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रीवा के अमर शहीद दीपक सिंह को मिला वीर चक्र, गलवान घाटी में चीनी सैनिकों से हुई मुठभेड़ में देश के लिए दिया था बलिदान
Amar Shaheed Deepak Singh: रीवा की माटी में जन्मे और देश की माटी को अपने लहू से सींच देने वाले अमर शहीद योद्धा दीपक सिंह को' वीर चक्र' से सम्मानित किया गया। उनकी वीरवधू (पत्नी) रेखा सिंह को देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों वीर चक्र सौंपा गया. शहीद दीपक सिंह की वीर गाथा को याद किया गया। याद हो कि पिछले साल 2020 जून में लद्दाख की खतरनाक गलवान घाटी में अचानक से भारतीय जवानों पर चीनी सैनिकों ने रात के अँधेरे का फायदा उठाते हुए कायरों की तरह हमला कर दिया था, चीनी सैनिकों से बॉर्डर में लड़ते दीपक सिंह ने 30 साल की उम्र में देश के लिए बलिदान दे दिया था।
रास्ट्रपति भवन में बैठे लोगों ने सुनी शहीद दीपक सिंह की गौरव गाथा
दिल्ली में मौजूद राष्ट्रपति भवन में शहीद दीपक सिंह की वीरवधू 'रेखा सिंह' को आमंत्रित किया गया इस दौरन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत भारत के कई बड़े नेता वहां मौजूद थे। राष्ट्रपति हाथ में वीर चक्र लिए खड़े थे और वीरवधू रेखा सिंह अपनी नम आँखों के साथ अपने अमर जवान पति शहीद दीपक सिंह को सम्मानित करने वाले वीर चक्र की और आगे बढ़ रही थीं। इस दौरन हॉल में बैठे सभी लोगों ने दीपक सिंह की गौरव गाथा को सुना, राष्ट्रपति भवन में मौजूद स्पीकर ने कहा....
" नायक दीपक सिंह, सेना चिकित्सा कोर, 16 वीं बटालियन दी बिहार रेजिमेंट'
"नायक दीपक सिंह बटालियन में नर्सिग सहायक की ड्यूटी का निर्वाहन कर रहे थे, ऑपरेशन स्नो लेपर्ड के दौरन उन्होंने गलवान घाटी में भिड़ंत के दौरन हताहतों को उपचार उपलब्ध कराया, जैसे ही दोनों पक्षों के बीच भिड़ंत शुरू हुई और हताहतों की संख्या बढ़ी, वो अपने घायल सैनिकों को प्राथमिक उपचार प्रदान करते हुए आगे बढ़ने लगे, भिड़ंत में आगे हो रहे पथराव के चलते उनको गंभीर चोटें आईं, लेकिन इसके बाद भी वो अडिग रहे और निरंतर चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराते रहे दुश्मनों की संख्या भारतीय सैनिको की टुकड़ी से ज़्यदा हो गई थी, गंभीर ज़ख्मों के बाद भी उन्होंने घायल सैनिकों को चिकित्सा प्रदान करना ज़ारी रखा, और कई सैनिकों की जान बचाई, अंत में वो अपनी चोटों के कारण शहीद हो गए। उपचार उपलब्ध कराने 30 से अधिक भारतीय सैनिक की जान बचाने में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया, जो उनके पेशेवर कुशाग्र बुद्धि तथा निष्ठा को प्रदर्शित करता है। नायक दीपक सिंह ने प्रतिकूल हालात में अतुल्यनीय दक्षता, अदम्य समर्पण का प्रदर्शन किया और देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया'
और इतना सुनते ही पूरे हॉल में तालियों की गूंज बजने लगी
अपनी पत्नी को कश्मीरी शॉल लाने का वादा किया था
शहीद दीपक सिंह बिहार रेजिमेंट में नर्सिंग असिस्टेंट नायक के पद पर रह कर भारत माँ की रक्षा में तैनात थे, उनकी शहादत से ठीक 8 माहीने ही उनकी शादी हुई थी। उनकी पत्नी रेखा सिंह से वो सिर्फ एक बार ही मिल पाए थे, जब वो शादी के बाद पहली बार होली की छुट्टी में घर लौट कर आये थे। उन्होंने अपनी पत्नी के लिए कश्मीरी शॉल और लेहंगा लाने का वादा किया था। शहीद होने से ठीक 15 दिन पहले दीपक सिंह ने अपने परिवार से फोन पर बात की थी. लेकिन भारत माँ की रक्षा करते हुए वह कभी लौट ज़िंदा कर वापस नहीं आ पाए, लेकिन अमर होकर तिरंगे में लिपटा हुआ उनका पवित्र शव घर पंहुचा, वह अपनी पत्नी से किया वादा पूरा ना कर सके. लेकिन उनके इस बलिदान ने पूरे देश को गौरवान्वित किया, उनके माता-पिता को इस बात पर गर्व है। उनकी पत्नी रेखा सिंह को अपने पति दीपक सिंह पर गर्व है।
कर्नल सहित 20 जवानों ने दी थी शहादत
गलवान घाटी में शहीद दीपक सिंह के 20 साथियों समेत सेना के एक कर्नल को भी शहादत मिली थी। चीनी सैनिको द्वारा हमला करना उन्ही कायर चीनी सैनिको पर ही भारी पड़ गया था देश के वीर योद्धाओं ने चीनी सैनिकों को उठा-उठा कर घाटी के नीचे फेंक दिया था। शहीद दीपक सिंह 15 जुलाई 1989 में रीवा के फरांदा गांव में पैदा हुआ थे और साल 2012 में भारतीय सेना के बिहार रेजिमेंट में बतौर नर्सिंग असिस्टेंट चिकित्सा कोर में भर्ती हुए थे
रीवा रियासत शहीद दीपक सिंह की बहादुरी और कर्तव्यनिष्ठा को सलाम करता है