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History Of Rewa: यहां मौजूद शैलचित्र ये बताते हैं कि रीवा का इतिहास राजघराने से नहीं उससे हज़ारो साल पहले से है

History Of Rewa: यहां मौजूद शैलचित्र ये बताते हैं कि रीवा का इतिहास राजघराने से नहीं उससे हज़ारो साल पहले से है
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History of Rewa: जब ना राजघराना था ना कोई सेना ये तब की बात है जब सिर्फ घने जंगल में जीवन से लड़ते आदिमानव रहा करते थे

History of Rewa: मध्यप्रदेश के विंध्य क्षेत्र में एक विशालकाय पठार के ऊपर बसा रीवा (Rewa) प्राकृतिक सम्पदाओं से समृद्ध है। ऊँचे पर्वत, घने जंगल, नदियां और झरने रीवा की असली पहचान है। लोग कहते हैं रीवा का इतिहास बहुत पुराना है, हमेशा जब रीवा के इतिहास की बात होती है तो लोग मुग़लों के वक़्त रीवा राज घराने की कहानी बताने लगते हैं। बेशक रीवा की पहचान यहाँ के राजघराने से है लेकिन इसका मतलब ये नहीं के यहाँ का इतिहास भी उतना पुराना है जितना की राजघराने वजूद। आज हम आपको उस काल की बात बताने जा रहे हैं जिसके साक्ष्य आज भी मौजूद है और वो हमेशा ये याद दिलाते हैं कि विंध्य और रीवा का इतिहास दसियों हज़ार साल पुराना है।



रीवा जिले के सिरमौर वन परिक्षेत्र में एक जगह है जो योगिनी माता मंदिर के नाम से जानी जाती है। यहां माँ योगिनी का प्राचीन मंदिर है, लेकिन यहाँ कुछ उससे भी ज्यादा प्राचीन है जो आज भी अपने अस्तित्व को बनाए हुए है और लोगों को ये सीख देता है की तुमसे पहले भी कोई थे जो यहां रहा करते थे। इस जगह पर बड़ी बड़ी चट्टानें हैं जिनमे कुछ ऐसे दुर्लभ चित्र उकेरे गए हैं जिन्हे देखने पर आप को उस काल की कल्पना होने लगती है जब ना तो सभ्य मानव का कोई अस्तित्व था और ना ही कोई राजा और उसकी सेना थी। उस वक़्त सिर्फ घने विशालकाय जंगल उनमे रहने वाले विलुप्त हो चुके खूंखार जानवर और उनके साथ जीवन-मृत्यु का संघर्ष करते हुए आदिमानव रहते थे।

हज़ारों साल पुरानी बात है


भारतीय इतिहास को 3 भागों में बांटा गया है, जिसमे प्राचीन इतिहास, मध्यकालीन इतिहास और मॉर्डन इतिहास शामिल है। प्राचीन इतिहास में सबसे पुराना काल पाषाण काल होता है और उसमे भी पुराना काल पूरा पाषाणकाल के नाम से जाना जाता है ये उसी समय की बात है. सनातन धर्म के अनुसार बात करें तो शायद सतयुग से भी पहले की बात है। उस वक़्त कोई लिपि या भाषा का वजूद नहीं था लोग घर या झोपडी बना कर नहीं गुफाओं में रहते थे। खाने के लिए खेती नहीं जंगली जानवरों का शिकार करते थे और इशारों से एक दूसरे से बात करते थे। वो काल तब का है जब आदिमानव मनुष्य जाती में विकसित होने से हज़ारों साल पीछे था। जिस तरह हम अपनी यादों को संजोने के लिए फोटो खींचते हैं सेल्फी लेते हैं और अपने घर के बच्चों को दिखाते हैं उसी तरह आदिमानव भी अपने अस्तित्व को बयां करने के लिए चट्टानों में पेड़ों और फूलों सहित प्राकृतिक रंगों से चित्र बनाते थे। वही हज़ारों साल पुराने चित्र जिन्हे हिंदी में शिलालेख और अंग्रेजी में rock paintings कहा जाता है सिरमौर के जंगल में मौजूद चट्टानों में आज भी उकेरी हुईं हैं।

शिकार करते और नाचते हुए की पेंटिंग आज भी हैं


विशालकाय हाथियों की सवारी करते और जंगली जानवरों का शिकार करते हुए आदिमानवों के शैलचित्र आज भी सिरमौर के जंगलों में अपने वजूद की गाथा बयां करते हैं। उनके झूमने नाचने से लेकर वो उस काल में कैसे जीते थे कैसे रहते थे ये सब बातें उन्होंने चट्टानों में उकेर दी। ऐसा लगता है शायद उन्हें ये पता था की आने वाली पीढ़ी ये सब देख कर उनके अस्तित्व के बारे में जानेगी। आदिमानव वर्तमान मनुष्यों की तरह स्मार्ट नहीं हुआ करते थे उनके जीवन में सिर्फ अपनी जान की रक्षा करना, वंश को आगे बढ़ाना और शिकार करना ही था। फिर भी उनके अंदर अपनी गतिविधियों को संजो के रखने की बुध्दि थी।

भीमबेटका में भी शैलाशय और शैलचित्रों की भरमार है


मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल संभाग के अंतर्गत आने वाले रायसेन जिले में यूनेक्सो द्वारा विश्वधरोहर घोषित भीमबेटका में भी शैलचित्रों और शेलशयों की भरमार है। यहा शुंग /गुप्त कालीन अभिलेख और शंख मिले हैं। ऐसी मान्यता है की इस जगह का संबंध महाभारत के भीम से है। हम इस जगह के बारे में कभी और बात करेंगे, भीमबेटका का ज़िक्र इस लिए किया गया क्योंकि जैसे शिलाचित्र वहां मौजूद है वैसे सिरमौर के योगिनी माता मंदिर के शैलों में भी हैं। दुर्भाग्य से इस प्राचीन स्थल को संरक्षित किए जाने की पहल मध्यप्रदेश सरकार द्वारा अब तक नहीं की गई. पिछले 2 साल से पुरातत्व विभाग जबलपुर द्वारा प्रस्तावित डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट धूल खा रही है। जिस तरह भीमबेटका को तवज्जो दी गई उसी संरक्षण और टूरिस्म के हकदार सिरमौर के जंगलों में व्याप्त शैलचित्र भी हैं।

घूमने जाइये लेकिन तमीज से


लोग ऐसी प्राचीन स्थलों में मस्ती करने जाते हैं। अच्छी बात है खूब घूमिये लेकिन पर्यटन स्थलों में जाने पर अपनी सभ्यता का परिचय दीजिये। देखा गया है कि रीवा सहित विंध्य में जितने भी पर्यटन स्थल हाँ वहां लोग दीवारों पर 'बाबू लव्स सोना' ' गोलू लव्स पोलू' ' सोनम बेवफा है ' ये सब उटपटांग चीज़े लिख देते हैं। और हर जगह कचरा फैला कर लौट आते हैं। आप सिरमौर में मौजूद इन शिलालेखों को देखने जाइये वहां के प्राकृतिक सौन्दर्य का मजा लूटिये लेकिन उस प्राचीन स्थल को गंदा मत करिये ना दूसरों को ऐसा करने दीजिये। उन शिलालेखों को छूने की कोशिश मत कीजिये बस, बहुत ज्ञान ले लिए


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