जोशीमठ में क्या हुआ? पूरा शहर जमीन के अंदर धंस क्यों रहा, पूरा मामला समझिये
Where Is Joshimath: उत्तराखंड के पवित्र तीर्थ स्थल बद्रीनाथ धाम और हेमकुंड साहिब पहुंचने के बाद अंतिम चरण में हिमालय की तलहटी के नीचे बसा एक छोटा सा शहर है जोशीमठ (Joshimath). यहां रहने वाले लोग प्रलय का सामना कर रहे हैं. पूरा शहर जमीन के अंदर धंस रहा है. सड़के बीच से फट रही हैं, घर टूट रहे हैं. जगह-जगह से पानी निकल रहा है. ऐसी स्थिति बनी हुई है कि जैसे पूरा का पूरा इलाका पहाड़ियों के अंदर समा जाएगा। जोशीमठ में ऐसा क्यों हो रहा है और वहां के लोगों के लिए सरकार क्या मदद कर रही है सब यहीं मालूम चल जाएगा
जोशीमठ कहां है
जोशीमठ उत्तराखंड राज्य में ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग (NH 7) पर एक पहाड़ी में बसा शहर है. यह एक टूरिस्ट प्लेस है. क्योंकि बद्रीनाथ, फूलों की घाटी और हेमकुंड साहिब जाने वाले पर्यटक एक रात यहीं गुजारते हैं. यहां भारतीय सशत्र बालों की प्रमुख छावनियां भी हैं. यह शहर धौलीगंगा और अलकनंदा नदियों के संगम, विष्णुप्रयाग की उच्च ढाल वाली धाराओं को पार करते हुए एक चलती हुई रीज पर टिका हुआ है.
जोशीमठ में क्या हो रहा है
हिमालय की तलहटी में मौजूद जोशीमठ- एक प्राचीन भूस्खलन स्थल के ऊपर बना एक छोटा शहर है. भगवान बद्रीनाथ का शीतकालीन निवास, चीन-भारतीय सीमा पर तैनात सैनिकों के लिए एक मंचन स्थल, और हिमालयी अभियानों के लिए एक प्रकार का आधार शिविर है. लेकिन कुछ दशक पहले से यहां हुए निर्माणकार्य, और जनसंख्या वृद्धि के चलते जोशीमठ अब जमीन के अंदर धंसने लगा है. जोशीमठ डूब रहा है. और एक दिन यह उत्तराखंड के नक़्शे से गायब हो सकता है.
जोशीमठ के 800 घरों में रहने वाले नागरिकों ने कई बार सरकार से यहां के हालातों के बारे में ध्यान देने के लिए कहा था. निवासी कहते थे की उनके घर टूट रहे हैं. बीच से अलग हो रहे हैं. सड़के फट रही हैं और दरारों से पानी निकल रहा है. मगर पहले इसी ने जोशीमठवासियों की बातों को गंभीरता से नहीं लिया।
2020 में आई एक रिपोर्ट में कहा गया कि जोशीमठ अत्यधिक मोटी भूस्खलन के मलबे के ऊपर बना है जो कभी भी ढह सकता है और अपने साथ सब कुछ तबाह कर सकता है.
जोशीमठ करीब 6 हजार फीट की ऊंचाई पर बसा है, लेकिन बसाहट बढ़ने से फॉरेस्ट कवर 8 हजार फीट तक पीछे खिसक गया है। पेड़ों की कमी से कटाव और लैंड स्लाइडिंग बढ़ी है। इस दौरान खिसकने वाले बड़े पत्थरों को रोकने के लिए जंगल बचे ही नहीं हैं।
जोशीमठ हिमालय के जिस क्षेत्र में बसा है उसे पैरा ग्लेशियर कहा जाता है. इसका मतलब यहां पहले कभी ग्लेशियर थे. जो बाद में पिघल गए और मबला रह गया. वैज्ञानिक भाषा में ऐसी जगह को डिस-इक्विलिब्रियम (disequilibrium) कहा जाता है। इसके मायने हैं- ऐसी जगह जहां जमीन स्थिर नहीं है और जिसका संतुलन नहीं बन पाया है।
जोशीमठ डूब क्यों रहा है
जोशीमठ के डूबने का सबसे बड़ा कारण यहां का भूगोल है. जिस प्राचीन भूस्खलन पर इस शहर को बसाया गया था वह ज़्यादा भार सहन नहीं कर सकता है. लेकिन यहां सरकार ने नहर, सुरंग, सड़क चौड़ीकरण, पनबिजली परियोजना शुरू की. इनके निर्माण में चट्टानों पर विस्फोट किया किया और पिछले दशकों से चल रहे निर्माणकार्यों ने इस इलाके को अस्थिर बना दिया
इसके अलावा विष्णुप्रयाग से बहने वाली तेज़ धाराओं के कारण नीचे की मिट्टी का कटाव और अन्य प्राकृतिक धाराओं से हुए वाले कटाव के कारण यह अंदर से धंसने लगा. चट्टानें खिसकने लगीं, मिट्ठी बहने लगी और इसका असर ऊपर शहर की सतह में दिखाई दे रहा है.
डॉ स्वप्नमित्र ने इंडिया टुडे को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि 2013 में आई हिमालयन सुनामी ने यहां के ड्रेनेज सिस्टम को बिगाड़ दिया, जिसके कारण यहां नदियों की धाराओं के चलते कटाव होने लगा. ऋषिगंगा की बाढ़ ने हालात और ख़राब कर दिए और 2021 में अगस्त से लेकर अक्टूबर तक हुई बारिश ने अंदर के मलबे को ढीला कर दिया।
जोशीमठ में रहने वालों का क्या होगा
यहां बने करीब 800 घरों में दरारे आ चुकी हैं. सड़के फट रही हैं. यह दिल दहला देने वाला नजारा है. जहां के लोग अपने शहर को खत्म होते देख रहे हैं. अबतक 70 से अधिक परिवार पलायन कर चुके हैं. औरों को सुरक्षित ठिकानों में ले जाया जा रहा है. उत्तराखंड के जोशीमठ में एक बड़ा अस्थायी पुनर्वास केंद्र बनाया जाएगा जहां प्रभावित लोगों को पनाह दी जाएगी
PMO ने राज्य सरकार से प्रभावित लोगों के आंकड़े मांगे हैं. राज्य सरकार ने अगले 6 महीने तक पीड़ित परिवारों को हर माह 4 हज़ार रुपए देने का वादा किया है. जोशीमठ में ऐसे हालात क्यों उत्पन्न हुए इसके लिए भूगर्भ विशेषज्ञों की टीम भेजी गई है.