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Mahatma Gandhi: रीवा में महात्मा गांधी का अपमान करने वाले आज तक पकड़े नहीं गए
Gandhi Ji's Connection With Rewa: आज महात्मा गाँधी की जयंती है आज वो लोग जनता को गांधी जी के बताए रास्तों में चलने का ज्ञान देंगे जिनका जीवन ही अनैतिक कार्यों से भरा पड़ा है। खैर ये ट्रेंड दशकों से चलता आया है और जबतक इस देश में राजनीती है तब तक ये चलता भी रहेगा। आज हम बापू के मार्ग या फिर उनके स्वतंत्रता आंदोलन की बात नहीं करेंगे उसके किए देश के नेता बैठे हैं, आज हम आपको गांधी जी का मध्यप्रदेश के रीवा जिले से बापू का संबंध बताने वाले है जो हर इंसान को मालूम होना चाहिए।
3 साल पहले बहुत बड़ा विवाद हो गया था।
रीवा सिटी में एक जगह है जिसे लक्षमण बाग़ के नाम से जाना जाता है। बात साल 2 अक्टूबर 2019 की है महात्मा गांधी को याद करने के लिए लक्ष्मण बाग़ में मौजूद बापू भवन में नेताओ का हुजुम लग गया था इससे पहले ये सभी नेता पिछले साल ही गाँधी जी का आशीर्वीद लेने गए थे। जब नेताओं ने तस्वीर खिचवाने के लिए बापू भवन का पट खोला तो वहां की तस्वीर ही अलग नज़र आई। बापू भवन में रखी महात्मा गाँधी की अस्थियां और कलश वहां से गायब था ये देख सब भौचक्के रह गए की आखिर कलश कहाँ गायब हो गया वो दिन और आज का दिन बापू की अस्थियों से भरे कलश का कोई पता नहीं लगा पाया और उस वक़्त अस्थिकलश चोरी हो जाने का जो गुस्सा क्षेत्रीय नेताओं में था वो वक़्त के साथ ठंडा पड़ गया।
महात्मा गाँधी के फोटो में भी अपशब्द लिखे थे
बापू भवन में ही महात्मा गाँधी की एक तस्वीर लगी थी जिसमे कुछ ऐसी लिखावट पाई गई जो हम आपको बता नहीं सकते देश के लिए अपना जीवन समर्पित कर देने वाले बापू की तस्वीर में राष्ट्रदोही लिखा हुआ था। ज़ाहिर सी बात है कोई अज्ञानी ही था जिसने बापू को राष्ट्रद्रोही माना था लेकिन ये शक पूरा था की जिसने तस्वीर में गाँधी जी की तस्वीर में ऐसे अनैतिक शब्दों को लिखा था कलश भी उसी ने चोरी किया होगा। ये घटना दुर्भाग्यपूर्ण थी और उससे भी ज़्यादा दुर्भायपूर्ण बात ये है की आज तक कलश को चोरी करने वाले और बापू की तस्वीर में ऐसी बातें लिखने वाले का कोई पता नहीं चल पाया।
चोरी 2 अक्टूबर को हुई या नहीं पता नहीं।
अस्थिकलश की चोरी की रिपोर्ट 2 अक्टूबर 2019 को लिखवाई गई लेकिन इस बात की जानकारी किसी को नहीं है की आखिर चोरी किस दिन हुई। जब साल भर बाद लोग वहां बापू की तस्वीर में जमी धुल को साफ़ करने गए तब ये पता चला की किसी ने ऐसी घटना को अंजाम देदिया है. वो तो शुक्र है जिला कांग्रेस कमेटी का जिसने इस मुद्दे को उठाया इसका विरोध किया लेकिन नतीजा सिर्फ प्रदर्शन और अखबारबाजी तक ही सीमित रह गया।
साल 1948 में रखी गई थी अस्थियां
ये बात साल 1948 की है जब बापू के देहांत के बाद उनकी अस्थियों को देश के कोने कोने में ले जाया गया था। उनकी अस्थियों को नदी में विसर्जित नहीं किया गया था बल्कि एक पवित्र स्थान में रख कर बापू की याद को समेटे रखने के लिए संग्रहालय बनाया गया था उसी में से एक संग्रहालय लक्षमण बाग़ में बने बापू भवन है मगर अब लेकिन वहां बापू की अस्थिकलश नहीं है।