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उत्तराखंड बना पहला राज्य जहां UCC बिल हुआ पारित! CM धामी बोले- PM मोदी के एक भारत-श्रेष्ठ भारत का विजन पूरा होगा

Aaryan Puneet Dwivedi | रीवा रियासत
7 Feb 2024 7:14 PM IST
Updated: 2024-02-07 13:44:56
उत्तराखंड बना पहला राज्य जहां UCC बिल हुआ पारित! CM धामी बोले- PM मोदी के एक भारत-श्रेष्ठ भारत का विजन पूरा होगा
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बुधवार को उत्तराखंड विधानसभा ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) बिल को ध्वनिमत से पारित कर दिया।

उत्तराखंड विधानसभा ने बुधवार 7 फरवरी को ऐतिहासिक कदम उठाते हुए यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) बिल को ध्वनिमत से पारित कर दिया। यह पहली बार है जब आजाद भारत में किसी राज्य ने UCC लागू करने के लिए विधेयक पारित किया है। मंगलवार 6 फरवरी को भाजपा की धामी सरकार ने इस बिल के ड्राफ्ट को सदन के पटल पर रखा था। उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया है, जहां UCC बिल पारित हुआ है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस उपलब्धि का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देते हुए कहा कि यह उनके "एक भारत-श्रेष्ठ भारत" के विजन को पूरा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

विधेयक के मुख्य बिंदु

  • लिव-इन रिलेशन में रह रहे जोड़ों को रजिस्ट्रेशन कराना होगा।
  • पति/पत्नी के जीवित रहते हुए दूसरी शादी गैर-कानूनी होगी।
  • सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार स्थापित होंगे।
  • धर्मनिरपेक्षता को मजबूत करेगा।
  • महिलाओं को समान अधिकार।
  • सामाजिक न्याय को बढ़ावा देगा।

राज्यपाल की स्वीकृति के बाद बनेगा कानून

विधेयक को अब राज्यपाल के पास भेजा जाएगा। राज्यपाल की स्वीकृति मिलते ही यह कानून बन जाएगा और उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू हो जाएगी। वहीं, मध्य प्रदेश और गुजरात में भी भाजपा शासित सरकारों ने इस दिशा में कदम उठाए हैं। दोनों राज्यों में UCC लागू करने के लिए कमेटी अपॉइंट की गई है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने UCC को अपने चुनावी मेनिफेस्टो में शामिल किया था, हालांकि वहां भाजपा चुनाव हार गई।

हाल के दिनों में पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भी कई बार UCC के फायदों का जिक्र कर चुके हैं। हालांकि, इसे केंद्र स्तर पर लागू करने को लेकर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। केंद्र सरकार राज्यों में UCC लागू करने से हुए फायदे सामने आने के बाद इसे देश में लागू करने पर विचार कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट में लंबित सबरीमाला केस का फैसला भी केंद्र के UCC लागू करने के विचार को प्रभावित कर सकता है।

भाजपा का वादा पूरा

यह विधेयक भाजपा के 2022 विधानसभा चुनाव घोषणापत्र का हिस्सा था। चुनाव में पार्टी ने UCC लागू करने का वादा किया था। UCC लागू होने से सभी नागरिकों को समान अधिकार मिलेंगे। लैंगिक समानता, धार्मिक भेदभाव का अंत, और कानूनी प्रक्रियाओं में सरलीकरण जैसे फायदे भी मिलेंगे। हालांकि, कुछ लोगों ने UCC को लेकर चिंताएं भी जताई हैं। उनका कहना है कि यह विभिन्न समुदायों के रीति-रिवाजों और परंपराओं को प्रभावित कर सकता है।

क्या है समान नागरिकता संहिता (UCC)?

बता दें समान नागरिक संहिता (यूसीसी) एक ऐसा कानून है जो सभी नागरिकों के लिए समान कानूनों का प्रावधान करता है, चाहे वे किसी भी धर्म या समुदाय के हों। यह विवाह, तलाक, भरण-पोषण, विरासत और संपत्ति के अधिकारों जैसे मामलों में समान अधिकार प्रदान करता है। आमतौर पर किसी भी देश में दो तरह के कानून होते हैं। क्रिमिनल कानून और सिविल कानून।

क्रिमिनल कानून

क्रिमिनल कानून में चोरी, लूट, मार-पीट, हत्या जैसे आपराधिक मामलों की सुनवाई की जाती है। इसमें सभी धर्मों या समुदायों के लिए एक ही तरह की कोर्ट, प्रोसेस और सजा का प्रावधान होता है।

सिविल कानून

  • शादी-विवाह और संपत्ति से जुड़ा मामला सिविल कानून के अंदर आता है। भारत में अलग-अलग धमों में शादी, परिवार और संपत्ति से जुड़े मामलों में रीति-रिवाज, संस्कृति और परंपराओं का खास महत्व है। यही वजह है कि इस तरह के कानूनों को पसर्नल लॉ भी कहते हैं।
  • जैसे- मुस्लिमों में शादी और संपत्ति का बंटवारा मुस्लिम पर्सनल लॉ के जरिए होता है। वहीं, हिंदुओं की शादी हिंदू मैरिज एक्ट के जरिए होती है। इसी तरह ईसाई और सिखों के लिए भी अलग पर्सनल लॉ हैं।
  • यूनिफॉर्म सिविल कोड के जरिए पर्सनल लॉ को खत्म करके सभी के लिए एक जैसा कानून बनाए जाने की मांग की जा रही है। यानी भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए निजी मामलों में भी एक समान कानून, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो।
  • जैसे-पर्सनल लॉ के तहत मुस्लिम पुरुष 4 शादी कर सकते हैं, लेकिन हिंदू मैरिज एक्ट के तहत पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी करना अपराध है। इनके लिए एक कानून बन जाएगा, जिसे दोनों धर्म के लोगों को मानना पड़ेगा।

भारत में यूसीसी एक विवादास्पद विषय रहा है। कुछ लोग इसका समर्थन करते हैं, जबकि अन्य इसका विरोध करते हैं। समर्थकों का कहना है कि यह सभी नागरिकों के लिए समानता सुनिश्चित करेगा, जबकि विरोधियों का कहना है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन कर सकता है।

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