Special Olympics 2011 में डबल ब्रॉन्ज मेडल जीता था, अब गोलगप्पे और समोसे बेंच रही है 'रीवा की सीता'
Special Olympics 2011 में डबल ब्रॉन्ज मेडल जीता था, अब गोलगप्पे और समोसे बेंच रही है रीवा की सीता
2020 का Olympics और Paralympics टोक्यो (Tokyo) में हो रहा है. इन खेलों में देश को कोई भी मेडल जिताने वाले खिलाड़ी आज पैसे और शोहरत दोनों बाखूबी पा रहें हैं. लेकिन मध्य प्रदेश के रीवा की सीता साहू (Sita Sahu) के साथ ऐसा नहीं हुआ. सीता साहू ने वर्ष 2011 के Special Olympics में भारत को डबल ब्रॉन्ज मेडल जिताए थें. लेकिन आज वही सीता गुमनाम है. आर्थिक तंगी से जूझ रही है, पेट पालने के लिए समोसा और गोलगप्पे बेचने को मजबूर है.
रीवा की सीता साहू 2011 में ग्रीस में आयोजित एथेंस में विशेष ओलंपिक (Special Olympics) के दौरान 200 और 4x400 मीटर रिले दौड़ में कांस्य पदक (Bronze Medal) जीतके अपने देश को गर्व महसूस करवाया. इसके बाद 2013 में केंद्र सरकार के तत्कालीन केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) ने सीता साहू का सम्मान करते हुए भारत का गौरव कहा था. उसे 5 लाख का चेक और जीवन यापन के लिए रीवा में दुकान एवं मकान के साथ उसकी खेल प्रतिभा को निखारने के लिए विशेष ट्रेनिंग देने की बात कही थी. लेकिन परिजनों की मानें तो चेक की राशि के अलावा बाकी सभी बाते हवा हवाई रह गई. ऐसे ही वादे राज्य सरकार द्वारा भी किए गए, लेकिन उसमें भी कुछ ख़ास हांथ नहीं लगा.
रीवा के कटरा मोहल्ला स्थित धोबिया टंकी निवासी पुरुषोत्तम साहू की मानसिक रूप से दिव्यांग बेटी सीता शहर के मूकबधिर स्नेह स्कूल में पढ़ती थी. 2011 में स्कूल के तत्कालीन प्रधानाचार्य रामसेवक साहू ने सीता को प्रोत्साहित कर उसे स्पेशल ओलंपिक्स में हिस्सा लेने के लिए प्रशिक्षित करने भोपाल भेजा था. उस दौरान सीता के परिवार पर उसकी ट्रेनिंग को लेकर 40 हजार का कर्ज भी हो गया था. लेकिन सीता के हौसले बुलंद थें.
उसे सीएम शिवराज ने 7 अन्य प्रतिभागियों के साथ चाय पर आमंत्रित किया और उसका हौसला बढ़ाया. फिर सीता ने वो कर दिखाया जो अविश्वसनीय था. सीता ने 2011 में एथेंस में विशेष ओलंपिक के दौरान 200 और 4x400 मीटर रिले दौड़ में कांस्य पदक जीत के अपने देश को गर्व महसूस करवाया.
सीता साहू और उसके परिवार की आर्थिक स्थिति अब दयनीय हो चुकी है. बाकियों की तरह अब उसका परिवार और खुद सीता भी यह भूल चुकी है कि उसने अपने देश को डबल ब्रॉन्ज़ मेडल जिताकर दिया था. इस गुमनामी भरी जिंदगी में उनका परिवार पेट पालने के लिए अपने पारम्परिक व्यवसाय (गोलगप्पे और समोसा बेंचकर) के तहत जीवन यापन कर रहें हैं.
जब भी ओलंपिक्स या खेलों की बात होती है तो सीता साहू अपनी स्थिति को लेकर अख़बारों की सुर्खियां बन जाती है. प्रशासन उस तक पहुँचता है, वादे करता है पर फिर एक बार वह वादा हवा हवाई साबित हो जाता है.
सीता साहू ने रीवा ही नहीं बल्कि पूरे देश को गौरवान्वित किया है. हांलाकि प्रशासन की माने तो सरकार और प्रशासन ने सीता साहू को किए हर वादों को पूरा किया है. सीता की विशेष ट्रेनिंग की व्यवस्था भी की गई. आगे भी खेल सके और देश का नाम रोशन कर सके इसका पूरा ध्यान प्रशासन की ओर से दिया जा रहा है.