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History Of Rewa: रीवा में 1200 साल पहले शिव अवतार आदि शंकराचार्य ठहरे थे, यहां किया था एकात्म चिंतन

Abhijeet Mishra | रीवा रियासत
30 Oct 2022 2:00 PM IST
Updated: 2022-10-30 08:40:52
History Of Rewa: रीवा में 1200 साल पहले शिव अवतार आदि शंकराचार्य ठहरे थे, यहां किया था एकात्म चिंतन
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History of Rewa: एमपी के रीवा जिले का ये वाला इतिहास शयाद ही आपको मालूम होगा, साक्षात भगवान शिव के अवतार आदि शंकराचार्य स्वयं रीवा की धरती को पवित्र करने के लिए आये थे

History of Rewa: मध्यप्रदेश का जिला रीवा एमपी और भारत के इतिहास का अहम हिस्सा है, चाहे आदिमानव रहे हों या यहां का राजवंश रीवा के इतिहास से हर कोई वाकिफ है। लेकिन यह बात शायद ही आपको मालूम होगी के आज से 1200 साल पहले भगवान शिव के अवतार आदि शंकराचार्य स्वयं रीवा पधारे थे। उस वक़्त रीवा कोई शहर नहीं सिर्फ एक जंगल था. कह लीजिये की रीवा का कोई अस्तित्व ही नहीं था। कहा जाता है कि अमरकंटक और प्रयागराज के बीच आने-जाने वाले साधु-संत रीवा में विश्राम करते थे। इतिहासकार कहते हैं कि उस वक़्त रीवा को 'रेव पट्ट्नम' के नाम से जाना जाता था।



कहा जाता है कि भगवान भोलेनाथ के अवतार आदि शंकराचार्य देश में चार प्रमुख मठों की स्थापना करने के पश्चयात देशाटन में निकले थे और ओंकारेश्वर, काशी, प्रयागराज के बाद रेव पट्ट्नम यानी की रीवा पधारे थे। उन्होंने बीहर नदी के किनारे रह कर एक हफ्ते तक एकात्म चिंतन किया था.

देश में 4 नहीं 5 मठों की स्थापना हुई थी


आदिशंकराचार्य ने भारत का भ्रमण किया था और देश के भीतर 5 मठों की स्थापना की थी जिनमे से एक मठ रीवा को भी घोषित किया गया था। दुर्भाग्य से देश के 4 मठों को ही तवज्जो दी गई. सबको यही लगता है कि आदिशंकराचार्य ने देश की 4 दिशाओं में 4 मठों की स्थापना की जबकि उन्होंने 5 मठों की स्थापना की थी। उन्होंने उड़ीसा के पूरी में 'गोवेर्धन मठ', द्वारका में 'शारदा मठ', उत्तराखंड में 'ज्योतिर्मठ' और दक्षिण में रामेश्वरम में 'श्रृंगेरी' मठ के साथ रीवा में 'पंचमठ' की स्थापना की थी। लेकिन यहां के राजाओं ने कभी पंचमठ को उतनी एहमियत नहीं दी जितनी अन्य मठों को मिली। और ना ही बीती सरकारों ने इसे विकसित करने की सोची

कौन थे आदि शंकराचार्य जानने के लिए यहां क्लिक करें

उनके रीवा आने के प्रमाण भी हैं


साल 1986 में काँचीकामकोटि के शंकराचार्य 'जयेन्द्र सरस्वती' अपने उत्तरधिकारी विजयेंद्र के साथ रीवा आए थे। तब उन्होंने कहा था कि रीवा में आदि शंकराचार्य द्वारा घोषित पांचवे मठ की स्थापना का प्रमाण मिलता है। पूरी के शंकराचार्य निरंजन तीर्थ ने भी अपने रीवा प्रवास के दौरन रीवा में मौजूद पांचवे मठ का उल्लेख किया है। समय-समय पर शंकराचार्य रीवा के पंचमठा में आते रहते हैं।

रीवा को अध्यात्म का केंद्र बनाना चाहते थे


ऐसा कहा जाता है कि जगद गुरु आदि शंकराचार्य रेव पट्ट्नम यानी के रीवा को आध्यात्मिक केंद्र बनाना चाहते थे। ताकि यहां एकात्म दर्शन और सामाजिक एकता की अलख जगाई जा सके। प्रयागराज, काशी, चित्रकूट, अमरकंटक जैसे क्षेत्र उस वक़्त साधू-संतों के प्रमुख केंद्र थे। इस माध्यम से रेव पट्टनम को भी विकसित किया जाना था।

एक हफ्ते तक बिहर नदी के किनारे एकात्म चिंतन किए थे

आठवीं सदी में रीवा में बौद्धों का बहुत प्रभाव था। रीवा के देउर कोठार और सतना के बरहुत में इसके सबूत मिलते हैं। बौद्धों के प्रभाव को ख़त्म करने और सनातनी सभ्यता का प्रचार करने के लिए आदि शंकराचार्य देश प्रवास में निकले थे। इसी दौरन वह रीवा में बिहर नदी के किनारे एक हफ्ते तक ठहरे थे और पंचमठा को पांचवे मठ के रूप में बनाने की घोषणा की थी।

तो रीवा का मठ अन्य मठों जितना प्रचलित क्यों नहीं


दरअसल जब 1200 साल पहले आदि शंकराचार्य ने रेव पट्टम में पांचवे मठ को स्थापित करने की घोषणा किए उसके बाद रीवा में उनके उत्तराधिकारी की व्यवस्था नहीं हो पाई। और सन 820 में 32 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। इसी लिए रीवा कभी अध्यातिम रूप से विकसित नहीं हो सका।

अब हो रहा विकसित


बीते 1200 सालों में आदि शंकराचार्य जी के द्वारा जो पांचवा मठ रीवा में स्थापित किया गया वो उपेक्षा का शिकार रहा। अगर उनके देहांत के बाद यहां के राजाओं ने मठ की सही तरीके से जिम्मेदारी संभाली होती तो रीवा आज अध्यात्म का केंद्र होता। ठीक वैसे ही जैसे बद्रीधाम, पूरी, रामेश्वरम और द्वारका है। लेकिन अब पांचवे मठ का विकास हो रहा है। रीवा के पूर्व मंत्री एवं विधयाक राजेंद्र शुक्ल की पहल से बिहर बिछिया नदी के तट पर रिवर फ्रंट बनाया जा रहा है। जिसके अंतर्गत आने वाले पंचमठ को विकसित किया जा रहा है।

Abhijeet Mishra | रीवा रियासत

Abhijeet Mishra | रीवा रियासत

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