रीवा

स्वामीं 1008 श्री प्रपन्नाचार्य महाराज जी का हुआ दुआरी आगमन, महाराज नें दुर्मनकूट धाम दुआरी को कहा छोटा चित्रकूट

स्वामीं 1008 श्री प्रपन्नाचार्य महाराज जी का हुआ दुआरी आगमन, महाराज नें दुर्मनकूट धाम दुआरी को कहा छोटा चित्रकूट
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जिले के गुढ़ तहसील अन्तर्गत ग्राम दुआरी के दक्षिणीं छोर पहाड़ी में दुर्मनकूट धाम नामक बड़ा दुर्लभ व दर्शनीय स्थल है। दुर्मनकूट धाम के संरक्षक लवकुश प्रसाद अग्निहोत्री नें अपनें तन-मन-धन से इस दुर्लभ स्थल को दर्शनीय बनाते हुए अपना पूरा जीवन व्यतीत कर दिया।

रीवा (Rewa News) : जिले के गुढ़ तहसील अन्तर्गत ग्राम दुआरी के दक्षिणीं छोर पहाड़ी में दुर्मनकूट धाम नामक बड़ा दुर्लभ व दर्शनीय स्थल है। दुर्मनकूट धाम के संरक्षक लवकुश प्रसाद अग्निहोत्री नें अपनें तन-मन-धन से इस दुर्लभ स्थल को दर्शनीय बनाते हुए अपना पूरा जीवन व्यतीत कर दिया। इसी दुर्गम व धार्मिक स्थल दुर्मनकूट धाम दुआरी में स्वामीं 1008 श्री प्रपन्नाचार्य महाराज का आकास्मिक आगमन हुआ, महाराज जी के दुआरी आगमन पर राम भक्तों में हर्षोल्लास देखनें को मिला।

स्वामीं प्रपन्नाचार्य महाराज नें बताया कि जब मै पहली बार दुर्मनकूट धाम घूमनें आया तो यह स्थल मुझे बहुत पसन्द आया और मेरे मन को प्रभावित किया, इसके बाद मैनें सोचा कि इस स्थल पर एक विशाल यज्ञ होना चाहिए और सन् 2008 में एक विशाल यज्ञ का आयोजन हुआ जिसमें दूर-दूर से साधु-संतो का आगमन हुआ।इसके बाद से मैं यहाँ कभी न कभी आता ही रहता हूँ।

स्वामीं प्रपन्नाचार्य महाराज नें कहा कि इस अंचल के लोग बहुत भाग्यशाली हैं क्योंकि दुर्मनकूट धाम छोटा चित्रकूट है। शासन-प्रशासन को दुर्मनकूट धाम की रक्षा,सुरक्षा ब्यवस्था करते हुए शासकीय मदों से इसका विकास करना चाहिए क्योंकि दुर्मनकूट धाम जैसे दुर्लभ धार्मिक स्थल यदा-कदा ही देखनें को मिलते हैं। स्वामीं प्रपन्नाचार्य महाराज नें कहा कि अभी मेरा यहाँ आनें का कोई प्रोग्राम नहीं था किन्तु अचानक मेरे मन में ख्याल आया कि चलो दुर्मनकूट धाम घूमा जाय और मैं सीधा यहाँ चला आया क्योंकि बाबा तुलसीदास महाराज नें लिखा है कि *होय वहै जो राम रचि राखा* अर्थात प्रभु श्रीराम जी की इच्छा थी.

उन्होंनें मुझे यहाँ आनें के लिए प्रेरित किया। दुर्मनकूट धाम के संरक्षक एवं सेवार्थी लवकुश प्रसाद अग्निहोत्री की उम्र 82 साल की हो गई है फिर भी वो प्रतिदिन 10 किलो मीटर की दूरी पैदल तय करके दुर्मनकूट धाम की सेवा व रक्षा के लिए निरंतर आते-जाते हैं। लवकुश प्रसाद अग्निहोत्री नें मीडियाकर्मियों को दुर्मनकूट धाम के महत्व को बताते हुए कहा कि इस स्थल पर भगवान श्रीराम स्वयं बारह दिन विश्राम किए थे । श्री अग्निहोत्री जानकारी देते-देते भावुक हो गए और दुःखित मन से कहा कि अब मेरा तन ढ़ल चुका है मुझे दुःख होता है कि इतना महत्पूर्ण स्थल होते हुए भी यह शासन-प्रशासन द्वारा उपेक्षित है, मैं शासन-प्रशासन से निवेदन करना चाहता हूँ कि दुर्मनकूट धाम को शासनाधीन किया जाय तथा इसकी रक्षा-सुरक्षा एवं व्यवस्था की जिम्मेंदारी शासकीय स्तर पर किया जाय।

स्वामीं प्रपन्नाचार्य महाराज के दुआरी आगमन के अवसर पर दुर्मनकूट धाम में सैकड़ों राम भक्त उपस्थित हुए और महाराज जी के मुखारविन्दों से निकलनें वाली अमृतमयी राम कथा का श्रवण किए तत्पश्चात सभी लोग भण्ड़ारे का प्रसाद ग्रहण करते हुए स्वामीं प्रपन्नाचार्य महाराज एवं लवकुश प्रसाद अग्निहोत्री से आशीर्वाद प्राप्त किया। इस अवसर पर भक्तों में मुख्य रूप से हेमकुमार अग्निहोत्री, रामायण प्रसाद अग्निहोत्री, अशोक कुमार पाण्ड़ेय, योगेश अग्निहोत्री, तपनारायण शुक्ला, घनश्याम पाण्ड़ेय, बृजभान मिश्रा, रजनीश अग्निहोत्री, बालेन्द्र अग्निहोत्री, अंशु अग्निहोत्री, सोनू अग्निहोत्री समेत सैकड़ों भक्त उपस्थित थे।

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