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Happy Navratri 2022: मैहर वाली माता का नाम 'मैहर' कैसे पड़ा..इसके पीछे एक दिलचस्प किस्सा है, मंदिर विक्रम सम्वत 559 से स्थापित है
Maihar Sharda Mata
Happy Navratri 2022: आज नवरात्रि का पहला दिन है आज हम आपको विंध्य को सद्बुद्धि देने वाली माँ शारदा यानि के मैहर वाली माता की कृपा के बारे में बताने जा रहे हैं। माँ के दर्शन मात्र से दुःख दर्द दूर हो जाते हैं नवरात्री के पर्व में माँ के दर्शन हो जाएं तो यह स्वर्ग पा लेने जैसा अनुभव होता है। हम अपने पाठकों तक माँ का आशीर्वाद पहुंचाने के लिए 'मैहर माता' (Maihar Sharda Mata) से जुड़े एक दिलचस्प किस्से को बताने वाले हैं। आज का ये लेख माँ शारदा को समर्पित
मध्यप्रदेश के जिला सतना में एक जगह है 'मैहर' जो 'मैहर वाली माता' के नाम से जाना जाता है. कोई कहता है कि मुझे मैहर जाना है तो लोग ये समझ जाते हैं की वो माँ के दर्शन के लिए जा रहा है। माँ शारदा का मंदिर त्रिकूट पर्वत की चोटी पर स्थित है जिसकी ऊंचाई 500 फ़ीट से अधिक है। इस पहाड़ का अकार तिकोना है किसी पिरामिड की तरह. दर्शनार्थियों को माँ के दर्शन करने के लिए 1063 सीढिया चढ़नी पड़ती हैं।
रोप वे से पहाड़ का दृश्य अलग ही आनंद देता है
शासन ने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए यहाँ रोप वे की व्यवस्था की है जिसमे सफर करने में अगल की आनंद की अनुभूति होती है। 500 फ़ीट ऊँचे रोप वे में चढ़ने के बाद पहाड़ और उसकी हरियाली देख मन प्रफुल्लित हो जाता है। वैसे तो मैहर में दर्शन करने के लिए यहाँ हमेशा भक्तों का ताँता लगा रहता है लेकिन राम नवमी और नौदुर्गा के पर्व में जनसैलाब उमड़ जाता है। मैहर वाली माता के दर्शन करने के लिए पर्वत में वैन भी चलवाई जाती है।
सबसे पहले आल्हा करते हैं माँ का शृंगार
ऐसी मान्यता है कि जब पुजारी ब्रम्ह मुहूर्त में गर्भगृह का पट खोलते हैं तो माता के दरबार में कोई पहले से ही पूजा किए रहता है। जबकि रात में पट बंद कर दिया जाता है। जैसे ही पुजारी मंदिर में प्रवेश करते हैं है तो माँ की आराधना हो चुकी होती है। लोग कहते है की सदियों से यहाँ आल्हा नाम का एक भक्त रोज़ मंदिर आता है और सबसे पहले माँ की पूजा करता है। पहाड़ के नीचे एक तालाब है जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है वहां एक अखाड़ा भी है जहाँ आल्हा और उनके भाई उधल कुश्ती लड़ा करते थे।
रात को कोई मंदिर में नहीं रुकता
ऐसा कहा जाता है की रात के वक़्त मंदिर परिसर में किसी भी शख्स को रुकने नहीं दिया जाता। ऐसी मान्यता है की जो कोई भी रात को मंदिर में रुक जाता है उसकी मृत्यु हो जाती है। एक कहानी यहाँ सुनाई जाती है जिसमे ये बताया जाता है कि आल्हा और उदल ने ही जंगल में विराजमान माँ शारदा की मूर्ति को खोजा था। माँ के भव्य रूप को देख कर आल्हा उनकी तपस्या करने लगे 12 वर्षों की तपस्या के बाद माँ ने आल्हा को अमरता का वरदान दिया। तभी से आल्हा रोज़ ब्रम्ह मुहूर्त से पहले ही माँ शारदा का श्रृंगार करते हैं लेकिन उन्हें कोई देख नहीं पाता।
मैहर नाम कैसे पड़ा
माँ की मूर्ति की इस्थापना विक्रम सम्वत 559 में की गई थी मंदिर के पास से एक येलजी नामक बहती है। माँ की मूर्ति पर देवनागरी लिपि में शिलालेख भी प्राप्त हैं. काफी पुराने समय से यहाँ बलि देने की प्रथा प्रचलित थी। मैहर पर्वत का नाम सनातन धर्म ग्रंथ महेंद्र में प्राप्त होता है। ग्रन्थ के अनुसार भगवान शंकर के तांडव नृत्य के दौरन उनके कंधे में रखे माता सती के शव के गले में लटकता हार त्रिकूट पर्वत में गिर गया था इसी लिए माई के हार के आधार पर मैहर नाम पड़ गया। ऐसी ही एक और मान्यता है की एक बार माँ वहीँ आसपास भ्रमण कर रहीं थीं वो जंगलों में एक चट्टान के निचे बैठ गईं वहीँ एक किसान भी उनको निहार रहा था माँ ने अपने सारे आभूषण उसी चटान में छोड़ दिए तभी उस गरीब किसान ने माँ को पुकारते हुए कहा मैया.... हार ..... और माँ वहां से गायब हो गईं तभी से इस जगह का नाम मैहर पड़ गया।