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अब मौत के बाद भी जिन्दा हो सकते है मनुष्य, वैज्ञानिको ने खोज निकाला तरीका

Aaryan Dwivedi
16 Feb 2021 11:27 AM IST
अब मौत के बाद भी जिन्दा हो सकते है मनुष्य, वैज्ञानिको ने खोज निकाला तरीका
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नई दिल्ली: क्या आप सोच सकते हैं कि मौत होने के सालों बाद कोई फिर से जिंदा हो उठे। हालांकि जीवों की कुछ प्रजातियों में ये संभव हुआ है लेकिन मानव जाति में ऐसा कारनामा शायद ही हुआ हो। अब चिकित्सा विज्ञान की मदद से ऐसा संभव होने जा रहा है क्योंकि हिमीकरण के जरिए विज्ञानी इस तरह की कोशिशों में पूरे मन से जुट गए हैं। इसके तहत क्रोयोनिक्स तकनीक को इस्तेमाल किया जा रहा है।

अगर राह सही निकली हो तो सकता है कि मानव अपनी मौत के कुछ सालों बाद फिर से जिंदा हो सके। हालांकि वैज्ञानिकों का असल मकसद मानव को फिर से जिंदा करना नहीं बल्कि मौत के बाद शरीर को सालों साल दशकों बाद भी शरीर को संरक्षित किया जाना है। यानी यदि किसी तरह से शरीर को हानि पहुंचने से बचाया भी जा सके तो इस बात की कोई गारंटी नही है कि मानव को अन्य जीवो के जैसे पुनर्जीवित किया जा सकेगा।

क्या है ये तकनीक

ये तकनीक क्रायोजेनिक तकनीक कहलाती है। इसके तहत मृत शरीर को -0 डिग्री से -150 डिग्री में संरक्षित किया जाता है। क्रायो’ यूनानी शब्द ‘क्रायोस’ से बना है, जिसका हिंदी में अर्थ है ‘बर्फ जैसा ठण्डा’। फिलहाल साइंस अभी इतना विकसित नही हो पाया है कि वह इस तकनीक के जरिए मृत शरीर को जीवित कर सके। लेकिन इसके बावजूद अब तक तीन बड़ी साइंस कंपनियों के जरिए 350 लोगों को क्रायोजेनिक तकनीक के जरिए हिमीकृत करने की डील हो चुकी है। यानी 350 लोग इस डील को साइन कर चुके हैं कि उनके मरने के बाद उनके शरीर को क्रायोजेनिक तकनीक के जरिए -150 डिग्री सेल्सियस में हिम में दफनाया जाए ताकि उनके फिर से जिंदा होने की संभावना बन सके। हालांकि यह केवल एक संभावना के तहत किया गया है लेकिन फिर भी इस धारणा को लगातार बल मिल रहा है।

किससे मिला फिर से जीवित होने का आइडिया

आपको शायद ज्ञात न हो लेकिन क्रायोजेनिक तकनीक के जरिए दुनिया में कुछ प्रजातियां फिर से जीवित हो उठती है। इनमें आर्कटिक क्षेत्र की जमीनी गिलहरी के अलावा कछुये की कुछ प्रजाति भी शामिल हैं। वहीं हिम क्षेत्र आर्काटिका ऊनी कंबल कीड़ा भी क्रायोजेनिक तकनीक से सालों बाद फिर से जिंदा हो उठता है। जब ये जीव फिर से जीवन पा सकते हैं तो मानव क्यों नहीं और शायद इसी जिद का नतीजा है कि आज अमेरिका का क्रायोनिक्स इंस्टीट्यूट, अल्कार फ़ाउंडेशन और क्रायोरस नामक कंपनियां ऐसी डील में लगी है।

कैसे होता है शव का हिमीकरण

इस डील के तहत व्यक्ति अपनी मौत से पहले या अपने संबंधियों का पंजीकरण करवा सकता है।

व्यक्ति की मौत होने के बाद उसके शरीर को अंतिम संस्कार की बजाए कंपनी में लाया जाता है। इसके बाद उसके शव को बाहरी बर्फ़ के पैकेटों की सहायता से ठंडा करके पहले से तय संरक्षण केंद्र तक पहुंचाया जाता है। मौत के बाद जितनी जल्दी हो सके, शव को ठंडा कर जमाना पहली प्राथमिकता होती है ताकि शव की कोशिकाएं, ख़ास कर मस्तिष्क की कोशिकाएं, ऑक्सीजन की कमी से टूट कर खराब न होने पाएं।

इसके पश्चात मृत शरीर से सारा का सारा रक्त निकाल लिया जाता है और शरीर के अंगों के बचाव के लिए उसके हिमीकरण की प्रक्रिया अपनाई जाती है। रक्त निकालने के बाद शरीर में धमनीयों के जरिए हिमीकरण रोधी द्रव डाला जाता है। फिर शव की खोपड़ी मे छोटे छोटे छेद किए जाते हैं। शरीर में जो हिमीकरण रोधी द्रव डाला जाता है उसे ‘क्रायो-प्रोटेक्टेंट’ तरल कहते हैं। कंपनी कहती है कि ऐसा करने से अंगों में बर्फ नही जमती। अगर शरीर में बर्फ जम गई तो कोशिकाओं की दीवार नष्ट हो जाएगी और शरीर संरक्षित होने से पहले ही नष्ट हो जाएगा।

सबसे आखिरी पड़ाव के तहत शव को स्लीपिंग बैग मे डाल कर द्रव नाइट्रोजन मे -196 °C तापमान पर सेल में रख दिया जाता है। कंपनी का मानना है कि इस प्रक्रिया से शरीर को सौ सालों तक सुरक्षित रखा जा सकता है वहीं कुछ यह भी कहती हैं कि इतने ही समय में हिम गिलहरी जीवित हो उठती है तो मानव क्यों नहीं। हालांकि इस बात को साबित होने में भी सौ से ज्यादा साल लगेंगे क्योंकि फिलहाल अमेरिका में अमरीका में 150 से अधिक लोगों ने अपने मृत शरीर को तरल नाइट्रोजन से ठंडा कर रखवाया है। पूरे शरीर को हिमीकरण के जरिए जमा कर सुरक्षित रखने में करीब 1,60,000 डॉलर ख़र्च हो सकता है।

किसकी है संकल्पना

2011 में प्रसिद्ध वैज्ञानिक राबर्ट एटींगर ने अपनी मां के शरीर को भविष्य मे पुनर्जीवन की आशा मे संरक्षित करवाया था। उनकी संकल्पना है कि हिम जीवों के साथ साथ मानव भी क्रायोजेनिक तकनीक के जरिए फिर से जीवन पा सकता है। राबर्ट एटींगर ने अपनी दोनों पत्नियों के मौत के बाद उनके शव को भी हिमीकृत करवाया और राबर्ट एटींगर ने अपनी खुद की मौत के बाद भी इसी तरह अपना शरीर हिमीकृत करवाया। ये वही राबर्ट एटींगर हैं जिन्होंने 1964 अमरता की संभावना का घोषणापत्र जारी किया था। “द प्रास्पेक्ट आफ़ इम्मोर्टलीटी नामक

इस घोषणापत्र में क्रायोजेनिक तकनीक के जरिए मानव के फिर से जीवन पाने की संभावनाओं पर पूरी थ्योरी लिखी गई है। पहले यह ६४ पेज का था जो विज्ञानियों के नए पहलुओं के सहयोग से २०० पन्नों का बन गया है।<

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