यूनिफॉर्म सिविल कोड से आदिवासियों को क्या तकलीफ है? क्या सरकार UCC में भी ट्राइबल्स को छूट देगी?
आदिवासी यूसीसी का विरोध क्यों कर रहे: भारत में समान नागरिक संहिता यानी Uniformed Civil Code (UCC) लागू करने पर मंथन चल रहा है. यूसीसी NDA सरकार के प्रमुख एजेंडों में से एक है जिसके नामपर पार्टी वोट भी लेती है. 'समान नागरिक संहिता' से सीधा तातपर्य यह है कि देश में रहने वाले प्रत्येक नागरिक के लिए एक कानून। UCC लागू होने के बाद ना तो कोई मुस्लिम लॉ होगा और ना ही हिन्दू लॉ, हर वर्ग, हर पंथ और हर समुदाय के लिए सिर्फ एक कानून। लेकिन देश में रह रहे आदिवासियों को UCC से तकलीफ है, उनका और राजनीतिक दलों का मानना है कि यूनिफॉर्मड सिविल कोड लागू होने से आदिवासियों को मिलने वाले विशेष अधिकार समाप्त हो जाएंगे.
UCC के तहत चाहे हिंदू हो या मुस्लिम, दलित हो या आदिवासी, पिछड़ा हो या सामान्य हर तरह के लोगों के लिए एक कानूनी ढांचा बनाना है. अगर UCC लागू होने के बाद भी किसी खास समुदाय के लिए खास कानूनों को जारी रखा जाता है तो यह UCC कहलाने के लायक नहीं बचता। और शायद सरकार आदिवासियों के विरोध के दबाव में आकर कुछ ऐसा ही करने वाली है.
आदिवासी कौन होते हैं?
Who Are Scheduled Tribes: कानून और संविधान के हिसाब से ST उन समूह के लोगों को कहा जाता है जो मुख्य सामाजिक धारा से अलग रहते हैं. उनके रीति-रिवाज अलग हैं, इनके कायदे-कानून अलग हैं. इनकी आदिमता, भौगोलिक अलगाव, सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ापन इन्हे अन्य जातीय समाज से भिन्न करता है. आम बोलचाल की भाषा में इन्हे आदिवासी कहा जाता है. लेकिन अब ST समाज का हिस्सा हैं, वो सरकारी पदों में हैं, कंपनियों में हैं, स्पोर्ट्स, साइंस, टेक्नोलॉजी, एकैडमिक्स हर क्षेत्र में योगदान देने लगे हैं. लेकिन बहुतायत अभी भी पिछड़े हैं
भारत में कितने आदिवासी समुदाय हैं
भारत आदिवासी बाहुल्य देश है. जहां 705 आदिवासी समुदाय हैं. सरकार इन्हे ST कहती है. भारत में 10.43 करोड़ आदिवासी हैं जो देश की आबादी का 8% है.
आदिवासी यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध क्यों कर रहे?
देश के हर राज्य में कई आदिवासी समुदाय रहते हैं, जो अपने ही बनाए कानून के हिसाब से जीते हैं. जैसे आदिवासी पुरुष और महिला एक से ज्यादा शादी कर सकता है, इनके संपत्ति का बंटवारा अलग तरीके से होता है, कुछ समुदायों में शादी के बाद पुरुष लड़की के घर रहता है तो कुछ समुदाय कम उम्र में ही शादी कर देते हैं.
ये बात भी सही है कि अगर आदिवासियों के लिए हमेशा अलग कानून रहेगा तो वो बाकी समाज की मुख्य धारा से कैसे जुड़ेंगे? और अगर उन्हे अलग-थलग ही रहना है तो वह मुख्य धारा से क्यों जुड़ना चाहते हैं? कुलमिलाकर आदिवासी चाहते हैं कि चिट्ट भी उनका रहे और पट्ट भी उनका रहे
अगर UCC पूरी तरह से लागू होता है तो आदिवासियों के रीति-रिवाजों और प्रथाओं पर प्रभाव पड़ना तय है. उन्हें भी वही कानून मानना पड़ेगा जो आम नागरिक मानता है. फिर अपने बहु-बेटियों से शादी करना, नाबालिग बच्ची की शादी करना, एक से ज्यादा शादी करना जैसी प्रथाओं पर रोक लग जाएगी। बीजेपी के लिए आदिवासी बहुत बड़ा वोट बैंक हैं और पार्टी कभी भी UCC के लिए 10 करोड़ ट्राइब को नाराज नहीं करना चाहेगी
हो सकता है कि UCC लागू होने के बाद भी आदिवासियों को उनके हिसाब से बनाए कानूनों का पालन करने की छूट दे दी जाए, लेकिन फिर इसे समान नागरिक कानून कहलाने का कोई हक़ नहीं होगा। आदिवासी भी देश के उतने ही नागरिक हैं जितना बाकी लोग तो ऐसे उन्हें अगर स्पेशल छूट मिलेगी तो दूसरे समुदाय भी अलग-अलग कानून की मांग करने लगेंगे।