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रीवा में स्वास्थ्य व्यवस्था के हाल बेहाल! मारे-मारे फिर रहे संजय गांधी अस्पताल में इलाज करवाने आये रोगी
संजय गाँधी स्मृति चिकित्सालय (SGMH) रीवा
कोई विकल्प न होने की वजह से मजबूरन लोगों को इलाज के लिए सबसे पहले संजय गांधी या फिर जीएम अस्पताल आना पड़ता है। जिले के जिस निवासी का अभी तक संजय गांधी अस्पताल से पाला नहीं पड़ा है उसका मानना है कि संजय गांधी अस्पताल बहुत बड़ी-बड़ी बिल्डिंग के साथ अच्छी सुविधाएं मिलती होगी। लेकिन हकीकत इसके उलट है।
अस्पताल प्रवेश गेट से लूट
हालत तो यह है कि रोगी अस्पताल के गेट में प्रवेश करने से डरता है। क्योंकि रोगी और उसके साथ आए परिजनों से लूट का सिलसिला वाहन पार्किंग स्टैंड से ही शुरू हो जाता है। न तो कहीं बोर्ड लगे हुए हैं। ठेकेदार मनमानी वसूली कर रहा है। डॉक्टर हो या अधिकारी सभी की आवाजाही लगी रहती है। रोगी परिजनों और वाहन स्टैंड के कर्मचारियों के बीच तू-तू मैं-मैं होती रहती है लेकिन किसी को इसकी कोई परवाह नहीं है।
दलाली में ज्यादा मशरूफ
बात अगर आगे की करें तो रोगी को एंबुलेंस या किसी वाहन से उतारने के बाद सबसे पहली आवश्यकता इस प्रेशर की होती है। दिखावे के लिए संजय गांधी अस्पताल प्रबंधन कुछ कर्मचारियों को स्टेटस सुविधा मुहैया कराने नियुक्त कर रखा है। लेकिन वहां तैनात कर्मचारी भी स्ट्रेचर देने में कम दलाली में ज्यादा मशरूफ रहते हैं।
ऐसा ही हाल कुछ पर्ची काउंटर का है। चाहे जितनी भीड़ हो ओपीडी पर्ची कटवाने के लिए एक या दो काउंटर ही चलते हैं। ऐसा नहीं है कि भीड़ कम होने पर एक काउंटर संचालित हो और भीड़ बढ़ जाने के बाद दूसरा काउंटर भी चालू किया जाए। कई बार तो लंबी भीड़ लग जाती है और मात्र एक ही काउंटर पर ओपीडी पर्ची, जांच पर्ची, जांच रसीद पर्ची, आईपीडी की पर्ची काटी जाती है।
धौस जमाते दिख रहे सिक्योरिटी गार्ड
पर्ची कटवा कर अगर कोई रोगी के साथ परिजन वार्ड की ओर बढ़ता है तो उसका सामना सिक्योरिटी गार्ड से होता है। सिक्योरिटी गार्ड लोगों को सुविधा देने के बजाए उन पर धौंस जमाना शुरू कर देता है। अगर किसी रोगी के परिजन को अस्पताल के बारे में जानकारी नहीं है तो वह अपने रोगी को लिए यहां वहां वार्ड तक पहुंचने के लिए भटकता रहता है। सिक्योरिटी गार्ड यहां मत जाओ, वहां मत जाओ, इधर से क्यों आ गए, वापस जाओ जैसी बातें कहकर उनकी समस्या बढ़ा देते हैं।
क्या बात करें जूनियर डॉक्टरों की
जब रोगी का सामना डॉक्टर से होता है तो उसके लिए भी कम संघर्ष नहीं है। इन सरकारी अस्पतालों में तैनात डॉक्टर रोगी को इलाज देने के पहले काफी समय तक इंतजार करवाते हैं। क्योंकि संजय गांधी और गांधी मेमोरियल अस्पताल मे तैनात चिकित्सकों के पास रोगियों के लिए कोई समय नहीं है। वर्क लोड से परेशान जूनियर डॉक्टर कई बार रोगियों को संतुष्ट नहीं कर पाते और उसमें विवाद की स्थिति बन जाती है। वास्तव में देखा जाए तो आन काल ड्यूटी के नाम पर बड़े डॉक्टर ढूंढे नहीं मिलते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि संजय गांधी अस्पताल और गांधी मेमोरियल अस्पताल केवल जूनियर डॉक्टर और नर्सों के भरोसे चल रहे हैं।
मंत्री मनिस्टर की तरह करते हैं राउंड
विशेष प्रोटोकॉल प्राप्त व्यक्ति की तरह डॉक्टरों का राउंड होता है। रोगियों की सेवा के लिए तैनात बड़े डॉक्टर जब राउंड पर आते हैं उस समय ऐसा लगता है मानो पीएम या सीएम इस बरामदे से गुजरने वाले हैं। बरामदे से बेड पर पड़े रोगी का हाल-चाल जान लेते हैं और सीधे अपने बंगले का रुख करते हैं। जहां पर मोटी फीस लेकर रोगियों को नजदीक से देखने की रस्म पूरी की जाती है।
डाक्टरों के स्वयं के अस्पताल
आज हालत यह है कि संजय गांधी और गांधी मेमोरियल अस्पताल में तैनात डॉक्टर पार्ट टाइम ड्यूटी की तरह अस्पताल में आकर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। कई ऐसे डॉक्टर हैं जिन्होंने बड़े-बड़े अस्पताल खड़े कर लिए हैं। ज्यादातर समय उनका वही व्यतीत होता है।
सेटिंग के लिए देते हैं समय
निजी अस्पताल से अगर खाली होते हैं तो अपने इसी अस्पताल की व्यवस्था के लिए सेटिंग में लगे रहते हैं। फिर चाहे वह नेता हो या फिर स्वास्थ्य विभाग के बड़े आला अधिकारी या जिले के प्रशासनिक अधिकारी।