- Home
- /
- मध्यप्रदेश
- /
- रीवा
- /
- रीवा के अमहिया से चलती...
रीवा के अमहिया से चलती थी कांग्रेस की राजनीति: कमलनाथ की कांग्रेस ने दादा के परिवार से दूरी बनाई, 71 साल बाद किसी को टिकट नहीं, अब भाजपाई हुए
1952 से रीवा के अमहिया से शुरू हुआ तिवारी परिवार का राजनीतिक सफर क्या खत्म होने की कगार पर है? 1952 में मध्यप्रदेश के सबसे कम उम्र के विधायक बनने वाले श्रीनिवास तिवारी अब दुनिया में नहीं हैं। विंध्य के सफ़ेद शेर के नाम से विख्यात पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और कांग्रेस के दिग्गज नेता श्रीनिवास तिवारी उर्फ दादा का निधन 17 जनवरी 2018 को दिल्ली में हुआ। इसके ठीक अगले साल 2019 में उनके पूर्व सांसद पुत्र सुंदरलाल तिवारी का भी निधन हो गया। इतना ही नहीं 2021 में दादा के पौत्र विवेक तिवारी 'बबला' का भी निधन हो गया। इन सबके बाद अब अगर कोई तिवारी परिवार से राजिनीति में सक्रिय है तो वह हैं पूर्व लोकसभा प्रत्याशी एवं पूर्व सांसद सुंदरलाल तिवारी के पुत्र सिद्धार्थ तिवारी 'राज'। सिद्धार्थ ने बुधवार को भोपाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेशाध्यक्ष वीडी त्रिपाठी के हाथो भाजपा की सदस्यता ले ली है।
दादा और पिता के देहांत के बाद सॉफ्टवेयर इंजीनियर सिद्धार्थ तिवारी (Siddharth Tiwari Raj) दिल्ली से वापस रीवा आए और पारिवारिक राजनीति को आगे की दिशा में बढ़ाने के लिए जुट गए। उन्हे 2019 में कांग्रेस ने रीवा लोकसभा का प्रत्याशी बनाया, लेकिन वे भाजपा की मोदी लहर के सामने टिक न सके, लिहाजा बड़े अंतर से भाजपा सांसद जनार्दन मिश्रा ने उन्हे हरा दिया। लेकिन सिद्धार्थ ने न हार मानी, न रुके। वे अमहिया परिवार की राजनीति को बचाने में जुट गए। उन्होने उसी समय से ही विधानसभा की तैयारी शुरू कर दी। पार्टी के सामने त्योंथर विधानसभा की उम्मीदवारी की इच्छा जाहिर की और त्योंथर की जनता के दिवंगत दादा के नाती के तौर पर जाते रहें। लेकिन 2023 विधानसभा चुनाव के टिकट वितरण के ऐन पहले कांग्रेस ने उनसे कन्नी काट ली और पूर्व प्रत्याशी रमाशंकर सिंह पटेल को त्योंथर विधानसभा का प्रत्याशी बना दिया। (यह भी पढ़ें... रीवा की 4 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवार: त्योंथर में रमाशंकर, मऊगंज से सुखेन्द्र बन्ना, मनगवां से बबिता और गुढ़ में कपिध्वज को मिला टिकट; चार सीटें अभी होल्ड)
इस बीच यह भी खबर आती रही कि त्योंथर से टिकट न मिलने से खफा होकर सिद्धार्थ भाजपा नेताओं के संपर्क में आ गए हैं। सिद्धार्थ ने अपने सोशल मीडिया प्रोफ़ाइल से 'कांग्रेस' हटाकर 'विंध्य' कर दिया। कांग्रेस पदाधिकारी और कार्यकर्ता रहें उनके कई समर्थकों ने अपने अपने पद और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। बावजूद इसके सिद्धार्थ को टिकट नहीं मिली।
तिवारी के समर्थक कांग्रेस से नाराज
कांग्रेस से सिद्धार्थ तिवारी को टिकट न मिलने से न सिर्फ सिद्धार्थ और उनके समर्थक नाराज हैं, बल्कि पूर्व विधानसभा अध्यक्ष स्व. श्रीनिवास तिवारी के समर्थक भी अच्छा खासा नाराज हैं। हालांकि त्योंथर से उम्मीदवारी न मिलने के बाद अब तक सिद्धार्थ का कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। लेकिन इतना तो साफ है कि प्रदेश कांग्रेस ने पूर्व विधानसभा अध्यक्ष स्व. श्रीनिवास तिवारी के समर्थकों में काफी असंतोष है। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष के अभी भी हजारों समर्थक हर विधानसभा में मौजूद हैं और वे यूं ही दादा के परिवार की राजनीति को खत्म होते हुए नहीं देख सकते हैं। यूं तो तिवारी परिवार 2018 विधानसभा चुनाव के बाद से सत्ता से दूर है। लेकिन 71 साल बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि इस परिवार के सदस्यों को चुनाव की रेस से ही बाहर कर दिया गया हो।
सिद्धार्थ के सामने ये विकल्प
ऐसा नहीं है कि सिद्धार्थ को कांग्रेस से टिकट नही मिली तो उनके लिए सारे दरवाजे बंद हैं। सिद्धार्थ भाजपा नेताओं के संपर्क में हैं, भाजपा ने गुढ़ का उम्मीदवार अभी तक घोषित नहीं किया है। गुढ़ से सिद्धार्थ के पिता स्व. सुंदरलाल तिवारी 2014 में विधायक रहें हैं। यहां भी उनके कई समर्थक मौजूद हैं। भाजपा अपने खेमे में लेकर सिद्धार्थ को गुढ़ का विधानसभा प्रत्याशी बना सकती है। दूसरा विकल्प यह है कि कांग्रेस उन्हे सिरमौर से प्रत्याशी बना दे, लेकिन सूत्र बताते हैं कि सिद्धार्थ सिरमौर से चुनाव लड़ने के लिए राजी नहीं हैं। इसके अलावा उनके पास आम आदमी पार्टी और अन्य पार्टी के विकल्प हैं।
सिद्धार्थ अभी खुलकर सामने नहीं आ रहें हैं। लेकिन उनसे जुड़े सूत्र बताते हैं कि उन्हे जीत हार की फिकर नहीं है, उन्हे सिर्फ दुख इस बात का है कि अमहिया के जिस तिवारी परिवार ने कांग्रेस के लिए इतना कुछ किया। आज उसके ही परिवार से प्रदेश कांग्रेस ने कन्नी काटी है। इसका खामियाजा तो कांग्रेस को भुगतना पड़ सकता है। स्व. श्रीनिवास तिवारी के समर्थक भले ही किसी उम्मीदवार को जिता न सकें लेकिन आज भी हराने का दमखम रखते हैं।