Wildlife: बाघिन ने जंगल में शावकों को जन्म देकर छोड़ा तो मुकुंदपुर ज़ू की टीम ने उन्हें पाल लिया
REWA: इंसानियत क्या है? इंसान होना या फिर सभ्य समाज का चोला ओढ़कर जीना? इंसानियत के कई पर्याय हो सकते हैं लेकिन इंसानियत का धर्म सिर्फ एक है, इस संसार में हर एक प्राणी की हिफाजत करना, उन्हें इस दुनिया में बराबरी से जीने का हक़ देना ही एक इंसान का परम धर्म है।
मुकुंदपुर ज़ू एन्ड व्हाइट टाइगर सफारी के फारेस्ट टीम ने इंसानियत की मिसाल पेश की है, जंगल में बेसहारा भटक रहे 2 नन्हे शावकों को खतरनाक जंगली जानवरों से बचाते हुए उन्हें टाइगर सफारी में लाया गया है और उनका लालन-पोषण किया जा रहा है।
मध्यप्रदेश के कटनी-बाधवगढ़ नेशनल पॉर्क के कॉरिडोर में वन विभाग की टीम ने 2 अनाथ भटकते बाघिन के शावकों को बड़ी बुरी स्थिति में देखा था, बाघ के बच्चे भीगी बिल्ली जैसे हो गए थे, उनका शरीर काफी कमजोर था क्योंकि उनकी माँ ने ही जन्म देने के उपरांत उन्हें त्याग दिया था। खतरनाक जंगल में 2 नन्हे शावक अपनी माँ के बिना ज़्यादा दिन तक जिन्दा नहीं रह पाते, लिहाजा महाराजा मार्तण्ड सिंह जु देव चिड़ियाघर एवं वाइट टाइगर सफारी की टीम ने उन्हें अपने साथ ले आई और उनकी जान बचा ली
इंसानियत की पूरी कहानी समझिये
करीब एक से डेढ़ महीने पहले कटनी-बाधवगढ़ नेशनल पार्क के कॉरिडोर में दो शावकों को देखा गया था, उनकी हालत कुछ ठीक नहीं थी. वन विभाग ने उन शावकों को पकड़ लिया लेकिन उसी जंगली इलाके में उन्हें इसी उम्मीद से छोड़ दिया जाता था कि शायद उनकी माँ अपने बच्चों को खोजते हुए वापस लौट आये, ऐसा करते एक हफ्ता बीत चुका था
माँ आती थी लेकिन अपने बच्चों के पास नहीं जाती थी
वन विभाग की टीम ने बताया कि जंगल में उन दोनों शावकों को देखते के लिए बाघिन आती तो ज़रूर थी लेकिन कभी उनके करीब नहीं जाती थी. वो बच्चे भूक से तड़पते रहते थे लेकिन वह उन्हें अपने साथ लेकर नहीं जाती थी. ऐसी स्थिति में वन विभाग ने उन दोनों शावकों को मुकुंदपुर चिड़ियाघर ली आने का फैसला किया।
उन्हें ज़ू में मौजूद वेटरनरी वार्ड में इलाज के लिए भर्ती किया गया. शुरुआत में दोनों शावकों की हालत अच्छी नहीं थी लेकिन सही इलाज मिलने के बाद अब वो पूरी तरह से स्वस्थ बताए जा रहे हैं. और अब वो वह खाना भी खाते हैं.
एक शावक को वह अपने साथ लेकर चली गई
वन विभाग के लोगों का कहना है कि बाघिन ने 3 शावकों को जन्म दिया था, जिनमे से एक उसी के साथ रहता था और अन्य 2 शावकों को उसने उन्ही के हाल में छोड़ दिया था, ऐसा बाघिन से इसी लिए किया क्योंकि वह दोनों शावक जन्म से ही कमजोर थे. बाघिन अपने बच्चों के पैदा होने के बाद उन्हें ट्रेनिंग देती है और जब वो खुद से शिकार करने लायक हो जाते हैं तो बाघ अपना रास्ता खुद चुनते हैं. चूंकि दोनों शावक पहले से ही कमजोर थे इसी लिए उसने उन्हें त्याग दिया था और सिर्फ एक शावक को अपने साथ रखा था.
दोनों शावक अब कैसे हैं
मुकुंदपुर चिड़िया घर लाए गए दोनों शावकों का स्वस्थ अब पहले से तो बेहतर है लेकिन वो जन्म से ही कमजोर हैं. दोनों को क्रिटिकल केयर में रखा गया है. एक शावक को हार्निया की तकलीफ है, हालांकि पशु चिकित्सकों का कहना है कि कुछ वन्य प्राणियों में जन्म से हार्निया की समस्या होती है लेकिन वो समय के साथ ठीक हो जाती है. इसी लिए उसका ऑपरेशन करना जल्दबाज़ी होगी, लेकिन जब वो थोड़ा बड़ा हो जाएगा तो उसे ऑपरेट करके हार्निया ठीक कर दिया जाएगा।
क्या उन्हें ठीक होने के बाद वापस जंगल में छोड़ा जाएगा?
यह कहना मुश्किल है कि उन नन्हे शावकों के पूरी तरह ठीक होने के बाद उन्हें कहां ले जाया जाएगा। लेकिन इतना तो पक्का है कि उन्हें वापस जंगल में नहीं छोड़ा जा सकता। क्योंकि जंगल में पैदा होने वाले बाघों या कोई भी इस प्रजाति के जानवरों को उनकी माँ जीवन जीने, जंगल में सर्वाइव करने और शिकार करना सिखाती है. इन दोनों शावकों को यह शिक्षा मुकुंदपुर के चिड़ियाघर में तो नहीं दी जा सकती। उन्हें सिर्फ उनकी माँ ही जंगल में सर्वाइव करना सीखा सकती है जिसके इन्हे पहले ही त्याग दिया है। ऐसा माना जा रहा है कि इन नन्हे शावकों को मुकुंदपुर ज़ू के ही एक बाड़े में रखा जाएगा। लेकिन इसका निर्णय भी APCCF Wild Life को लेना है।