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विवाहित महिला को घर का काम करने को कहना क्रूरता नहीं, न्यायालय ने की टिप्पणी

Panna MP News
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Bombay High Court Women Household Work: बाम्बे हाईकोर्ट क औरंगाबाद पीठ ने दहेज एक्ट के एक मामले को खारिज करते हुए कहा कि विवाहित स्त्री को घर का काम करने को कहना कू्ररता नहीं है।

Bombay High Court Women Household Work: बाम्बे हाईकोर्ट क औरंगाबाद पीठ ने दहेज एक्ट के एक मामले को खारिज करते हुए कहा कि विवाहित स्त्री को घर का काम करने को कहना कू्ररता नहीं है। विवाहित स्त्री को घर का काम करने को कहने पर उसकी तुलना नौकरानी से नहीं की जा सकती है। इसे कू्ररता भी नहीं मान सकते हैं। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने अलग हो चुकी महिला के पति और उसके माता-पिता के खिलाफ दर्ज घरेलू हिंसा व कू्ररता मामले को खारिज कर दिया।

जस्टिस विभा कंकनवाड़ी की पीठ ने यह फैसला सुनाया है। महिला ने आरोप लगाया कि शादी के बाद एक महीने तक तो उसके साथ ससुराल वालों ने अच्छा व्यवहार किया, लेकिन इसके बाद ससुराल वाले उससे नौकरानी जैसा व्यवहार करने लगे। उससे कार के लिए 4 लाख रूपए की मांग की। इसे लेकर पति ने उसे मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना भी दी।

मायके वालों की अहम भूमिका

एक सर्वे के मुताबिक अधिकतर मामलों में दंपत्ति के विवाद को ज्यादा तूल देने के पीछे महिला का मायका होता है। दंपत्ति के बीच छोटी-मोटे विवाद होना कोई नई बात नहंी है। जब यह विवाद महिला के मायके तक पहुंच जाता है तो बात आग में घी डालने का काम करती है। 70 प्रतिशत मामलों में मायके वालों का हस्तक्षेप विवाद को सुलझाना कम उसे बढ़ाने का कही कार्य करता है।

यही कारण है कि देश की अदालतों में घरेलू हिंसा, दहेज प्रताणना सहित अन्य मामले लटके हुए हैं। ऐसा नहीं है कि हर बार गलती महिला या मायके वालों की ही हो। ससुराल वालों की भी गलती होती है। लेकिन बाहरवालों का राय-मशवरा बनते काम को बिगाड़ने का ही काम करता है।

Suyash Dubey | रीवा रियासत

Suyash Dubey | रीवा रियासत

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