Holika Dahan Real Place: जानें आज कहां है वह स्थान और खम्भा जिससे प्रगट हुए थे भगवान नरसिंह, धूं-धूं कर जली थी होलिका
Real Holika Dhan Place In Hindi / होलिका का दहन कहाँ हुआ था / Holika Dahan History / होलिका को भगवन नरसिंह ने कहाँ जलाया था? : होली का त्यौहार आते ही हिरण्यकश्यप, उसकी बहन होलिका, और पुत्र भक्त प्रहलाद की यादा ताजा हो जाती है। ऐसे में भगवान विष्णु के 12 अवतारों में से एक नरसिंह अवतार का भी जिग्र किया जाता है। होली का त्यौहार आते ही घरों में इसकी चर्चा भी होती है। क्योंकि मान्यता है कि होली का त्यौहार इन सभी पात्रों से जुड़ा हुआ है। ऐसे आज के युवा के मन में एक प्रश्न उठता होगा कि वह स्थान कहां है जिससे भगवान नरसिंह प्रगट हुए थे। साथ ही जहां होलिका जली थी वह कहां है। आज हम इसी सम्बंध में चर्चा करेंगे।
क्या है प्रचलित कथा
कहा जाता है कि हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा से वरदान पाया था कि वह न तो किसी अस्त्र से मारा जा सकता है न ही किसी शस्त्र से, उसे न दिन में मार सकता है और न ही रात में, न मनुष्य मार सकता है न ही पशु, न आकाश में न धरती में, न घर में न बाहर में मार सकता है। ऐसे में वह निरंकुश हो गया। अत्याचार करने लगा। लेकिन हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का भक्त था। जिसे मारने के लिए अपनी बहन होलिका को बुलाया जो आग में नही जलती थी। लेकिन भगवान की कृपा से होलिका आग में जल जाती है और भक्त प्रहलाद बच जाते हैं।
ऐसे में हिरण्यकश्यप कोधित होकर एक खम्भे में लात मारकर कहता है कि क्या इसमें भी भगवान है। कहा जाता है कि जैसे ही उस स्तम्भ में हिरण्यकश्यप ने लात मारी तो भगवान नरसिंह प्रगट हुए और उसका अंत कर दिया।
कहां है वह स्थान
कहा जाता है कि वह स्थान बिहार के पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखंड के सिकलीगढ़ में है। जहां पर हिरण्यकश्यप का बधा किया गया था। वह खम्भा जिससे भगवान हिरण्यकश्यप प्रगट हुए थे वह भी वहीं स्थित है। उस स्तम्भ या खम्भा को माणिक्य स्तम्भ कहा जाता है। इसकी अब पूजा भी होती है।
माणिक्य स्तम्भ की विशेषता
इस स्तम्भ के सम्बंध में आज भी यह कहा जाता है कि इसे कइ बार तोड़ने का प्रयास किया गया। लेकिन वह स्तम्भ नही टूटा। थोड़ा झुक जरूर गया है। आज वहा की देखरेख प्रहलाद स्तम्भ विकास ट्रस्ट कर रहा है। इसके सम्बंध में चर्चा भागवत पुराण के सप्तम स्कंध के अष्टम अध्याय में है।
मौजूद है हिरण नदी
बताया जाता है कि इस स्तम्भ के कुछ दूरी में एक नदी बहती है। उस नदी का नाम हिरण नदी है। बताया जाता है कि माणिक्य स्तम्भ में छेद है। जिसमें पत्थर डालने पर वह हिरण नदी में पहुंच जाता है। लेकिन इसके सम्ब्ांध में अब कोई खास बात नही होती है।
यहीं जली थी होलिका
बताया जाता है कि वहीं माणिक्य स्तम्भ के पास में ढेर सारी लकडी एकत्र कर भक्त प्रहलाद को मारने के लिए होली जलाई गई थी। प्रहलाद को लेकर हिरण्यकश्यप की बहन होलिका बैठी थी। लेकिन वह जल गई और भक्त प्रहलाद जीवित बच गये थे।
होली की राख लगाते हैं लोग
कहा जाता है कि जब प्रहलाद बच गये तो लोगों ने उनके बचने की खुशी में उसी होली की राख को एक दूसरे पर लगाकर खुशियां मनाई थी। कुछ हद तक आज भी यह परंपरा प्रचलन में है।
नोट-ः उक्त समाचार में दी गई जानकारी सूचना मात्र है। रीवा रियासत समाचार इसकी पुष्टि नहीं करता है। दी गई जानकारी प्रचलित मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है।