शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की कहानी, 9 साल की उम्र में घर छोड़ा, 19 की उम्र में क्रन्तिकारी साधु बन गए
शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती की जीवनी: हिन्दुओं के सबसे प्रमुख सनातनी धर्मगुरु द्वारिकापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का रविवार 11 सितम्बर दोपहर 3:30 बजे निधन हो गया. मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर में मौजूद आश्रम में उन्होंने प्राण त्याग दिए. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के निधन ने पूरे देश को झगझोर कर रख दिया। हिन्दुओं को संगठित करने के लिए स्वामी शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी ने पूरा जीवन समर्पित कर दिया।
Story Of Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati: द्वारिकामठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का 99 वर्ष की उम्र में देहांत हुआ. वह काफी दिनों से अस्वस्थ थे और डॉक्टर्स की निगरानी में उनका इलाज चल रहा था. रविवार के दिन उनकी तबियत बिगड़ गई और दोपहर तह उनकी पवित्र आत्मा ने देह का त्याग कर दिया।
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती कौन थे
Who was Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati: जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी दो मठों (द्वारका एवं ज्योतिर्मठ) के शंकराचार्य थे. शंकराचार्य का पद सबसे बड़ा सनातनी धर्मगुरु का पद होता है. जो हिन्दुओं का मार्गदर्शन, भागवत प्राप्ति और धार्मिक विषयों में हिन्दुओं को सही मार्ग का ज्ञान देते हैं.
Shankaracharya Swaroopanand Saraswati Birth Place: जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जन्म 2 सितम्बर 1924 में मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के दिघोरी गांव में हुआ था. ब्राम्हण कुल में जन्मे स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के पिता श्री धनपति और माता श्रीमती गिरिजा देवी थीं. जिन्होंने शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को पोथीराम उपाध्याय का नाम दिया था.
9 वर्ष की उम्र में धर्म के लिए घर छोड़ दिया था
Shankaracharya Swaroopanand Saraswati Ki Kahani: पोथीराम उपाध्याय जब सिर्फ 9 साल के थे तभी धर्म के मार्ग में चलने के लिए उन्होंने अपना घर छोड़ दिया था. वह पैदल ही धार्मिक यात्राओं के लिए निकल गए थे. इस दौरान वह काशी पहुंचे और बाबा विश्वनाथ की नगरी में ब्रह्मलीन स्वामी करपात्री महाराज से वेद-वेदांग और सनातनी शास्त्रों का अध्यन किया।
19 साल की उम्र में क्रन्तिकारी साधू बन गए थे
Shankaracharya Swaroopanand Saraswati Story: जब पोथीराम उपाध्याय यानी जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती सिर्फ 19 वर्ष के थे, तब भारत को ब्रिटिश राज के मुक्त कराने की लड़ाई चल रही थी. जब 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो वह क्रन्तिकारी साधू के रूप में अंग्रेजों से भिड़ने चले गए. तभी से वह क्रन्तिकारी सनातनी साधू के रूप में पहचाने जाने लगे.
अंग्रेजों ने उन्हें 9 महीने के लिए वाराणसी और 6 महीन के लिए मध्य प्रदेश की जेल में डाल दिया था. बाद में जब वह रिहा हुए तो वाराणसी लौटकर करपात्री महाराज की राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष चुने गए थे.
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती शंकराचार्य कैसे बने
How Swami Swaroopanand Saraswati became Shankaracharya: स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती 1950 में दंडी सन्यासी बन गए थे, उन्होंने शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे। 1981 में उन्हें हिन्दुओं के मार्गदर्शक शंकराचार्य की उपाधि मिली। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने श्री राम जन्म भूमि के लिए आंदोलन शुरू किया था, उन्होंने ही काशी और मथुरा के लिए भी आंदोलन किया था.
कहा था साईं बाबा को मंदिरों से हटाओ
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती साईं बाबा की मूर्ति को मंदिरों में रखने के खिलाफ थे, उन्होंने आदेश जारी किया था कि मंदिरों से साईं बाबा की मूर्ति हटाई जाए क्योंकि ऐसा करके हिन्दू एक मुसलमान फ़क़ीर की पूजा कर रहे थे. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का कहना था कि साई बाबा एक मुस्लिम फ़क़ीर थे और उनकी पूजा मंदिरों में नहीं होनी चाहिए। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज इस्कॉन मंदिरों के भी खिलाफ थे, उनका मानना था कि कृष्णभक्ति के नामपर विदेशी लोग हिन्दू धर्म को विभाजित करना चाहते थे.