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History of Rewa: मुग़ल बादशाह अकबर का रीवा और मुकुंदपुर से है गहरा नाता, बांधवगढ़ के महाराज ने बचाई थी जान
History of Rewa: देश के बड़े बड़े इतिहासकारों ने मुग़लों की इतिहास को बयां करने के लिए कई रिसर्च की और कई किताबें लिखी लेकिन कोई भी इस चीज़ का दवा नहीं कर पाया कि आखिर मुग़ल सम्राट जलालुद्दीन अक़बर का जन्म कहां और किन परिस्थियों में हुआ। हालांकि सरकारी परीक्षाओं में यही पूंछा जाता है कि अकबर का जन्म कहाँ हुआ तो अमरकोट वाले ऑप्शन में टिक करना पड़ता है। इतिहासकारों ने अक़बर का जन्म स्थान अमरकोट वर्तमान पाकिस्तान लिखा हुआ है जिसे हम लोग आंख मूंद कर सच मान लेते हैं। लेकिन मध्य प्रदेश के सीधी जिले के एक पत्रकार मुहम्मद यूनुस ने कुछ सालों पहले यह दावा किया था की अकबर का जन्म सतना जिले के मुकुंदपुर में हुआ था।
मुहम्मद यूनुस ने दावा किया था कि इतिहासकारों ने अभी तक अकबर के जन्म स्थान पर जो बातें लिखी है वो मनघडंत है। असल में शेरशाह सूरी के डर से जब हुमायु अफ़ग़ानिस्तान की ओर भाग रहा था तब हुमायु की बेगम हमीदा बानों से वो बिछड़ गया था। हमीदा बानों जब गंगा पार कर रही थी तो शेरशाह सूरी की सेना ने उस नांव को डुबाने का प्रयास किया था। उस वक़्त बांधवगढ़ के शासक वीरभानुदेव उसी क्षेत्र में मौजूद थे और जैसे ही उन्हें इस बात का पता चला तो उन्होंने बेगम की जान बचाई और रहने के लिए पनाह दी।
मुकुंदपुर की गढ़ी में हुआ था अकबर का जन्म
ऐसा दावा किया गया है की शेरशाह सूरी से बचाने के लिए बांधवगढ़ के महाराज ने उन्हें सतना जिले में मौजूद मुकुंदपुर की एक गढ़ी में पनाह दी थी। और बेगम के खर्चे के लिए मुकुंदपुर का एक परगना भी लगा दिए था। मुकुंदपुर की गढ़ी में 15 अक्टूबर 1542 में अकबर का जन्म हुआ था। अकबर की छटी के बाद इसी गढ़ से राजा वीरभानुदेव अखबर को लेकर बाँदवगढ़ चले गए थे। और उस वक़्त भी शेरशाह सूरी ने उनका पीछा किया था। ऐसा बताया गया है की शेरशाह पीछा करते करते रीवा शहर के बिछिया महोल्ले तक पहुंच गया था उस वक़्त बिछिया का नाम रनबहादुर गंज था। शेरशाह ने वहीं तक पीछा किया और अपने बेटे सलीमशाह को छोड़ कर वापस आगया। ऐसा दावा है कि रीवा किले की नीव तभी सलीमशाह ने ही डाली थी। जब शेरशाह की मौत हुई तो वह वापस कालिंजर लौट गया था।
बाद में अमरकोट भेजा गया था अकबर
इस घटना के कुछ दिनों बाद वीरभानुदेव ने अपने सैकड़ों सिपाहियों के साथ अकबर और उसकी माँ को हुमायु के पास अमरकोट भेज दिया था। विक्रम सम्वत 1612 में जब हुमायु दिल्ली के सिंहासन में बैठा तब उसने वीरभानुदेव को उपहार में कालिंजर के आस पास का क्षेत्र दे दिया और दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए और उसके बच्चे और बेगम की हिफाज़त करने के बदले सोने के सिक्के भेंट में दिए थे जिसमे "ख्वाजे सिक्का आल्लाहो अकबर" लिखा था और बाबुदेव किले "बांधो बराबर" तोहफे में दिया था। पत्रकार ने अपने दावे में ये भी कहा था कि अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने रीवा के महाराजा रघुराज सिंह जूदेव को पत्र लिख कर कहा था कि मुकुंदपुर का परगना जो कलेवा में दिया था जिसकी आमदनी बराबर आगरा और दिल्ली भेजी जाती रही है उसे फिर से भेजवाना शुरू किया जाए।
इस दावे को सच नहीं माना जाता
बहादुरशाह जफर का वो पत्र कभी रीवा राजघराने के महफ़िज़खाने में था जो अब रीवा के एक प्रोफेसर अख्तर हुसैन निजामी के पास है। लेकिन भारत के इतिहासकारों ने अबतक यही बताया की अकबर का जन्म मुकुंदपुर में नहीं बल्कि अमरकोट में हुआ था जबकि अकबर का जन्म मुकुंदपुर की गढ़ी में हुआ था हाँ लेकिन उसका पूरा बचपन अमरकोट में बीता था। उसके बाद वो हिंदुस्तान का बादशाह बना।
वैसे मुग़लों और रीवा का ताल्लुख सदियों तक रहा है आपको अनसुने इतिहास के बारें में रीवा रियासत बताता रहेगा। और हाँ सरकारी परीक्षा में अगर अकबर का जन्म स्थान पूछा जाए तो अमरकोट ही लिखियेगा क्या है कि इतिहास को अपडेट किया ही नहीं गया।