शहडोल

1967 में तख्तापलट में विंध्य की थी बड़ी भूमिका, उस दौर में REWA को मिली थी कई सौगाते, बस एक इशारे में गिर गई थी सरकार

Aaryan Dwivedi
16 Feb 2021 11:44 AM IST
1967 में तख्तापलट में विंध्य की थी बड़ी भूमिका, उस दौर में REWA को मिली थी कई सौगाते, बस एक इशारे में गिर गई थी सरकार
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रीवा। प्रदेश की राजनीति में आए सियासी भूचाल ने इनदिनों पूरे देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। बीते कई दिनों से हर पल राजनीतिक घटनाक्रम बदल रहे हैं।

रीवा। प्रदेश की राजनीति में आए सियासी भूचाल ने इनदिनों पूरे देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। बीते कई दिनों से हर पल राजनीतिक घटनाक्रम बदल रहे हैं। कांग्रेस की सरकार के सामने बहुमत का संकट खड़ा हो गया है। इसका अंतिम परिणाम क्या निकलेगा यह तो विधानसभा के सदन में बहुमत परीक्षण के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा। इस घटनाक्रम के साथ ही प्रदेश की राजनीति में 1967 में हुए राजनीतिक तख्ता पलट की भी चर्चा शुरू हो गई है। वर्तमान पीढ़ी का बड़ा हिस्सा इस घटनाक्रम से अनभिज्ञ है। Vindhya had a major role in the coup in 1967, the government had fallen in just one gesture

जानकार बताते हैं कि 1967 में द्वारिका प्रसाद मिश्रा की सरकार गिराने के लिए ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने ब्यूह रचा था। जिसके नायक रामपुर बघेलान के नेता गोविंद नारायण सिंह थे। सिंह ने ही कांग्रेस और अन्य दलों के विधायकों को एक जुट किया और सदन में तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारिका प्रसाद को झटका देते हुए अविश्वास प्रस्ताव पारित करा दिया। इसके बाद विधायकों की ओर से गोविंदनारायण सिंह को नेता चुना गया और उन्होंने मुख्यमंत्री की कमान संभाली। उन दिनों मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के हिस्से में ग्वालियर और विंध्य क्षेत्र ही राजनीतिक सुर्खियों में रहे हैं।

उस दौरान प्रेम सिंह सिंगरौली, गोपालशरण सिंह, रामहित गुप्ता सतना आदि ने भी सरकार बदलने में मुख्य भूमिका निभाई जिसके चलते इन्हें मंत्री भी बनाया गया था। इस घटनाक्रम में सीधी के चंद्रप्रताप तिवारी का भी अहम रोल था। सदन में उन्होंने जिस मुखरता के साथ कदम उठाए उसकी चर्चा अब तक होती है। एक बार फिर प्रदेश की राजनीति में अस्थिरता उत्पन्न हुई है, सिंधिया घराने के ज्योतिरादित्य ने कांग्रेस से बगावत कर दिया है, समर्थन में २२ विधायकों ने भी इस्तीफा दे दिया है।

इस बार के घटनाक्रम मेें विंध्य के नेता वह सुर्खियां नहीं बना पाए हैं, जो पिछले उलटफेर में थी। कांग्रेस के बड़े नेता अजय सिंह राहुल को कुछ जिम्मेदारी मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जरूर दी है लेकिन वह भी सुर्खियों से बाहर हैं। - इकलौती संविद सरकार में क्षेत्र का सीएम मध्यप्रदेश में 1967 में हुए राजनीतिक तख्तापलट देश की राजनीति का ऐतिहासिक पल माना जाता है। यह ऐसा अवसर था जब संयुक्त विधायक दल(संविद) की सरकार बनी थी। जिसमें विपक्ष ही नहीं था। इस अकेले राजनीतिक प्रयोग में विंध्य क्षेत्र के नेता गोविंद नारायण सिंह मुख्यमंत्री बने थे। यह घटनाक्रम अब तक नेताओं के लिए नजीर बना है। - उसी दौर में रीवा को मिली कई सौगातें रीवा में विकास की नींव संविद सरकार के दौर में भी रखी गई। कई ऐसे कार्य हुए उस दौरान जो अब तक विकसित रीवा का बड़ा उदाहरण गिने जाते हैं। तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह ने अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय की स्थापना कराई। उस दौरान प्रदेश का इकलौता सैनिक स्कूल, श्यामशाह मेडिकल कालेज सहित कई बड़े शिक्षण संस्थान रीवा में स्थापित कराए गए। इंजीनियरिंग कालेज, एजी कालेज आदि के विस्तार की भी स्वीकृति दी गई। रीवा में इतने बड़े शिक्षण संस्थानों की स्थापना को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री का विरोध भी हुआ लेकिन उन्होंने यह सौगातें दिलाई। इसके बाद से अब तक कोई उस तरह के बड़े संस्थान नहीं लाए गए हैं। कई बार यह उदाहरण भी वर्तमान नेताओं के सामने दिया जाता है।

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