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Rewa: वाह रे सरकारी सिस्टम, जिंदा व्यक्ति को कर दिया मृत घोषित, बेचारा बीमार बुजुर्ग 8 महीने से पेंशन के लिए भटक रहा
वो कहते हैं ना "एमपी अजब है सबसे गजब है " एक दम सही कहते हैं बहुतई गजब प्रदेश है और यहां का सरकारी सिस्टम तो अजब है भाईसाब। रीवा जिले के रायपुर कर्चुलियान जनपद पंचायत का मामला सामने आया है, जहाँ सरकारी मुलाज़िमों ने एक बुजुर्ग को जीते जी मार डाला, मतलब हत्या नहीं कर दी है उसको सरकारी कागज में मृत घोषित कर दिया है जबकि वो ज़िंदा है। ये कारनामा रायपुर कर्चुलियान जनपद पंचायत के लोहदबार ग्राम पंचायत के कर्मचारयों ने किया है। बताओ यार एक बुर्जुर्ग आदमी को ये लोग इत्ता परेशान किए वो बेचारा पेशाब की नली लगाए दफ्तर के चक्कर काटता रहता है, और सबसे ये बोलता है की भाई हम ज़िंदा है हमको काहे मरा बता दिए हो, हमारी पेंशन नहीं मिल रही खाने को पैसा नहीं है।
8 महीने से पेंशन के लिए भटक रहा बुजुर्ग
सरकारी दस्तावेजों में जिस बुजुर्ग को मरा मान लिया गया है उनका नाम वीरबल साकेत हैं जिनकी उम्र 64 साल है। 24 मार्च 2021 से उनकी पेंशन आना बंद हो गई, उनको लगा हो सकता है की कुछ दिन बाद खाते में पेंशनआजाए लेकिन जब महीना बीत गया तो वीरबल जनपद पंचायत गए, वहां पंचायत कर रहे कर्मचारियों से पूंछा "भाई काहे नहीं दे रहे हो हमारी पेंशन" तो वहां बैठे कर्मचारियों ने कहा अरे वीरबल साकेत को मर चूका है अब काहे की पेंशन। जब बुजुर्ग को पता चला की सरकारी सिस्टम ने उनके जीते जी उनका अंतिम संस्कार कर दिया है तो बेचारे बुजुर्ग के होश ही उड़ गए।
बहुत बीमार है वीरबल साकेत
वो दिन और आज का दिन वीरबल को अबतक कोई न्याय नहीं दिला पाया है. वो बेचरा उम्रदराज आदमी रोज़ दफ्तर जाता और अपने ज़िंदा होने का सबूत देता है। लेकिन कानून की तरह अपना सरकारी सिस्टम भी अंधा है और शायद बेहरा भी है तभी तो 8 महीने तक वीरबल भटकता रहा उसकी फरियाद क्सिसि के कानों तक पहुंची नहीं। वो आदमी इतना बीमार है की वो पेशाब की थैली साथ लेकर घूमता है उससे कभी-कभी खून भी बहता है। सोचिये ज़रा उस आदमी की जगह खुद को रख कर देखिये, वीरबल ने कितनी तकलीफ सही.
जनपद के अध्यक्ष ने कार्रवाई की मांग की है
कुछ दिन पहले जनपद पंचायत रायपुर में वहां के अध्यक्ष महोदय लोगों की शिकायत सुनने के लिए गए। उनके सामने वीरबल साकेत का मामला सामने आया. उन्होंने कहा की वो रायपुर जनपद के CEO से इस मामले में कार्रवाई करने के लिए कहेंगे। और जिन कर्मचरियों की लापरवाही के कारण वीरबल साकेत को इतनी तकलीफ उठानी पड़ी है उनके वेतन से पीड़ित की पेंशन देने की की बात कहेंगे।और कर्मचारियों को हटाने की मांग करेंगे। उन्होंने कहा किये मेरी ज़िम्मेदारी बनती है की लोगों के साथ अन्याय ना हो।
पंकज त्रिपाठी की फिल्म आई थी 'कागज" आपने शायद ना देखी हो उसकी कहानी भी ऐसी ही थी गरीब को ज़िंदा रहते मृत घोषित कर दिया गया है और वो बेचारा अपने जिन्दा रहने का सबूत देता भटकता रहा था। आप पंकज त्रिपाठी कहिये या वीरबल साकेत बात एक ही है।