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इंदिरा ने श्रीलंका को क्यों गिफ्ट किया 'कच्चाथीवू आइलैंड'? आज भी अपने इस आइलैंड को वापस लाने की कोशिश में है तमिलनाडु

Aaryan Puneet Dwivedi | रीवा रियासत
12 Aug 2023 12:22 PM IST
Updated: 2023-08-12 06:52:38
इंदिरा ने श्रीलंका को क्यों गिफ्ट किया कच्चाथीवू आइलैंड? आज भी अपने इस आइलैंड को वापस लाने की कोशिश में है तमिलनाडु
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Katchatheevu Island: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदन में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान कच्चाथीवू आइलैंड का जिक्र कर कांग्रेस पर जोरदार हमला बोला है.

Katchatheevu Island: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदन में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान कांग्रेस और विपक्षी दलों पर जोरदार हमला बोला है. पीएम मोदी ने विपक्षियों को घेरते हुए कहा है कि 'उन्हें पता है कि 'कच्चाथीवू' (Katchatheevu or Kachchativu Island) क्या है?

गुरुवार को सदन में विपक्षी दलों द्वारा बुलाए गए अविश्वास प्रस्ताव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष को जबरदस्त खरी-खोटी सुनाई. इस दौरान विपक्ष मणिपुर पर बात करने के लिए अड़ा रहा, लेकिन पीएम मोदी विपक्षियों को पानी पी-पीकर कोसते रहें. पीएम के अविश्वास प्रस्ताव के चर्चा के बीच विपक्ष ने सदन का बहिष्कार कर दिया. इसके बाद पीएम मोदी ने मणिपुर पर चर्चा की है. पीएम मोदी ने नार्थ-ईस्ट पर खुलकर बात कही. मणिपुर पर पीएम मोदी ने कहा कि 'मणिपुर' पर जो हो रहा है, वह सही नहीं है. मणिपुर की समस्या जल्द ही ख़त्म होगी. राज्य सरकार और केंद्र सरकार इस पर काम कर रही है. इस बीच पीएम मोदी ने विपक्षियों से कच्चतीवु के बारे में पूछ लिया. उन्होंने कहा कि सदन का बहिष्कार कर बाहर कान लगाकर सुन रहें विपक्ष के नेता कच्चाथीवू के बारे में बता दें.

तो चलिए जानते हैं कच्चाथीवू क्या है?

दरअसल पीएम मोदी ने जिस कच्चाथीवू (Katchatheevu or Kachchativu) की बात की है, वह एक द्वीप है. कच्चाथीवू (Katchatheevu Island) श्रीलंका द्वारा प्रशासित एक निर्जन द्वीप है. 1976 तक यह क्षेत्र भारत और श्रीलंका के बीच विवादित था. यह द्वीप, नेदुन्तीवु, श्रीलंका और रामेश्वरम (भारत) के बीच स्थित है और पारंपरिक रूप से श्रीलंका के तमिल और तमिलनाडु के मछुआरों द्वारा इस्तेमाल किया जाता रहा है. 1974 इंदिरा गाँधी ने एक समझौते के बाद भारत के इस द्वीप के स्वामित्व को श्रीलंका को तोहफे के तौर पर सौंप दिया.

इस द्वीप का क्षेत्रफल 285-एकड़ (1.15 वर्ग किमी) है. यह समुद्री सीमा के श्रीलंकाई तट पर स्थित है. यह द्वीप पहले रामनाद साम्राज्य का हिस्सा था. बाद में भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश राज के दौरान यह मद्रास प्रेसीडेंसी का भाग बन गया था. इसे भारत सरकार ने 1976 में श्रीलंका को कुछ शर्तों पर सौंप दिया, जिनमें से एक यह थी कि भारतीय मछुआरों का यहाँ मछली पकड़ने का अधिकार सुरक्षित रहेगा. इस को लेकर हाल के कुछ सालों में कुछ छोटे विवाद उत्पन्न हुए हैं. कच्चतीवु जाने के लिए किसी को भारतीय पासपोर्ट या श्रीलंकाई वीजा रखने की आवश्यकता नहीं है.

ज्वालामुखी विस्फोट से बना है कच्चातिवु द्वीप

कच्चाथीवू द्वीप पाक जलडमरूमध्य में एक छोटा सा द्वीप है. इसका निर्माण बहुत समय पहले एक ज्वालामुखी द्वारा हुआ था. अतीत में, जब अंग्रेज़ शासन में थे, तब भारत और श्रीलंका दोनों इस द्वीप का उपयोग करते थे. पहले इस द्वीप पर रामनाद के राजा का स्वामित्व था, लेकिन फिर यह मद्रास का हिस्सा बन गया. 1921 में, भारत और श्रीलंका दोनों ने कहा कि इस द्वीप पर उनका स्वामित्व है, लेकिन वे इस बात पर सहमत नहीं हो सके कि यह द्वीप किसका है.

कब हुआ विवाद

कच्चातीवू द्वीप 1974 तक भारत का हिस्सा रहा. लेकिन फिर, भारत और श्रीलंका ने समुद्र की सीमाओं को लेकर कुछ समझौतों पर हस्ताक्षर किए. परिणामस्वरूप, यह द्वीप 1976 में भारतीय प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी द्वारा उपहार के रूप में श्रीलंका को दे दिया गया था. हालांकि, उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि भारतीय मछुआरे अभी भी वहां मछली पकड़ सकें.

जब इंदिरा गांधी ने 2 साल में 4 समझौतों के जरिए श्रीलंका को सौंपा कच्चाथीवू…

1974 से 1976 के बीच उस समय की भारतीय PM इंदिरा गांधी और श्रीलंका की PM श्रीमाव भंडारनायके ने चार समुद्री जल समझौतों पर दस्तखत किए. इसके तहत भारत ने इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया. तब से श्रीलंका इस द्वीप पर कानूनी तौर पर अपना दावा ठोकता है. जब भारत सरकार ने इस द्वीप को लेकर श्रीलंका के साथ समझौता किया था तो तमिलनाडु सरकार ने इसका विरोध किया था. तब तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि ने PM इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर कहा था कि ये द्वीप ऐतिहासिक रूप से रामनाद सम्राज्य की जमींदारी का हिस्सा है.

ऐसे में भारत सरकार को किसी भी कीमत पर ये इलाका श्रीलंका को नहीं देना चाहिए. हालांकि, इस समझौते के तहत भारतीय मछुआरों को यहां मछली मारने और जाल सुखाने की इजाजत दी गई थी. इसी वजह से भारतीय मछुआरे वहां जाते रहते थे, लेकिन 2009 के बाद श्रीलंका नौसेना वहां जाने वाले भारतीय मछुआरे को गिरफ्तार करने लगी.

कच्चाथीवू द्वीप पर असली मालिकाना हक किसका- भारत या श्रीलंका

समुद्र के बीचों-बीच स्थित इस वीराने द्वीप पर भारत और श्रीलंका दोनों लंबे समय से अपना-अपना दावा करते रहे हैं. 19वीं सदी तक ये इलाका रामनाद साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था.

17वीं सदी में रघुनाथ देव किलावन ने खुद को रामनाद साम्राज्य का राजा घोषित कर दिया. इसके बाद कच्चाथीवू द्वीप पर उनका राज हो गया. 1902 में भारत की ब्रिटिश हुकूमत ने इस द्वीप पर शासन का अधिकार रामनाद या रामनाथपुरम साम्राज्य के राजा को दिया.

इसके बाद रामनाथपुरम के राजा यहां के लोगों से मालगुजारी वसूलते थे. वो अंग्रेज अधिकारी को इसके बदले में एक खास रकम देते थे. 1913 में भारत सरकार के सचिव और रामनाथपुरम के राजा के बीच एक समझौता हुआ था. इस समझौते के मुताबिक कच्चाथीवू को श्रीलंका के बजाय भारत का हिस्सा बताया गया है.

1921 में पहली बार इस क्षेत्र को लेकर भारत और श्रीलंका के बीच विवाद हुआ. उस समय ये द्वीप अंग्रेजों के अधीन था. अंग्रेजों ने इस विवाद पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. इसकी वजह से ये विवाद बढ़ता चला गया. इससे पहले दोनों देशों के मछुआरे इस द्वीप को जाल सूखाने के लिए इस्तेमाल करते थे.

आज तक चल रहा विवाद

भले ही उनके बीच एक समझौता था, भारत से मछुआरे अपनी मछलियाँ साफ करने और अपने जाल ठीक करने के लिए एक निश्चित स्थान पर आते रहे. लेकिन फिर श्रीलंका की नौसेना ने इन भारतीय मछुआरों को पकड़ना शुरू कर दिया. तमिलनाडु सरकार 1991 से ही इसे वापस लेने की मांग कर रही है. जयललिता इस समस्या को देश की सर्वोच्च अदालत तक ले गईं, लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं मिला है. आज सदन में पीएम मोदी ने भी इसी कच्चतीवु आइलैंड की बात की है.

इसी तरह से 2015 में बांग्लादेश के साथ हुए एक समझौते में भारत के 111 गांव बांग्लादेश में चले गए...

1974 में भारत और श्रीलंका के साथ कच्चाथीवू द्वीप को लेकर हुए समझौते की तरह ही 2015 में बांग्लदेश के साथ भारत का एक समझौता हुआ था. इस समझौते के तहत भारत के 111 गांव बांग्लादेश में चले गए, जबकि बांग्लादेश के 51 गांव भारत को मिल गए. बांग्लादेश के साथ गांवों के बंटवारे को लेकर इस समझौते की बुनियाद 52 साल पहले पड़ी थी.

दरअसल, 16 दिसंबर 1971, को बांग्लादेश आजाद हुआ. भारत और बांग्लादेश के बीच जमीन की अदला-बदली का पहला समझौता 16 मई 1974 को हुआ था. बांग्लादेश की संसद ने इसे 1974 में ही मंजूरी दे दी थी, लेकिन भारत में इस करार के लिए संविधान संशोधन की जरूरत थी. राजनीतिक विरोध के चलते यह संसद से पास नहीं हो सका.

2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और बांग्लादेश की PM शेख हसीना के साथ समझौता हुआ था. इसमें भारत को 2777.038 एकड़ जमीन मिलनी थी, जबकि बांग्लादेश को 2267.682 एकड़ जमीन मिलनी थी. BJP, TMC और असम सरकार ने तब इसका विरोध किया था.

इसके लिए 2015 में 100वां संविधान संशोधन बिल (लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट एक्ट LBA) दोनों सदनों में निर्विरोध पास हो गया. 6 मई को राज्यसभा में और 7 मई को लोकसभा में.

6 जून 2015 को भारत सरकार और बांग्लादेश के बीच समझौता हुआ. इसके तहत दोनों देशों के बीच सीमाओं की अदला-बदली तय हुई. 31 जुलाई 2015, आधी रात से यह समझौता लागू हो गया. 1 अगस्त 2015 को इसके लिए जरूरी संविधान संशोधन किया गया. भारत के 111 गांव बांग्लादेश में चले गए. (एरिया करीब 17, 160 किमी) और बांग्लादेश के 51 गांव (एरिया करीब 7110 एकड़) भारत में आ गए.

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