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रीवा में मौजूद 450 साल पुराने माँ कालिका मंदिर का चमत्कारी इतिहास आपको जानना चाहिए
रानी तालाब मंदिर में विराजमान माँ कलिका
मध्यप्रदेश के रीवा जिले में माँ कालिका का एक चमत्कारी मंदिर है. जितना भव्य यहाँ का दृश्य है उतना ही पुराना यहाँ का इतिहास भी है। रोज़ सेंकडो की संख्या में भक्त माँ कालिका के दर्शन के लिए पहुंचते है और जो सच्ची श्रद्धा के साथ मैया को याद करता है उसे माँ दर्शन देती हैं। मंदिर में प्रवेश करने के बाद से ही वहां सकारात्मक शक्ति का अनुभव होता है. नवदुर्गा पर्व में यहाँ हर रोज़ चमत्कार होते हैं। ऐसा कहा जाता है की इस मंदिर में अलौकिक शक्तियां हैं जो भी भक्त माँ को याद करता है और मदद मांगता है उसकी मन्नते पूरी होती है। आज नवरात्री का पहला दिन है इस शुभ अवसर पर रीवा रियासत ने अपने पाठकों तक माँ का आशीर्वाद पहुँचाने के लिए माँ कालिका के चमत्कार के बारे में बताएगा।
आज से 450 साल पुरानी बात है
आज से लगभग 450 पुरानी बात है जब रीवा कोई शहर नहीं था यहाँ जंगल थे और छोटे छोटे कस्बों में लोग रहते थे। जहां माँ कालिका का मंदिर है उस जगह को रानी तालाब के नाम से जाना जाता है। सदियों पहले व्यापारियों का एक समूह इसी जगह से गुजर रहा था उनके पास माँ कलिका की मूर्ति भी थी। रात का वक़्त था व्यापारियों ने आराम के लिए माँ की मूर्ति को एक इमली के पेड़ के नीचे रख दिया। जब सुबह हुई तो अपना सफर आगे बढ़ाने के लिए व्यापारियों ने बोरिया बिस्तर बांधने की तैयारी की. लेकिन जब व्यापारियों ने माँ की मूर्ति उठाने का प्रयास किया तो कोई उसे हिला भी ना सका। भरसक कोशिशे करने के बाद भी जब कोई मूर्ति को उठा ना पाया तो व्यापारियों ने मूरत को वहीं पेड़ केनीचे छोड़ कर चले गए। वो दिन और आज का दिन माँ कलिका की मूर्ति उसी जगह पर विराजमान है।
जब महाराजा को इसका पता चला
उस समय रीवा बघेलों की राजधानी थी, रीवा रियासत के पहले राजा व्याघ्रदेव सिंह जूदेव को जब चमत्कारी मूर्ति का पता चला तो उन्होंने उस स्थान में एक चबूतरा बना दिया और माँ की पूजा अर्चना शुरू कर दी। तभी से माँ की पूजा यहाँ होती आ रही है।
चोरी करने वाले अंधे हो गए थे।
आज से लगभग 80 साल पहले रानी तालाब माता मंदिर में विराजमान माँ कालिका की मूर्ति में पहनाए गए आभूषण को कुछ चोरो ने चुरा लिया था। लेकिन वो चोरी करने के बाद मंदिर से भाग नहीं पाए। मंदिर का पट अपने आप बंद हो गया था। जब अगली सुबह पुजारी ने गर्भगृह का पट खोला तो वहां चोरो के होने का पता चला। वो अंधे हो चुके थे इसी लिए वहां से भाग नहीं पाए। उन्होंने पुजारी और माँ से माफ़ी मांगी और चुराए हुए आभूषण वापस लौटा दिए। अब वो आभूषण जिला कलेक्टर के नाजारत शाखा में सुरक्षित हैं उन्हें तभी बहार निकालकर माँ की मूर्ति को पहनाया जाता है जब नवरात्री और नवदुर्गा का पर्व आयोजिय होता है।
लवना जाति के लोगों ने खोदा था तालाब
उस समय लवना नाम के घुम्मकड़ जाति के लोगों का रीवा आना हुआ था। पानी की कमी को देखतें हुए उन्होंने वहीं तालाब का निर्माण किया उस वक़्त जोघपुर की महारानी कुंदन कुंवरि का व्याह बघेल राज घराने में हुआ था। एक बार वो माँ कलिका की अर्चना करने के लिए पहुंची जहाँ उन्होंने जलाशय देखा तो प्रसन्न हो गईं। वो लनवा जाति के लोगों से मिली और उन्होंने रानी से राखी बांधने का आग्रह किया उस दिन रक्षाबंधन का त्यौहार था इसी लिए राखी बांधने के बदले लनवा जाति के लोगों के रानी को वो तालाब भेंट में दे दिया। तभी से उस तालाब का नाम रानी तालाब हुआ।
जब माँ ने कहा श्रृंगार करो
रीवा राजघराने की एक मनोकामना यहाँ पूरी हुई। ऐसी कहानी है कि महाराज विश्वनाथ के पुत्र रघुराज सिंह के विवाह उपरांत की कोई संतान नहीं हो रही थी। तब राजघराना माँ का आशीर्वाद लेने के लिए वहां पहुंचा था। पूजा अर्चना करने के बाद उसी दिन रात को माँ, महाराजा विश्वनाथ के स्वप्न में आईं और कहा मेरा श्रृंगार करो। महाराज ने माँ कलिका की मूर्ति पर स्वर्ण आभूषण चढ़ाए और उनकी मनोकामना पूरी हो गई। तभी से राज परिवार में अष्टमी के दिन पूजा अर्चना करने और आधा सेर राजभोग चढाने की परंपरा शुरू हुई।
माँ का दरबार सिद्धिपीठ है
रानी तालाब मंदिर में एक भगवान शिव जी का भी मंदिर है। ऐसा कहा जाता है की जहाँ जाग्रत देवी की मूर्ति होगी वहां जलाशय, वट नीम और पीपल का वृक्ष ज़रूर होगा। ज्योतिष गड़ना के अनुसार यहाँ उत्तर में हनुमान जी, उत्तर पूर्व में भगवान शिव दक्षिण में भगवान गणेश और पूर्व में काल भैरव का मंदिर है इसी लिए इस स्थान को सिद्धपीठ का दर्जा मिला है।
माँकालिका आप सबको आशीर्वाद दे और अपनी कृपा बनाए रखे