गयाधाम पवित्र तीर्थ स्थल कैसे बना? जानें गयासुर की कथा..
Gayadham Katha Hindi Mei, Gayasur Ki Kahani: गयाधाम पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। यहां भगवान श्री विष्णु के पद चिन्ह मौजूद है। उनकी पूजा की जाती है। गया में भगवान श्री विष्णु के होने के बाद भी गया के नाम की प्रसिद्धि क्यों है। इस पर विचार करने के लिए गयासुन की कथा जाननी होगी।
क्या है कथा
ब्रह्माजी जब सृष्टि की रचना कर रहे थे उस दौरान उनसे असुर कुल में गया नामक असुर की रचना हो गई। वहीं कई जगह यह भी कहा जाता है कि गया भस्मासूर के वंशज हैं। गया असुरों के संतान रूप में पैदा नहीं हुआ था इसलिए उसमें आसुरी प्रवृति नहीं थी। वह देवताओं का सम्मान और उनकी उपासना किया करता था।
गयासुर ने की घोर तपस्या
कहते हैं गयासुर अपने पूण्य कर्मो से जगत में विख्यात होना चाहता था। वह चाहता था कि अच्छे कर्म से इतना पुण्य अर्जित करे ताकि उसे स्वर्ग मिले। इसके लिए गयासुर ने भगवान श्री विष्णु की कठोर तपस्या कर उन्हे प्रसन्न किया।
भगवान श्री विष्णु हुए प्रसन्न
भगवान ने वरदान मांगने को कहा। ऐसे में गयासुर ने भगवान से मांगा कि आप मेरे शरीर में वास करें। जो मुझे देखे उसके सारे पाप नष्ट हो जाएं। वह जीव पुण्यात्मा हो जाए और उसे स्वर्ग में स्थान मिले।.यह सभी वरदान भगवान श्री विष्णु ने दे दिया।
पापी भी जाने लगे स्वर्ग
गयासुर को जब भगवान से यह वरदार मिल गया तो उसे देखकर पानी भी स्वर्ग जाने लगे। यमपुरी का संतुलन बिगडने लगा। देवता आदि सभी चिंतित हो गये। सभी इस समस्या से मुक्ति पाने के लिए भगवान श्री ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। उनसे पूरी बात बताई गई। निवेदन किया गया कि इस समस्या से मुकित पाने में मदद करें।
भगवान श्री ब्रह्मा ने बनाई योजना
शास्त्रो ंमें कहा गया है कि भगवान श्री ब्रह्मा ने गयासुर का को एक जगह स्थिर करने के लिए एक योजना बनाई। ब्रह्मा जी अपनी योजना के अनुसार गयासुर के पास पहुंचे। उनसे कहा कि हमें एक यज्ञ करना है। इसके लिए पवित्र स्थल चाहिए। जिस पर गयासुर ने कहा आप हमारी पीठ पर यज्ञ करें।
यज्ञ की तैयारी हुई और गयासुर अपनी पीठ पर यज्ञ करवाने के लिए लेट गया। गयासुर के लेटते ही 5 कोस तक उसका शरीर फैल गया। जिस पर बैठकर सभी देवी-देवताओं ने यज्ञ किया। इतने विशाल यज्ञ के बाद भी गयासुर का शरीर अस्थिर रहा। जिस पर देवता चिंतित हो गये।
इस दौरान देवाताओं ने एक और योजना बनाई। सभी ने एक मत होकर कह कि अगर भगवान श्री विष्णु भी यज्ञ में शामिल हो जायें तो फिर यह स्थिर हो सकता है। फिर देवताओं ने ऐसा ही किया।
कहते हैं जब श्री विष्णु आकर यज्ञ में बैठ गये तो उनके भार से गयासुर स्थिर हो गया। लेकिन गयासुर के इस त्याग को देखकर भगवान श्रीविष्णु ने गयासुर से वर मागने के लिए कहा।
गयासुर को श्रीविष्णु ने दिया वरदान
गयासुर ने भगवान श्रीविष्णु से वर मागते हुए कहा कि श्री हरि आप मुझे पत्थर की शिला बना दें और यहीं स्थापित कर दें। साथ ही गयासुन ने कहा कि हे नारायण मेरी इच्छा है कि आप सभी देवताओं के साथ अप्रत्यक्ष रूप से इसी शिला पर विराजमान रहें। यह स्थान मृत्यु के बाद किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों के लिए तीर्थस्थल बन जाए।
ऐसे में श्री विष्णु ने कहा- गया तुम धन्य हो। तुमने लोगों के जीवित अवस्था में भी कल्याण का वरदान मांगा और मृत्यु के बाद भी मृत आत्माओं के कल्याण के लिए वरदान मांग रहे हो। तुम्हारी इस कल्याणकारी भावना से पितरों के श्राद्ध-तर्पण आदि करने यहां आयेगा सभी मृत आत्माओं को पीड़ा से मुक्ति मिलेगी।
श्रीविष्णु ने कहा कि गया में विधि के अनुसार पिंडदान श्राद्ध फल्गू नदी के तट पर विष्णु पद मंदिर में व अक्षयवट के नीचे श्राद्ध आदि करने से पितरों का कल्याण होगा।