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देवेश सारस्वत को रीवा मेडिकल कॉलेज के डीन पद से हटाया गया, डॉ. मनोज इंदुलकर को फिर मिली जिम्मेदारी; विधानसभा में उठा था भ्रष्टाचार का मुद्दा

Aaryan Puneet Dwivedi | रीवा रियासत
21 March 2023 12:05 PM IST
Updated: 2023-03-21 09:12:26
देवेश सारस्वत को रीवा मेडिकल कॉलेज के डीन पद से हटाया गया, डॉ. मनोज इंदुलकर को फिर मिली जिम्मेदारी; विधानसभा में उठा था भ्रष्टाचार का मुद्दा
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देवेश सारस्वत को रीवा मेडिकल कॉलेज के डीन पद से हटाया गया

रीवा मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. देवेश सारस्वत को पद से हटा दिया गया है. उनकी जगह एक बार फिर डॉ. मनोज इंदुलकर को डीन पद की जिम्मेदारी मिली है.

मध्यप्रदेश विधानसभा में रीवा मेडिकल कॉलेज में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठने के बाद श्याम शाह मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. देवेश सारस्वत को पद से हटा दिया गया है. उनकी जगह एक बार फिर डॉ. मनोज इंदुलकर को मेडिकल कॉलेज की जिम्मेदारी सौंपी गई है.

सोमवार को विधानसभा में रीवा संभाग के तीन विधायकों ने डीन डॉ. देवेश सारस्वत पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था. सीधी जिले के चुरहट विधायक शरदेंदु तिवारी ने रीवा मेडिकल कॉलेज के डीन पर कर्मचारियों के बिलों को रोकने का मामला ध्यानाकर्षण के जरिए उठाया था.

मनगवां विधायक पंचुलाल प्रजापति ने डीन पर प्राइवेट अस्पताल संचालित करने का मामला उठाया. पंचुलाल का समर्थन विधायक कुंवर सिंह टेकाम ने भी किया और कहा कि सरकारी मेडिकल कॉलेज में इलाज मिलने के बजाय प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों को भेजकर लुटाई की जा रही है. इस पर स्पीकर गिरीश गौतम ने स्वास्थ्य मंत्री विश्वास सारंग से कहा था, डीन को हटा दो, सरकार की बदनामी क्यों कराते हो.

इसके बाद डॉ. देवेश सारस्वत को डीन पद से हटाने का आदेश जारी कर दिया गया और जिम्मेदारी डॉ. मनोज इंदुलकर को सौपी गई. साथ ही डॉ. राहुल मिश्रा को संजय गांधी अस्पताल रीवा का अधीक्षक बनाया गया है.

एसजीएमएच की चिकित्सीय व्यवस्था चौपट कर दी

डॉ. मनोज इंदुलकर के डीन पद पर रहते हुए रीवा मेडिकल कॉलेज के अंतर्गत आने वाले एसजीएमएच में कुछ हद तक अच्छी चिकित्सीय व्यवस्था रही है, इसके लिए तत्कालीन कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी भी तत्पर थें और कोरोनाकाल के दौरान भी अस्पताल की व्यवस्थाओं में कोई कमी नहीं होने दी और सतत निगरानी की. लेकिन नए डीन डॉ. देवेश सारस्वत के आने के साथ ही अस्पताल की चिकित्सीय व्यवस्था एक बार फिर चौपट हो गई. साथ ही अस्पताल के अंदर राजनीति हावी होने लगी और मरीजों को सरकारी अस्पताल के OPD से प्राइवेट अस्पताल में दिखाने और भर्ती कराने की सलाह दी जाने लगी.

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