krishna janmashtami 2021 : भगवान कृष्ण का 5248वां जन्मोत्सव कल, जानिए पूजा विधि, व्रत कथा व महत्व
नई दिल्ली। कृष्ण जन्माष्टमी की कल हर जगह धूम रहेगी। इस दिन भक्त कान्हा की विशेष झांकियां संजाते हैं। उनकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं। भक्त दिनभर व्रत रहकर भगवान कृष्ण के जन्मोपरांत व्रत का पारण करते हैं। जन्माष्टी के मौके पर जगह-जगह दही हण्डी सजाई जाती हैं। मटकी फोड़ प्रतियोगिता आयोजित की जाती हैं। दही हण्डी कार्यक्रम में दूर-दूर की टीमें हिस्सा लेती हैं। जहां वह क्रम बनाकर दही हण्डी फोड़ते हैं। जिसे देखने जमकर भीड़ इकट्ठा होती है। दही हण्डी फोड़ने वाली टीम को ईनाम भी दिया जाता है। ऐसे में कल जब देशभर में कृष्ण जन्माष्टमी की धूम रहेगी। तो चलिए जानते हैं भगवान कृष्ण की आराधना करने का शुभ मुर्हूत, कथा व परौणिक मान्यताएं।
शुभ मुर्हूत
हिन्दू पंचांगों की माने तो कृष्ण जन्माष्टी का त्यौहार भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह तिथि 30 अगस्त 2021 को पड़ रही हैं। इस जन्माष्टमी हर्षण योग बन रहा हैं। ज्योतिषविद् बताते है कि यह योग बेहद शुभ एवं मंगलकारी है। इस योग में किए गए कार्य सफलता देने वाला है। इस साल अष्टमी तिथि की शुरूआत 29 अगस्त को रात 11.25 से शुरू होगी। जिसकी समाप्ति 30 अगस्त को 1.59 बजे होगी। ज्योतिषाचार्यो की माने तो पूजा का शुभ समय 30 अगस्त की रात्रि 11.59 बजे से 31 अगस्त की 12. 44 बजे तक रहेगा। यानी कि 45 मिनट कृष्ण पूजन के लिए अति शुभ है।
पूजन विधि
कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व हिन्दू धर्म के लिए बेहद खास है। इस दिन कृष्ण भक्त सुबह जल्दी उठकर मंदिर को अच्छी तरह से साफ व स्वच्छ कर लें। एक साफ चौकी में पीले रंग का स्वच्छ वस्त्र डाले, और कान्हा की प्रतिमा स्थापित करें। मंत्रोच्चार के बीच इन सामग्रियों जैसे घी, दूध, दही, गंगाजल, चंदन, धूप, दीप, अगरबत्ती, अक्षत, माखन, मिश्री, तुलसी का पत्ता, भोग सामग्री, शहद आदि इकट्ठा करके विधि-विधान से पूजा-अर्चना करें।
व्रत कथा व महत्व
पौराणिक कथाओं की माने तो कृष्ण व चाणूर का मल्लयुद्ध बेहद आश्चर्यजनक था। चाणूर की अपेक्षा उस समय कृष्ण बालरूप में थे। भेरी शंख और मृदंग ध्वनि के बीच कंस और केशी इस युद्ध को मथुरा की जनसभा के मध्य में देख रहे थे। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने पैरों में चाणूर को फंसाकर उसका वध कर दिया। चाणूर की मृत्यु के बाद कृष्ण का मल्लयुद्ध केशी से हुआ। इस युद्ध में केशी भी कृष्ण के हाथों मारा गया। केशी के मृत्यु बाद मल्लयुद्ध देख रहे सभी लोग श्रीकृष्ण की जय-जयकार करने लगे। बालक कृष्ण द्वारा चाणूर और केशी का वध होना कंस को झकझोर देने वाला था। जिस पर कंस ने सैनिकों को आदेश दिया कि तुम सभी अस्त्र-शस्त्रों से युक्त होकर कृष्ण से युद्ध करो।
तब श्रीकृष्ण ने गरुड़, बलराम एवं सुदर्शन चक्र का ध्यान किया। बलदेव जी सुदर्शन चक्र लेकर गरुड़ पर सवार होकर आए। जिस पर बालक कृष्ण ने सुदर्शन चक्र को उनसे लेकर स्वयं गरुड़ की पीठ पर सवार होकर न जाने कितने ही राक्षसों और दैत्यों का वध किया, कितनों के शरीर अंग-भंग कर दिए। इस भयावह युद्ध में श्रीकृष्ण एवं बलदेव ने असंख्य दैत्यों का विनाश किया। बलराम जी ने हल से तो कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से। माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को विशाल दैत्यों के समूह का सर्वनाश हो गया।
अब अंत में दुराचारी कंस बचा था। जिस पर कृष्ण ने कहा कि हे अधर्मी, दुराचारी, दुष्ट अब मैं इस युद्ध स्थल पर तुझसे युद्ध करके, तेरा वध करके इस संसार को तुझसे मुक्त कराउंगा। आगे श्रीकृष्ण कंस के केशों को पकड़ लिया और उसे घूमाकर जमीन में पटक दिया। जिससे उसकी वही पर मृत्यु हो गई।
कंस के मृत्युोपरांत देवताओं ने शंखघोष व पुष्प की वर्षा की। सभी जन समुदाय कृष्ण के जयकारे लगाने लगे। कंस की मृत्यु पर नंद, देवकी, वसुदेव, यशोदा सहित इस संसार के सभी प्राणियों में हर्ष व्याप्त हो गया।
भगवान कृष्ण द्वारा पापियों का सर्वनाश किए जाने की कथा नारद से सुनकर इन्द्र देव ने कहा कि हे ऋषिवर हमें जन्माष्टमी व्रत का पूर्ण विधान बताएं। इस व्रत को करने से क्या पुण्य की प्राप्ति होती है। इसे करने की विधि क्या है।
तब नारद जी कहे है कि हे इन्द्र देव। भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि यानी कि कृष्ण जन्माष्टमी को इस व्रत को करना चाहिए। इस दिन ब्रह्मचर्य आदि नियमों का पालन करें। श्रीकृष्ण की प्रतिमा स्थापित करें। श्रीकृष्ण की प्रतिमा स्वर्ण कलश पर स्थापित कर धूप, पुष्प, चंदन, कमलपुष्प आदि से श्रीकृष्ण प्रतिमा को वस्त्र से वेष्टित कर विधि-विधान से पूजन अर्चन करें। इस दौरान गुरुचि, छोटी पीतल एवं सौंठ को श्रीकृष्ण के आगे अलग-अलग रखें। फिर भगवान विष्णु के दस रूपों को देवकी सहित स्थापित करें।
हरि श्री विष्णु के सान्निध्य में दस अवतारों, गायों, वत्स, कालिया, यमुना नदीए गोपिका, यशोदा, वसुदेव, नंद, बलदेव, देवकी, गोपगण और गोपपुत्रों का विधिपूर्वक पूजन करें। आठ वर्ष पूरे हो जाने पर इस व्रत का उद्यापन करें।
यथासंभव श्रीकृष्ण की स्वर्ण प्रतिमा बनाएं। इसके बाद मत्स्य कूर्म इस मंत्र द्वारा अर्चनादि करें। आचार्य ब्रह्मा तथा 8 ऋत्विजों का वैदिक रीति से वरण करें। हर दिन ब्राह्मण को दक्षिणा और भोजन देकर प्रसन्न करें। नारद जी कहते है कि जो प्राणी जन्माष्टमी के इस व्रत को करता है, वह ऐश्वर्य एवं मुक्ति को प्राप्त करता है। उसे आयु, कीर्ति, यश, लाभ, पुत्र व पौत्र को प्राप्त कर इसी जन्म में सभी प्रकार के सुखों को भोग करता है और अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है। आगे नारद जी कहते है कि जो प्राणी भक्तिभाव से श्रीकृष्ण की कथा को सुनते हैं, उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। वह व्यक्ति उत्तम गति को प्राप्त करता है।
नोट- इस आलेख में दी गई जानकारी पौराणिक मान्यताओं एवं मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित हैं। किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले विशेषज्ञों से सलाह व स्वयं के विवेक से निर्णय लें। इस आलेख में दी गई जानकारी पूर्णतः सत्य एवं सटीक है इसकी पुष्टि रीवारियासत डॉट कॉम नहीं करता है।