई देनी चाहिए थी उन्होंने अपने कानों में ठिप्पी खोंस ली थी। देखा जाए तो पहले की तुलना में विंध्य के लिए आवाज उठाने वालों की संख्या घट गई. रीवा संभाग ने नेताओ के अलावा किसी और को विंध्य प्रदेश की नहीं पड़ी है। जबकि विंध्य के अंदर रीवा, सतना, सीधी, शहडोल,अनूपपुर, सिंगरौली, पन्ना, छ्ततरपुर, टीकमगढ, दतिया और उमरिया विंध्य का भाग था।
सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या विंध्य दोबरा से एक राज्य बन पाएगा ? दशकों से जो प्रयास किए जा रहे हैं कभी सफल होंगे ? वैसे तो विंध्य एकलौता ऐसा राज्य नहीं था जिसका मध्यप्रदेश में विलय हुआ, मालवा, बुंदेलखंड, जैसी कई रियासतों और भौगोलिक क्षेत्रों को मिला कर मध्यप्रदेश का गठन हुआ। अब अगर हर क्षेत्र के रहने वाले ये कहने लगें कि हमको हमारा मालवा लौटा दो, कोई बोले हमको चंबल लौटा दो तो कोई कहे हमे बुंदेलखंड अलग चाहिए तो क्या सरकार इसे स्वीकार्य करेगी ? वैसे ही विंध्य को दोबारा राज्य बनाने पर कोई भी सरकार कभी विचार नहीं कर सकती। विंध्य में हीरा, सोना, चुना पत्थर, पर्यटन, कोयला, सहित खनिजों को भण्डार है ये अगर मध्यप्रदेश से अलग हो कर राज्य बन जाए तो MP का एक तिहाई रेवेन्यू खत्म हो जाएगा। कोई भी सरकार नहीं चाहेगी के विंध्य को अलग कर दिया जाए। लेकिन ये अलग बात है कि अगर विंध्य दोबरा से प्रदेश बनता है तो रीवा इसकी राजधानी होगी और विंध्यप्रदेश विकास काफी तेज़ी से होगा।