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विश्वभर में निर्यात होती हैं 'रीवा में बनी सुपारी की कलाकृतियां', इंदिरा गाँधी तक थीं कला से प्रभावित

विश्वभर में निर्यात होती हैं रीवा में बनी सुपारी की कलाकृतियां, इंदिरा गाँधी तक थीं कला से प्रभावित
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RewaRiyasat Special : सुपारी के खिलौनों (Betel Nut’s Toys) ने रीवा को राष्ट्रीय स्तर पर गौरव दिलाया है। यहां के कलाकारों की कलाकृतियां दूसरे राज्यों से लेकर विदेशों तक भेजी जा रही हैं। जिस तरह से रीवा में सुपारी के खिलौने बनाए जाते हैं वह दूसरे स्थानों में बहुत कम हैं। शहर के कुंदेर परिवार के कुछ लोगों के लिए यह चाहे भले ही जीवन यापन का एक जरिया हो लेकिन इससे रीवा की ख्याति भी जुड़ी है।

RewaRiyasat Special : सुपारी के खिलौनों (Betel Nut’s Toys) ने रीवा को राष्ट्रीय स्तर पर गौरव दिलाया है। यहां के कलाकारों की कलाकृतियां दूसरे राज्यों से लेकर विदेशों तक भेजी जा रही हैं। जिस तरह से रीवा में सुपारी के खिलौने बनाए जाते हैं वह दूसरे स्थानों में बहुत कम हैं। शहर के कुंदेर परिवार के कुछ लोगों के लिए यह चाहे भले ही जीवन यापन का एक जरिया हो लेकिन इससे रीवा की ख्याति भी जुड़ी है।

इन खिलौनों को गिफ्ट देने में इस्तेमाल किया जा रहा है। मांग इनकी इतनी अधिक है कि एक से अधिक की संख्या में जरूरत पडऩे पर एडवांस में आर्डर देना पड़ता है। शहर में आने वाले राजनेताओं और अन्य सेलीब्रिटी को भी यही भेंट किए जा रहे हैं। जिससे इनकी ब्रांडिंग भी हो रही है।

इसकी शुरुआत के संबंध में बताया जा रहा है कि राजघराने द्वारा सुपारी को पान के साथ इस्तेमाल करने के लिए अलग-अलग डिजाइन से कटवाने की शुरुआत की गई थी। उसी की डिजाइन बनाते-बनाते कलाकृतियां भी सामने आने लगीं। कुंदेर परिवार तीन पीढिय़ों से यह काम कर रहा है। इनका यह प्रमुख पेशा है। रीवा की पहचान सुपारी के खिलौने बन गए हैं।

इंदिरा गांधी कला से थीं प्रभावित

1968 में प्रधानमंत्री इंदिरागांधी रीवा आई थीं। उस दौरान उन्हें सुपारी के खिलौने गिफ्ट गए थे। दिल्ली पहुंचने पर उन्होंने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के बोर्ड आफ डायरेक्टर के पैनल में सुपारी के खिलौने बनाने वाले रामसिया कुंदेर को भी शामिल किया। कई बड़े कार्यक्रम में इंदिरा गांधी ने परिचय कराकर कलाकार का सम्मान भी बढ़ाया।

सिंदूर की डिब्बी से हुई थी शुरुआत

शहर के फोर्टरोड में सुपारी से मूर्तियां और खिलौने बनाने वाले दुर्गेश कुंदेर तीसरी पीढ़ी के कलाकार हैं। वह बताते हैं कि सबसे पहले 1942 में उनके दादा भगवानदीन कुंदेर ने सुपारी की सिंदूरदान बनाकर महाराजा गुलाब सिंह को गिफ्ट किया था। इसके पहले महाराजा के आदेश पर ही राजदरबार के लिए लच्छेदार सुपारी काटी जाती थी।
महाराजा मार्तण्ड सिंह को वॉकिंग स्टिक गिफ्ट की गई, जिस पर 51 रुपए का इनाम दिया गया था। समय के साथ बाजार की मांग के अनुसार खिलौने बनाए जाने लगे। इनदिनों शहर का ऐसा कोई भी बड़ा कार्यक्रम नहीं होता जिसमें सुपारी की गणेश प्रतिमा गिफ्ट नहीं की जाती हो। बाहर से आने वाले अतिथि को सुपारी के ही खिलौने दिए जाते हैं।
गणेश प्रतिमा सबसे अधिक लोकप्रिय
पहले सुपारी की स्टिक, मंदिर सेट, कंगारू सेट, टी-सेट, महिलाओं के गहने, लैंप आदि पर अधिक फोकस रहता था लेकिन इनदिनों गणेश प्रतिमा ही सबसे अधिक लोकप्रिय हो रही है। दुर्गेश कुंदेर का कहना है कि लक्ष्मी जी की मूर्ति लोग गिफ्ट करने के लिए नहीं बल्कि अपने घरों में रखने के लिए लेते हैं। गिफ्ट करने के लिए गणेश प्रतिमा ही सबसे अधिक खरीदी जा रही है।
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