शहडोल

21 वर्ष का हुआ यह जिला, कभी रीवा राज्य की राजधानी हुआ करता था

Aaryan Dwivedi
16 Feb 2021 11:38 AM IST
21 वर्ष का हुआ यह जिला, कभी रीवा राज्य की राजधानी हुआ करता था
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रीवा/उमरिया। शनिवार को उमरिया जिला 21 वर्ष का हो गया। 21 वर्ष पूर्व 6 जुलाई 1998 को उमरिया मध्यप्रदेश में नए जिले के रूप मे अस्तित्व में आया था। राजनैतिक द्वंद और लगातार प्रयास के बाद जब उमरिया जिला बना तो यहां के लोगों में उम्मीद की एक नई किरण उत्पन्न हुई। उमरिया के इतिहास के बारे में जानकारी देते हुए त्रिभुवन प्रताप सिंह ने नईदुनिया को बताया कि प्राचीनकाल से लेकर रीवा रियासत के 22 वें शासक विक्रमादित्य जूदेव तक सम्पूर्ण रीवा राज्य की राजधानी होने का गौरव उमरिया की इस बाँधवभूमि को प्राप्त रहा है।

1952 में शहडोल में हुआ था समाहित त्रिभुवन प्रताप सिंह ने बताया कि 1921 के रीजेंसी काल से रीवा रियासत का दक्षिणी जिला रहे उमरिया को स्वतंत्रता पश्चात राजनैतिक षड़यंत्र का शिकार होना पड़ा। साल 1952 मे तत्कालीन सरकार द्वारा इसे तोड़ कर शहडोल में समाहित करने का फरमान जारी कर दिया गया। यह उमरिया के लोगों के लिए किसी बज्रपात से कम नहीं था। सरकार के निर्णय से आहत लोगों ने इसका पुरजोर विरोध किया। कहा जाता है कि जब शासकीय रिकार्ड उमरिया से शहडोल ले जाया जा रहा था, तब व्यथित नागरिक ट्रकों के आगे गड्ढे खोद कर लेट गए। जनता के तीव्र विरोध के बावजूद जिला मुख्यालय तो स्थान्तरित हो गया परंतु जिला अस्पताल कुछ दिनों तक यहीं से संचालित होता रहा। कालांतर में वह भी जाता रहा।

1972 से उठी जिला बनाने की मांग कहा जाता है कि समय ही इतिहास की भूलों को सुधारने का अवसर भी देता है। जिले के साथ भी यही हुआ, वर्ष 1972 में उमरिया कलरी का पुनरोद्धार करने आये तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व। प्रकाशचंद्र सेठी के समक्ष रणविजय प्रताप सिंह ने नागरिकों की भावना को रखा और उमरिया को पुनः जिला बनाने की मांग की। बस यहीं से शुरू हुआ अपने गौरव को पाने का नया संघर्ष। इसके लगातार राजनैतिक प्रयास होते रहे जिसका नतीजा 1980 मे जिला पुनर्गठन आयोग के रूप में सामने आया। स्वर्गीय बाबू साहब के नेतृत्व में उमरिया के गणमान्य नागरिकों द्वारा आयोग से भेंट की और उनके समक्ष उमरिया को जिला बनाने का औचित्य और अनिवार्यता के संबंध में पुरजोर दलीलें रखी।

लोगों ने खून से लिखा पत्र वर्ष 1990 में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व। सुंदरलाल पटवा की सरकार द्वारा उसी जिला पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के आधार पर उमरिया सहित 16 जिलों के गठन की घोषणा कर दी गई किन्तु उनका यह फैंसला कानूनी उलझनों में फंस कर रह गया। वर्ष 1998 में प्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की सरकार द्वारा 16 में से 10 जिलों के गठन की घोषणा की गई। इस सूची से भी उमरिया गायब था।जिस दिन यह खबर आई, उस वक्‌त तत्कालीन विधायक अजय सिंह ने सतना जाकर उमरिया को जिला न बनाने के विरोध में उन्होंने वहीं पर मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा सौंपा और उमरिया आकर संघर्ष शुरू कर दिया। उमरिया को जिला बनाने की मांग को लेकर अजय सिंह के नेतृत्व में कई दिन तक आंदोलन चला। इस आंदोलन में समाज के हर वर्ग ने हिस्सा लिया। रैलियां, धरने जिलाबन्द जैसे प्रदर्शन हुए।इतना ही नहीं लोगों ने अपने खून से सरकार को पत्र तक लिखे।

सरकार को लेना पड़ा फैसला जनता और जनप्रतिनिधियों की नाराजगी और हो रहे उग्र प्रदर्शनों तथा उनकी भावना के आगे अंततः सरकार को झुकना पड़ा। मई1998 में राज्य सरकार ने शेष 6 जिलों के लिए पूर्व मुख्य सचिव एमएस सिंहदेव के रूप एक सदस्यीय आयोग बनाया गया। जिसने उमरिया आ कर लोगों से बात की। जिसके बाद क्षेत्रीय विधायक के नेतृत्व में सैकड़ों की संख्या में नागरिक राजधानी भोपाल पहुंच गए। जहां मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह एवं आयोग के अध्यक्ष सिंहदेव के समक्ष पुनः जिले की मांग को पूरी ताकत के सांथ रखा। नागरिकों के लंबे और कठिन संघर्ष का प्रतिफल 6 जुलाई 1998 को उमरिया जिले के रूप में यहां के लोगों को मिला।

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