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रीवा जिले में 3361 दिव्यांग बच्चों को पढ़ाने स्कूलों में नहीं हैं विशेष शिक्षक, अंधकार में भविष्य
सरकारी स्कूलों में दिव्यांग बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने का प्रावधान है। एमपी के रीवा जिले में 3361 दिव्यांग बच्चे स्कूल प्रवेशित हैं। लेकिन इन बच्चों के लिए शासन-प्रशासन स्तर से शिक्षा की समुचित व्यवस्था नहीं है। इसके लिए शासन स्तर से नियम भी बनाए गए हैं। इतना ही नहीं दिव्यांग अधिकार अधिनियम भी लागू है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि ऐसे बच्चों को पढ़ाने के लिए संबंधित स्कूलों में शिक्षक तक उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में इन बच्चों का भविष्य अंधकार में है। ये बच्चे अध्यनरत होते हुए भी शिक्षा के लिए मोहताज हैं। इन बच्चों के अभिभावकों को शासन से बड़ी उम्मीद होती है कि इस वर्ष उनके बच्चों को पढ़ाने वाले विशेष शिक्षक मिलेंगे लेकिन यहां शिक्षण सत्र प्रारंभ होने के बावजूद विशेष शिक्षक मिलने की उम्मीद अधर में लटकी हुई है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि सामान्य रूप से सक्षम बच्चे अपनी पढ़ाई शुरू कर चुके हैं। लेकिन स्कूलों में दिव्यांग बच्चों के पढ़ाई के लिए विशेष शिक्षकों की कोई व्यवस्था नहीं है।
1985 से लागू है दिव्यांग अधिकार अधिनियम
सूत्रों की मानें तो दिव्यांग अधिकार अधिनियम 1985 में लागू हुआ इसके बाद इस अधिनियम को संशोधित कर पीडब्ल्यूडी एक्ट की जगह आरपीडब्ल्यूडी एक्ट अधिनियम 2016 तैयार हुआ। जिसमे दिव्यांगता के 21 प्रकार के दिव्यांग बने। दिव्यांग बच्चों की शिक्षा व्यवस्था पर कोई संशोधन नहीं हुआ। यहां तक कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 सामान्य और दिव्यांग बच्चों को एक समान अनिवार्य शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से तैयार किए गए। कानून बनाने के बाद भी दिव्यांग बच्चों की शिक्षा जस की तस बनी हुई है।
संभाग स्तर पर 15,170 स्कूली बच्चे
संभाग स्तर पर अगर स्कूलों में प्रवेशित दिव्यांग बच्चों की संख्या पर नजर दौड़ाई जाय तो पता चलता है कि संभाग में करीब 15,170 ऐसे बच्चे हैं जिनके पठन-पाठन के लिए विशेष शिक्षकों की नियुक्तियां नहीं की गई हैं। बताया गया है कि इसके तहत रीवा जिले में 3361, सतना में 4152, सीधी में 3553 तथा सिंगरौली में 2814 दिव्यांग बच्चे स्कूल प्रवेशित हैं। लेकिन इन बच्चों के लिए शासन-प्रशासन स्तर से शिक्षा की समुचित व्यवस्था नहीं है।
सरकार की घोषणाओं पर अमल नहीं
29 अप्रैल 2008 को प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा निःशक्त पंचायत बुलाई गई थी। जिसमें उन्होंने दिव्यांग बच्चों की शिक्षा पर घोषणाएं की थी लेकिन उन घोषणाओं का असर आज तक न तो शिक्षा विभाग के अधिकारियों पर पड़ा और न ही दिव्यांग बच्चों की शिक्षा पर। दिव्यांग बच्चों की शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह चौपट है दिव्यांग बच्चों के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएं सिर्फ कागजों में सीमित रह गई हैं। जबकि समावेशित शिक्षा योजना अंतर्गत प्रदेश की शालाओं में कक्षा एक से बारह तक आठ या उससे अधिक अध्ययनरत दिव्यांग, मूकबधिर, दृष्टिबाधित मानसिक दिव्यांग के लिए आठ बच्चों पर एक विशेष शिक्षक शिक्षा विभाग द्वारा उपलब्ध कराने का प्रावधान है।