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रीवा में है 450 वर्ष पुरानी मां कालिका की अलौकिक प्रतिमा, जानिए रानी तालाब मंदिर का अद्भुत इतिहास
Rewa Rani Talab Mandir History In Hindi: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के रीवा (Rewa) शहर के रानी तालाब (Rani Talab) में माता कालिका (Mata Kalika) का दरबार है। जहां गत वर्षो की तरह इस वर्ष भी चैत्र नवरात्रि के अवसर पर आस्था, विश्वास, आराधना और भक्ति का सैलाब उमड़ेगा है। 2 अप्रैल से शुरू हो रहे नवरात्रि के चलते अल सुबह से देर शाम तक भक्तों के पहुचने का सिलसिला जारी रहेगा और भक्त 9 दिनों तक मां की विशेष पूजा-अर्चना करेंगे।
आज हम आपको माँ कालिका के चमत्कारों और रानी तालाब वाली माँ के महत्व के बारे में बताएंगे। रानी तालाब स्थित मां कालिका देवी के मंदिर में एक फिर बार चैत्र नवरात्रि के अवसर पर आस्था, विश्वास, आराधना और भक्ति का सैलाब उमड़ा है। इस 450 वर्ष पुराने माता कलिका देवी मंदिर में नौ दिनों तक सिद्धि के लिए आराधना होगी। मान्यता है कि ज्योतिष गणना पर आधारित इस सिद्धिपीठ में नवरात्र की आराधना से लोगों को सिद्धि प्राप्त होती है।
रानी तालाब के मेढ़ पर स्थित मां कालका के मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है। मंदिर में गुलाबी पत्थरों और गोल्डन एवं चांदी रंग के प्लेट पर की गई नक्कासी जहां उसकी सुन्दरता और भव्यता अपनी ओर खीचती है तो वही रानी तालाब का हवा के बीच लहराता पानी पहुचने वाले भक्तों को काफी सुकून देता है।
नही उठाई जा सकी थी मूर्ति
मां कालिका की स्थापना को लेकर बताया जाता है कि तकरीबन 450 वर्ष पूर्व यहां से गुजर रहे व्यापारियों के पास यह देवी मूर्ति थी। घने जंगल और रात्रि विश्राम के समय व्यापारियों ने मां की प्रतिमा को एक इमली के पेड़ पर टीकाकर रात्रि विश्राम किया। दूसरे दिन इसे उठाना चाहा तो मूर्ति नहीं उठी। कई कोशिशो के बाद मूर्ति नहीं उठी तो व्यापारियों ने इस मूर्ति को यही छोड़ आगे बढ़ गए तब से यह मूर्ति यही हैं।
रीवा राज्य ने की थी स्थापना
बताते है कि बघेल साम्राज्य के शासन काल में रीवा रियासत के राजा व्याघ्रदेव सिंह की जानकारी में यह बात सामने आई तो उन्होंने इस स्थान पर एक चबूतरा बनवाकर इस भव्य मूर्ति की स्थापना की और नियमित रूप से यहां पूजा पाठ की शुरूआत हुई। जो सैकड़ो वर्षो से यहां आस्था और भक्ति जारी है।
आभूषण नही ले जा सके थें चोर
माता कालिका का नवरात्रि में दो दिनों तक आभूषणों से श्रृंगार किया जाता है। एक घटना यह भी बताई जाती है कि लगभग 70 से 80 वर्ष पूर्व मंदिर में मां के पहने आभूषण को चोर ले जाने का प्रयास किए थें, जैसे ही मंदिर के बाहर जाने लगे उनकी आँखों में पर्दा आ गया और उन्हे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। जिसके चलते वे मंदिर से बाहर नहीं जा सकें, सुबह पुजारी के आने पर आभूषणों से वापस श्रृंगार किया गया और चोरो ने माफी मांगी। जिसके बाद ही वे मंदिर से बाहर जा सकें। नवरात्रि और नवदुर्गा पूजा के समय सुरक्षा गार्डो की देख-रेख में माँ की स्वर्ण आभूषणों से साज-सज्जा होती है।
तालाब का हुआ था निर्माण
बताते है कि तालाब की खुदाई का काम लवाने समुदाए के लोगो ने किया था। जिससे लोगो को पानी की समस्या न हो और वे इस तालाब के पानी का उपयोग कर सकें। उक्त तालाब निर्माण की भव्यता को देखकर रीवा की महारानी कुंदन कुंवरि जो जोधपुर घराने से थी, रीवा राज्य में ब्याही थी। लवाने समुदाय के लोगो को इसके बदले में राखी बांधी थी। यही वजह है कि इस तालाब का नाम रानी तालाब रखा गया था।
सिद्धिपीठ है माँ का दरबार
रानी तालाब के बीच में भव्य शिवजी का मंदिर है। कहा जाता है जहां देवी की जाग्रत देवी मूर्ति होगी वहां जलाशय और वट वृक्ष नीम और पीपल के वृक्ष जरूर होंगे। वहीं ज्योतिष गणना के अनुसार यहां उत्तर में हनुमान जी और शंकर जी, उत्तर पूर्व के कोने में शिवलिंग, दक्षिण में गणेश जी, पूर्व में काल भैरव हैं। इसलिए इस स्थान को सिद्धिपीठ का दर्जा मिला है।
वहीं मंदिर परिसर में एक ओर जहां गर्भग्रह में मां कालका की मूर्ति के साथ भगवान सूर्य सहित शीतला माता, अन्नपूर्णा माता, भैरवी, गणेश जी व हनुमान जी विराजे है, वही मंदिर परिसर में मां की रक्षा के लिए आई दो देवियों में से एक दांए में खोरवा माई और बांए में घेंघा माई विराजी हैं जो वास्तु और ज्योतिष के आधार पर है इसीलिए भी यह सिद्धिपीठ कहलाया जाता है।