रीवा में मौजूद है दुनिया का एक मात्र 'महामृत्युंजय मंदिर', जहां होती है 'अकाल मृत्यु' से रक्षा
आपने कभी न कभी किसी परिचित को ज्योतिषी या विद्वान् पंडित द्वारा ‘महामृत्युंजय’ मंत्र के जाप की सलाह दिए जाने की बात अवश्य सुनी होगी। आपको ये भी पता होगा कि महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव का ही एक स्वरूप है, जो अकाल मृत्यु व असाध्य रोग नाशक है। परन्तु संसार में भगवान आशुतोष के महामृत्युंजय स्वरूप के प्रतीकात्मक शिवालय दुर्लभ हैं।
मध्यप्रदेश के रीवा जिले में दुनिया का एकमात्र शिव मंदिर है, जहां भगवान शिव के मृत्युंजय रूप की पूजा होती है। मान्यता है कि यहां शिव आराधना करने से आयु लंबी होती है और आने वाले संकट दूर होते हैं। इस शिवालय का महात्म्य द्वादश ज्योतिर्लिंगों के समतुल्य माना जाता है।
1001 छिद्रों वाले अदभुत श्वेत शिवलिंग हैं विराजमान रीवा स्थित महामृत्युंजय मंदिर में विराजमान शिवलिंग की बनावट संसार के बाकी अन्य शिवलिंगों से सर्वथा भिन्न है। आपको 1001 छिद्रों वाला शिवलिंग विश्व के किसी भी अन्य मंदिर में देखने को नहीं मिलेगा।
शिवलिंग का रंग आमतौर पर श्वेत रहता है, पर मौसम के साथ इनका रंग कुछ बदल जाता है। शिव पुराण के अनुसार देवाधिदेव महादेव ने महा संजीवनी महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति की थी। महादेव ने इस मंत्र का गुप्त रहस्य केवल माता पार्वती को बताया था। यहां भगवान महामृत्युंजय मंत्र के जाप से सभी मनोकामना पूरी होती है। इसी वजह से श्रद्धालु भारत के कोने-कोने से महामृत्युंजय भगवान के दर्शन के लिए यहां आते हैं।
टल जाता है अकाल मृत्यु का खतरा माना जाता है कि भगवान महामृत्युंजय के समक्ष महामृत्युंजय मंत्र के जाप से अकाल मृत्यु को भी टाला जा सकता है और अल्पायु दीर्घायु मे बदल जाती है। अज्ञात भय, बाधा और असाध्य रोगों को दूर करने और मनोकामना पूरी करने के लिए यहां मंदिर में नारियल बांधा जाता है और बिल्व पत्र चढ़ाए जाते हैं।
महामृत्युंजय मंत्र का उल्लेख शिव-पुराण में काफी विस्तार से किया गया है। यहां शिव को कालों का काल महाकाल माना जाता है। महामृत्युंजय की आराधना और मन्त्र जाप के समक्ष यम भी अपना मार्ग बदल दिया करते हैं। यही कारण है कि ज्योतिषी और पंडित बीमार व्यक्तियों को और ग्रहपीड़ा से ग्रसित व्यक्तियों को महामृत्युंजय मंत्र जप करवाने की सलाह देते हैं।
महामृत्युंजय की कृपा से हुई रीवा रियासत की स्थापना बघेल राजवंश के 21वें महाराजा विक्रमादित्य देव (वि.सं.1654-1681) ने इस इलाके के पास शिकार के दौरान एक भागते हुए चीतल के पीछे शेर को देखा। राजा यह देखकर हैरत में पड़ गए, जब शेर मंदिर वाले स्थान के पास चीतल के पास आ पहुंचा, तो उसका शिकार किए लौट गया।
आश्चर्यचकित राजा ने उस स्थान पर खुदाई कराई। जिससे गर्भ में महामृत्युंजय भगवान का सफेद शिवलिंग निकला। ज्ञातव्य हो इस सफ़ेद शिवलिंग की चर्चा शिवपुराण में महामृत्युंजय के रूप में की गई है। इसलिए यहां भव्य मंदिर का निर्माण करा शिवलिंग को स्थापित कर दिया गया।
दैवयोग से मंदिर परिसर के बगल में एक अधूरा किला पड़ा हुआ था, जिसे शेरशाह सूरी के पुत्र सलीम शाह के काल का माना जाता है। महाराज विक्रमादित्य ने इसी अधूरे किले की नींव पर भव्य किले का निर्माण कराया और रीवा को विंध्य की राजधानी के रूप में विकसित कर दिया गया।
पिछले 400 से अधिक वर्षों से आज भी यह किला महामृत्युंजय मंदिर के बगल के मौजूद है। कहा जाता है कि महामृत्युंजय भगवान् के आशीर्वाद से रीवा कभी किसी का गुलाम नहीं रहा। न मुगलों के समय में और न ही अंग्रेजों के समय में।