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रीवा का बैंक घोटाला 16.54 करोड़ से पहुंचा 250 करोड़, अनुकंपा नियुक्ति कर्मचारी रहा मास्टर माइंड, पुलिस अधिकारी भी बधे
Rewa MP News: पिछले 10 वर्षो से चर्चा में बना हुआ जिला सहकारी बैंक डभौरा शाखा घोटाला जब उजागर हुआ तो उस समय 16.54 करोड़ सामने आया था। जैसे-जैसे जांच बड़ी तो न सिर्फ धोटाले बाजों की लिस्ट लंबी हुई बल्कि 250 करोड़ का यह घोटाला पहुच गया। आज भी इस बैंक घोटाले को लेकर लोगो में सहज ही चर्चा शुरू हो जाती है कि मास्टर मांइड रामकृष्ण मिश्रा ने इस घोटाले को बहुत ही चालकी से अंजाम दिया था, लेकिन वह प्रशासनिक जाल में ऐसा फंसा की अब अपने गुनाहों की सजा जेल में काट रहा है।
अनुकम्पा नियुक्ति में की थी नौकरी
जानकारी के तहत रामकृष्ण मिश्रा डभौरा के ही दोदर गांव का रहने वाला है। वह अपने पिता अरविंद कुमार मिश्रा की मौत के बाद अनुकम्प नियुक्ति में लिपिक पद पर नौकरी की शुरूआत किया था। नौकरी करते हुए वह डभौरा जिला सहकारी बैंक शाखा का प्रबंधक बन गया। इस दौरान उसने बैंक के रूपयें में जमकर घपलेबाजी करते हुए करोड़ रूपये हजम कर डाले।
मुबंई के डाटा फिडिंग कम्पनी की पकड़ में आया घोटाला
जांच अधिकारियों की माने तो कोर बैकिंग सिस्टम के तहत डाटा फिडिंग करने का काम मुबंई की एक कंपनी के द्वारा किया जा रहा था। उसने बैंक के प्रधान कार्यालय को पत्र लिखा की डभौरा ब्रांच के कई बड़े-बड़े ट्रांजेक्शन मिसमैच हो रहे है। इसकी जांच कराए जाने की मांग की गई थी। जिसे बैंक ने गंभीरता से लेते हुए जांच कराई तो 16.54 करोड़ का घोटाला सामने आ गया, हांलाकि इस दौरान रामकृष्ण मिश्रा को बैंक अधिकारियों ने नही हटाया, क्योकि हेडकार्यालय के कई अधिकारी भी इसमें आ रहे थें और रामकृष्ण साक्ष्य नश्ट करने में लगा रहा।
2013 में हुई थी घोटाले की शुरूआत
बैंक में मई 2013 को मैनुअल बैंकिंग से सीबीएस कोर बैंकिंग से जोड़ा गया। इस दौरान मैनुअल रिकॉर्ड कम्प्यूटर में अपलोड करके लेन देन किया जाने लगा। मैनुअल से कोर बैंकिंग में बदलाव की प्रोसेस के दौरान रामकृष्ण ने बैंक के दूसरे कर्मचारियों को इस साजिश में शामिल किया। फिर रिश्तेदारों के नाम पर कुछ नए खाते खोले गए। सहकारी बैंक के दो खाते ऐसे थे, जिनके जरिए बैंक अपना लेन-देन करता था। बैंक के इन दोनों खातों में जमा राशि को घोटालेबाज रिश्तेदारों के खाते में जमा करके उनसे मिलकर पैसे निकाल रहे थे। दो वर्ष के अंतराल में घोटाले बाजों ने 250 करोड़ रूपये का घपला करके बैंक के रूपये हजम कर गए।
ईओडब्ल्यू कर रही जांच
वर्तमान में 210 करोड़ रु के हवाले की एफआईआर दर्ज कर ईओडब्ल्यू जांच कर रही है। वहीं सीआईडी 9 एफआईआर दर्ज कराते हुए 16.54 करोड़, 7 करोड़, 20.88 लाख, 24 हजार, 3 करोड़, 2 करोड़, 1.17 करोड़, 81 लाख और 5.10 करोड़ के घपले की जांच कर रही है।
2015 में दर्ज हुई थी एफआईआर
करोड़ों के इस घोटाले को लेकर वर्ष 2015 में एफआईआर करवाई गई, जिसके बाद इस घोटाले की परते खुलना शुरू हो गई। इस घोटाले की गहराई को देखते हुए रीवा के तत्कालीन पुलिस कप्तान आकाश जिंदल ने घोटाले की जांच करने के लिए सीआईडी को पत्र लिखा और पूरा मामला उसे सौपा गया था।
एसडीओपी एवं थाना प्रभारी भी बने थे आरोपी
इस घोटाले के फरार मुख्य आरोपी को तत्कालीन डभौरा एसडीओपी सुजीत बरकड़े एवं थाना प्रभारी पनवार अरूण सिंह ने रामकृष्ण मिश्रा को गिरफ्तार किया। उन्होने महज 14 लाख नकदी एवं गोल्ड की जब्ती दिखाई, जिस पर रीवा एसपी रहे आकाश जिंदल को शंक हुई और जब उन्होने कड़ाई से पूछताछ किए तो उन्होने 67 लाख रूपये कैंश के साथ बहुत कुछ पेश किया। जिस पर एसपी ने दोनों पुलिस अधिकारियों को आरोपी बनाकर उन्हे निलंबित कर दिए थें।
इस घोटाले में है 24 आरोपी
बैंक के इस करोड़ों के धोटाले में अभी तक 24 लोगो के खिलाफ एफआईआर है। जिसमें रामबली वर्मा, जिसकी जेल में मौत हो चुकी है। मुख्य आरोपी रामकृष्ण मिश्रा जेल में बंद है। उसके साथ ही जय सिंह, विजय शंकर द्विवेदी, आशीष गुप्ता, अमरनाथ पांडे, अभय कुमार मिश्रा भी जेल में है, जबकि जमानत पर रिहा होने वालों में बैंक अधिकारी आरके पचौरी, बीएस परिहार, संदीप सिंह, श्री कृष्ण मिश्रा, अंजनी मिश्रा, प्राणेश मिश्रा, राजेश मिश्रा, राजेश सिंह, बाबूलाल यादव, बृजेश उर्मलिया, अमित मिश्रा, अमर सिंह शामिल है। तो वही फरार चल रहे आरोपियों में रावेन्द्र सिंह, अरूण प्रताप सिंह, रामनरश्े नापित शामिल है, जबकि लखनलाल एवं उर्मिला देवी का मुकदमा वापस होने की प्रक्रिया चल रही है।