इस्लाम में संगीत हराम होने के सवाल में बिस्मिल्लाह खान ने बड़ा प्यारा जवाब दिया था, आज उनका जन्मदिन है
Bismillah Khan: दुनिया के सबसे बड़े शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिलाह खान ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने शादियों में बजाई जाने वाली शहनाई की मधुर धुन से पूरी दुनिया को मंत्रमुग्ध कर दिया था, यूपी के बनारस में जन्मे उस्ताद बिस्मिलाह खान को इसी लिए भारत रत्न से सम्मानित किया गया था. अपना पूरा जीवन गरीबी में बिता देने वाले, फ़टी हुई धोती पहनने वाले भारत रत्न बिस्मिलाह खान का आज जन्म दिन है। इस अवसर में उनसे जुड़ा एक किस्सा सुनाते हैं जब एक पत्रकार ने उस्ताद बिस्मिलाह खान से पूछा था कि इस्लाम में तो संगीत हराम है फिर आप क्यों शहनाई बजाते हैं?
बिस्मिलाह खान वैसे तो मुसलमान थे लेकिन उनका एक ही मजहब था 'संगीत' और वह जीवनभर संगीत की पूजा-आराधना करते रहे, अगर बिस्मिल्लाह खान कट्टरपंथी सोच रखने वाले इस्लामिक लोगों से डर जाते तो कभी उस्ताद नहीं बनते। जब एक व्यक्ति ने उनसे पूछा था कि इस्लाम में तो संगीत हराम है फिर आप ये सब क्यों करते हैं तो उन्होंने कहा था- 'संगीत की जन्नत से अलग कोई जन्नत नहीं है इस जहान में'
बिस्मिल्लाह खान ने बड़ा प्यारा जवाब दिया था
उन्होंने संगीत के इस्माल में हराम होने पर कहा था- यह जो आपके यहां (हिन्दुओं) में देवी देवता हैं, हमारे मजहब (मुसलमानों) में ढेरों पैगम्बर हैं, ये सब कौन हैं लोग हैं? जानते नहीं ना?
हम बताते हैं किसी ने खुदा को तो नहीं देखा लेकिन गाँधी जी को देखा है, मदन मोहन मालवीय को देखा है, नरेंद्र देव और पंडित ओंकारेश्वर ठाकुर को देखा है, उस्ताद फय्याज खां को नजदीक से देखा और सुना है. ये लोग ही तो हमारे समय के पैगम्बर और देवता हैं. सब सरस्वती को कौन अपनी आँखों से देखा है? मगर बड़ी मोतीबाई, सिद्धेर्श्वरी देवी, अंजनिबाई मालपेकर और लता मंगेशकर को देखा है, मैं दावे से कह सकता हूं अगर सरस्वती कभी होंगी तो बरखुरदार इतनी ही सुरीली होंगी। न ये औरतें सरस्वती से कम सुरीली होंगी न सरस्वती इन फनकारों से ज्यादा सुरीली होंगी।
'संगीत वह चीज़ है जिसमे जात-पात कुछ नहीं है. फिर कह रहा हूं, संगीत किसी मजहब का बुरा नहीं चाहता, एक बार महफ़िल में गंगूबाई हंगल, हीराबाई बड़ोदकर, कृष्णराव शंकर पंडित और भीमसेन जोशी से मैंने पूछा था, 'क्या आपके धर्म में गीता-रामायण से बढ़कर कुछ है' तो उन्होंने कहा था हां संगीत है.
मुझे लगता है हमारे मजहब में मौसिकी को इसी लिए हराम कहा गया है क्योंकि अगर जादू जगाने वाली कला को रोका न गया, तो एक से एक फनकार इसकी रागिनियों में इस कदर डूबे रहेंगे की दोपहर शाम वाली नमाज कजा होजाएगी।
उन्होंने कहा इस्लाम में संगीत जैसी बेहतरीन चीज़ नाजायज मानी जाती है, फिर भी उसे किसी ने छोड़ तो नहीं, फय्याज खां साहब, रज्जब अली, आमिर खां, मौजुद्दीन खां, अल्लाउदीन खां ये सब लोग कहां हैं संगीत में? आज अब हराम है तो ये हाल है, अगर कहीं जायज होती तो ये सारे लोग या यूँ कहें की सारे मुस्लिम फनकारकहां पहुंच जाते।