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रीवा कलेक्टर इलैयाराजा टी की डॉक्टरों को दो टूक, प्राइवेट प्रैक्टिस करते मिलें तो खैर नहीं! सिर्फ अस्पताल में ही दे सकते हैं सेवाएं
रीवा। रीवा सुपर स्पेशलिटी अस्पताल (Rewa Super Specialty Hospital) के चिकित्सकों की प्राइवेट प्रैक्टिस अस्पताल की सेवाओं को प्रभावित कर रही है। आलम यह है कि चिकित्सक प्राइवेट प्रैक्टिस में इतने व्यस्त हैं कि वह सुपर स्पेशलिटी की OPD में नहीं बैठ रहे हैं। मरीज आते हैं और चिकित्सकों के न मिलने पर कई बार वापस लौट जाते हैं। उन्हें उपचार सुविधा नहीं मिल पाती। कई बार चिकित्सकों की राह तकते वह ओपीडी के पूरे समय तक बैठे रहते हैं। ऐसी शिकायतें पिछले दिनों में कई बार कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी (Collector Dr. Ilayaraja T) के पास पहुंच चुकी है।
कलेक्टर ने कई बार मौखिक रूप से चिकित्सकों को चेताया भी, लेकिन वह नहीं माने। अब कलेक्टर ने साफ निर्देश डीन डॉ. मनोज इंदुलकर को दिए हैं कि सुपर स्पेशलिटी में पदस्थ कोई भी चिकित्सक यदि प्राइवेट प्रैक्टिस करता पाया जाता है तो उसकी सेवाएं रद्द कर दी जाएंगी।
कलेक्टर के निर्देश की जानकारी होते ही चिकित्सकों में हड़कंप मच गया है। वजह यह है कि चिकित्सक सुपर स्पेशलिटी में सेवा देने के साथ-साथ नर्सिंग होम व घरों में प्राइवेट प्रैक्टिस कर प्रतिमाह लाखों रुपए कमा रहे हैं। एक डॉक्टर तो नर्सिंग होम खोल रखे हैं। इस प्रकार की रोक लगने से उनका यह व्यापार पूरी तरह से प्रभावित होगा।
न्यूरों में सबसे अधिक समस्या
बीते दिनों में सबसे अधिक समस्या न्यूरो सर्जनों के न बैठने पर हो रही है। कई बार दिन के बावजूद भी वह ओपीडी में नहीं मिलते हैं। ऐसा वह चिकित्सक कर रहे हैं जो वरिष्ठ भी हैं, जबकि उनको अपनी सेवाओं के प्रति ज्यादा ध्यान देना चाहिए ताकि उनके अनुभव का लाभ मरीजों को मिल सके। इसके अलावा हार्ट व न्यूरो के भी कुछ चिकित्सक ओपीडी से गायब रहते हैं। जिसकी शिकायत कई बार कलेक्टर तक पहुंच चुकी है। जबकि सुपर स्पेशलिटी के अनुबंध में ही प्राइवेट प्रैक्टिस न करने की बात कही गई है।
SGMH के हालात और भी बदतर
कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी ने भले ही सुपर स्पेशलिटी की ओर ध्यान दिया है, लेकिन उन्हें SGMH के चिकित्सकों की ओर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
कारण यह है कि यहां के हालात और भी बदतर हैं। यहां मरीज जूनियर चिकित्सकों के भरोसे ही रहते हैं। सीनियर चिकित्सक कभी-कभार ही मरीजो का हाल लेने पहुंचते हैं। बहुत चिकित्सक तो ऐसे हैं जो फोन पर ही जानकारी लेकर अपनी ड्यूटी पूरी कर देते हैं। जबकि उनके बंगलों के बाहर मरीजों की भीड़ जमा रहती है।
हालांकि चिकित्सकों पर लगाम लगाने के प्रयास कई बार हुए हैं, लेकिन जिम्मेदार सफल नहीं हो सके। चिकित्सकों की मनमानी के सामने लगाम लगाने वालों को ही घुटने टेकने पड़ जाते हैं।