अध्यात्म

Kanwar Yatra 2023: कांवड़ यात्रा क्या है, कांवड़ यात्रा की परम्परा कब से शुरू हुई, कांवड़ यात्रा का महत्त्व क्या है

Abhijeet Mishra | रीवा रियासत
12 July 2023 5:00 PM IST
Updated: 2023-07-12 11:28:37
Kanwar Yatra 2023: कांवड़ यात्रा क्या है, कांवड़ यात्रा की परम्परा कब से शुरू हुई, कांवड़ यात्रा का महत्त्व क्या है
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What is Kanwar Yatra: सनातन धर्म में कांवड़ यात्रा का बहुत महत्त्व है, हर साल करोड़ों शिव भक्त इस यात्रा के लिए पैदल निकलते हैं

Kanwar Yatra 2023: भारत में दो साल बाद कांवड़ यात्रा शुरू होने वाली है, कांवड़ यात्रा 2023 का आरंभ हो गया है इस बार 4 करोड़ से ज्यादा शिव भक्त कांवड़ यात्रा के लिए प्रस्थान करने वाले हैं. केंद्र से लेकर राज्य सरकार कांवड़ यात्रा की तैयारी में जुट गई हैं. कहीं भी कांवड़ यात्रियों को परेशानी का सामना ना करना पड़े इसका खास ध्यान रखा जा रहा है.


कांवड़ यात्रा के बारे में तो हम सब जानते हैं, लेकिन इसे गहराई से जानने वाले बहुत कम होते हैं. सड़कों में नंगे पैर सैकड़ों किलोमीटर चलते हुए महाकाल के नारे लगाने वाले भगवाधारी शिवभक्त, आखिर क्यों कांवड़ यात्रा में जाते हैं इसे आज हम गहराई से समझेंगे।

कांवड़ यात्रा क्या है


What Is Kanwar Yatra: हर साल सनातनी शिवभक्त श्रावण मास मतलब सावन के महीने में हरिद्वार को तारने वाली गंगा नदी के पवित्र जल को अपनी कांवड़ में भरकर पदयात्रा के लिए प्रस्थान करते हैं. और अपने गांव लौटकर शिवलिंग में गंगाजल का अर्पण करते हैं. इसी यात्रा को कांवड़ यात्रा कहा जाता है. कहने के लिए कांवड़ यात्रा एक धार्मिक त्यौहार है लेकिन यह रिवाज सामाजिक सरोकार से जुड़ा हुआ है. कांवड़ यात्रा का भगवान शिव और जल से संबध है. जल के बिना जीवन संभव नहीं है, शिव के बिना संसार की कल्पना नहीं की जा सकती। कांवड़ यात्रा का उदेश्य इस संसार में प्रत्येक जीवित प्राणी के जीवन से जुड़ा हुआ है.

कांवड़ यात्रा हरिद्वार से क्या संबंध है


What is the Relation of Kanwar Yatra to Haridwar: कांवड़ यात्रा हरिद्वार से शुरू होती है, जहां श्रद्धालु करोड़ों की संख्या में पहुंचते हैं और गंगा जल लेकर अपने गांव के लिए निकल पड़ते हैं. कांवड़ यात्रा का हरिद्वार से नाता यह है कि सावन में महादेव शिव अपने ससुराल राजा दक्ष नई नगरी कनखल मतलब हरिद्वार में निवास करते हैं. इस महीने श्रीहरि विष्णु शयन में जाते हैं इसी लिए तीनों लोकों की देखभाल भगवान शिव करते हैं. इसी लिए कांवड़िए गंगा जल लेने के लिए हरिद्वार जाते हैं.

कांवड़ यात्रा का महत्त्व क्या है

What is The Importance of Kanwar Yatra: धार्मिक रूप से देखा जाए तो शिवभक्त अपने बाबा भोलेनाथ की कृपा पाने के लिए कांवड़ यात्रा में जाते हैं. जिन शिवालयों तक गंगा नहीं पहुँचती हैं वहां तक पवित्र जल ले जाने का काम कांवड़िए करते हैं. ऐसी मान्यता है कि भोलेनाथ शिव शम्भू अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं. कांवड़ यात्रा की कहानी के पीछे के विज्ञान को देखा जाए तो इसका संबंध जल और जीवन से है. जल के बिना जीवन संभव नहीं है. इस यात्रा का अर्थ हर सुदूर क्षेत्र तक जल पहुँचाने का है.


जरूरी नहीं है कि आप गंगाजल लेने के लिए हरिद्वार जाएं बड़ी संख्या में लोग मेरठ के औघड़नाथ, पुरा महादेव, वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर, झारखंड के वैद्यनाथ मंदिर और बंगाल के तारकनाथ मंदिर में पहुंचना ज्यादा पसंद करते हैं

कांवड़ यात्रा का इतिहास

History of Kanwar Yatra: मान्यता है कि भगवान परशुराम शिव जी के बड़े भक्त थे, परशुराम जी ने ही सबसे पहले कांवड़ लेकर बागपत से पास पुरा महादेव की यात्रा पर गए थे. उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर से गंगा का जल लेकर महादेव का जलाभिषेक किया था. ऐसा भी कहा जाता है कि श्रवणकुमार ने अपने माता-पिता को कंधे में बैठकर हरिद्वार लेकर गए थे जहां उन्हें गंगास्नान कराया था, वापसी में उन्होंने अपने साथ गंगाजल लिया था और शिवलिंग का अभिषेक किया था. त्रेतायुग में श्रीराम जी न भी भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था.

रावण ने भी की थी कांवड़ यात्रा

ऐसी मान्यता भी है कि जब समुद्र मंथन से निकले हलाहल को महाकाल ने पिया था तब उनका कंठ नीला हो गया था. हलाहल के प्रभाव को कम करने के लिए लंका के राजा दशानन ने महादेव का जलाभिषेक किया था, और तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी.

कांवड़ यात्रा में क्या होता है

What Happens In Kanwar Yatra: कांवड़ यात्रा के लिए हरिद्वार जाने वाले कांवड़िए अपनी पीठ में बांस से बनी टोकरी और उसमे कांवड़ लेकर जाते हैं. हरिद्वार जाने के बाद वहां से उसी कांवड़ में पवित्र गंगाजल लेते हैं और अपने शहर-गाँव लौटकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं. करोड़ों लोग अपने घर से पैदल निकलते हैं और सैकड़ों किमी चलकर हरिद्वार जाते हैं. बहुत से वापस पैदल ही लौटते हैं और कई पब्लिक ट्रांसपोर्ट से वापस आते हैं.

इस दौरान कांवड़िए नशे से दूर रहते हैं, बिना नहाए कांवड़ को स्पर्श नहीं करते, कंघी, तेल, साबुन का इस्तेमाल नहीं करते, आराम करने के लिए चारपाई और कुर्सी का इस्तेमाल तक नहीं करते।

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