CBI कई सालों से एक सिक्का ढूढ़ रही है, कीमत 126 करोड़; जानिए क्या है इस अनोखे सिक्के का रहस्य और क्यों एजेंसी इसके पीछे है?
126 करोड़ रूपए का एक सिक्का... जी हाँ! आपको सुनने में अटपटा और आश्चर्यजनक जरूर लगा होगा, लेकिन एक ऐसा ही अनोखा सिक्का है जिसका मूल्य 126 करोड़ रूपए के बराबर है. भारतीय जांच एजेंसी सीबीआई कई सालों से इस सिक्के के पीछे है. इसे खोजने के लिए स्विट्जरलैंड तक गई, लेकिन सिक्का है जो की हाथ न लग पाया. अब आप सोच रहें होंगे कि आखिर क्या खासियत है इस सिक्के में, जो सीबीआई को पीछे लगना पड़ा और सिक्के की इतनी अधिक कीमत क्यों है? तो चलिए हम आपको बताते हैं इस अनोखे सिक्के के बारे में...
126 करोड़ का अनोखा सिक्का
दरअसल, यह सिक्का लगभग 400 साल पुराना है. इसका वजह 12 किलो है, जो सोने से बना हुआ है. इसे आगरा में ढाला गया था, जिसमें सबसे ख़ास बात यह थी कि इस सिक्के में फ़ारसी भाषा में कहावतें उकेरी गई थी. इसकी वर्तमान कीमत 126 करोड़ रूपए के आसपास आकी जा रही है. आखिरी बार इसे वर्ष 1987 में हैदराबाद के निजाम मुकर्रम जाह के पास देखा गया था. इसके बाद इसका कुछ पता नहीं चला. हांलाकि कुछ सालों पहले इसके स्विट्जरलैंड में नीलामी की सूचना सीबीआई को मिली थी. सीबीआई स्विटजरलैंड पहुंची भी, पर कुछ ख़ास हाथ न लग सका.
12 किलो वजन वाला सोने का सिक्का
जहांगीर की आत्मकथा तुजुक-ए-जहांगीरी (tuzk-e-jahangiri) में 1000 तोले यानी करीब 12 किलो के सोने के सिक्के का जिक्र है. जिसे उन्होंने ईरानी शाह के राजदूत यादगार अली को तोहफे के रूप में दिया था. फारसी कैलेंडर के मुताबिक यादगार अली जहांगीर के शासनकाल के 8वें साल के 19 फरवरदीन (तारीख) को आया था. अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक, वो तारीख 10 अप्रैल 1612 रही होगी. यानी अब उस घटना को 410 साल बीत चुके हैं.
आगरा में ढाला गया था 126 करोड़ का अनोखा सिक्का
इस अनोखे सिक्के का व्यास 20.3 सेंटीमीटर और वजन 11,935.8 ग्राम था और इसे आगरा में ढाला गया था. सिक्के को ढालने वाले टकसाल के कारीगरों को खूब पैसा दिया गया था, क्योंकि उन्होंने न सिर्फ सिक्का बनाया, बल्कि उन पर फारसी में कहावतें भी उकेरी थीं.
जब 1612 में ईरान में था तो 1987 में हैदराबाद कैसे आया?
अब सवाल यह भी उठता है कि जब यह सिक्का जहांगीर ने 1612 में ईरानी शाह के राजदूत यादगार अली के पास था तो 1987 में यह हैदराबाद के निजाम मुकर्रम जगह के पास कैसे पहुंचा?
CBI के पूर्व जॉइंट डायरेक्टर शांतनु सेन इस केस में काम कर चुके हैं, उनकी एक किताब की मानें तो सिक्का एक नहीं बल्कि दो बनाए गए थें. दोनों की बनावट और भार एक ही था. एक ईरान गया तो दूसरा हैदराबाद में निजाम की संपत्ति में बन गया.
जहांगीर का सिक्का हैदराबाद के निजाम तक कैसे पहुंचा?
इस दूसरे सिक्के के हैदराबाद के निजाम तक पहुंचने की कहानी भी बड़ी रोचक है. ईश्वरदास नागर की किताब 'फतुहत-ए-आलमगिरी' के मुताबिक 1695 में मुगल बीजापुर पर कब्जे के लिए निकले थे. उनके पास खाने-पीने के सामान की कमी होने लगी. ऐसे में औरंगजेब के मनसबदार गाजीउद्दीन खान बहादुर फिरोज जंग, रणमस्त खान, अमानुल्लाह खान के पहरे में 5,000 बैल गाड़ियों पर अनाज लादकर पहुंचा दिया गया. इससे बीजापुर जीतने में लगे औरंगजेब के बेटे शाह आलम की सेना में नया जोश जाग गया.
औरगंजेब ने इसके बदले गाजीउद्दीन खान बहादुर फिरोज जंग को 1000 तोले का सोने का सिक्का दिया था. ये सिक्का गाजीउद्दीन से उसके बेटे निजाम-उल-मुल्क आसफ जाह प्रथम के पास पहुंचा, जो हैदराबाद का पहला निजाम था.
भारत की आजादी तक ये सोने का सिक्का आसफ जाह के वंशजों के पास रहा. फिर हैदराबाद के आखिरी निजाम मीर उस्मान अली खान के जरिए ये सिक्का उनके वंशज मुकर्रम जाह के पास पहुंच. उसके बाद धीरे-धीरे इस सिक्के की चर्चा खत्म हो गई.
1987 में शुरू हुई 12 किलो के सोने के सिक्के की तलाश
1987 में भारत सरकार को स्विट्जरलैंड में एक बेशकीमती सोने के सिक्के की नीलामी की खबर मिली. वहां मौजूद भारतीय अफसरों ने सरकार को बताया कि जिनेवा के होटल मोगा में दुनिया के जाने माने नीलामीकर्ता हब्सबर्ग फेल्डमैन एसए 11,935.8 ग्राम सोने के सिक्के की नीलामी कर रहे हैं. ये नीलामी 9 नवंबर 1987 को पेरिस के इंडोस्वेज बैंक की जेनेवा ब्रांच की मदद से की जानी थी. सरकार को जैसे ही पता चला कि ये जहांगीर का 12 किलो के सोने का सिक्का है, उसने फौरन टोह लेने के लिए CBI को लगा दिया.
स्विट्जरलैंड तक गई CBI, लेकिन सिक्का नहीं मिला
सिक्के की तलाश में CBI स्विट्जरलैंड तक पहुंची. हालांकि उसके हाथ कुछ ठोस नहीं लग सका. हां, ये जरूर पता चला कि मुकर्रम जाह 1987 में दो सोने के सिक्के की नीलामी की कोशिश कर रहे थे. इनमें से एक सिक्का 1000 तोले (करीब 12 किलो) का था, जिसकी कीमत 1987 में करीब 16 मिलियन डॉलर थी. आज के एक्सचेंज रेट के मुताबिक यह करीब 126 करोड़ रुपए हुए.
मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के एचके शेरवानी सेंटर फॉर डेक्कन स्टडीज की इतिहासकार सलमा अहमद फारूकी के अनुसार, CBI की स्पेशल इंवेस्टिगेशन यूनिट XI को लीड कर रहे एक सुपरिटेंडेट-रैंक के ऑफिसर ने 1987 में Antique and Art Treasures Act, 1972 के तहत इस मामले में एक केस भी दर्ज किया था.
37 साल पहले जिस सोने के सिक्के को खोजने में CBI नाकाम रही थी, अब सरकार ने पिछले महीने यानी जून में उसकी खोज का जिम्मा फिर से CBI को सौंपा है. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि CBI उस सिक्के तक कब पहुंच पाती है.
(सौ. दैनिक भास्कर)