ISRO RLV: इसरो स्वदेशी स्पेस शटल बना रहा है जो सस्ता होगा और लॉन्च के बाद दोबारा भी इस्तेमाल किया जा सकेगा
ISRO's Reusable Launch Vehicle: इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइज़ेशन यानी के इसरो ऐसा अंतरिक्ष विमान तैयार कर रहा है जिसे एक बार लॉन्च करने के बाद भी दोबारा लॉन्च के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. ऐसे स्पेस व्हीकल को RLV कहा जाता है यानी के 'Reusable Launch Vehicle' लोग ISRO RLV को स्वदेशी स्पेस शटल कह रहे हैं.
अगर सबकुछ ठीक रहा तो जल्द ISRO अपने नए RLV को कर्नाटक के साइंस सिटी चल्लाकरेरे में पहला लॉन्च और लैंडिंग मिशन को अंजाम देगा। ISRO के चेयरमैन एस सोमनाथ का कहना है कि हम रियूजेबल रॉकेट टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे हैं और इसका बजट काफी कम है. ISRO ऐसा RLV बना रहा है जो हल्का और कम खर्चीला है. भारत कम इन्वेस्टमेंट वाले स्पेस क्राफ्ट बनाने में निपुण है.
ऐसा करने वाले सिर्फ तीन देश हैं
पूरी दुनिया में अंतरिक्ष मिशन के लिए RLV बनाने के प्रोजेक्ट में सिर्फ तीन देश काम कर रहे हैं. पहला अमेरिका, दूसरा चाइना और तीसरा भारत का इसरो। सब कुछ ठीक रहा तो ISRO अपना पहला RLV साल 2030 तक लॉन्च कर देगा।
Weather permits, Reusable Launch Vehicle
— ISRO (@isro) May 25, 2022
will be seen flying over the Science City in Challakere, Karnataka soon: Shri S Somanath, Chairman, ISRO https://t.co/V1kxc3hd8N
स्केल-डाउन वर्जन का उपयोग करने वाले इस प्रयोग को पुन: प्रयोज्य लॉन्च व्हीकल (Reusable Launch Vehicle) लैंडिंग प्रयोग या RLV - LEX कहा जाता है। यह अनिवार्य रूप से एयरफ्रेम के एयरोडायनेमिक को समझने के लिए एक एयरड्रॉप परीक्षण है जिसे इसरो द्वारा इन-हाउस विकसित किया गया है।
RLV से क्या फायदा होगा
अंतरिक्ष मिशन के लिए भेजे जाने वाले रॉकेट का इस्तेमाल दोबारा नहीं किया जा सकता, खासतौर पर जब बात स्पेस टूरिज्म की हो तो रॉकेट से टूरिज्म बहुत खर्चीला और रिस्की होता है. इसी लिए वैज्ञानिकों ने ऐसा विमान तैयार किया है जो किसी जेट प्लेन की तरह है, जिसे कहीं से भी उड़ाया जा सकता है और लैंड किया जा सकता है. जो सामान्य रॉकेट के साथ नहीं हो सकता। किसी भी सामान्य रॉकेट का इस्तेमाल सिर्फ एक बार होता है और उसके बाद उसका कोई उपयोग नहीं रह जाता मगर RLV को आप बार-बार कई बार इस्तेमाल में ला सकते हैं.