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मन की बात का 100वां एपिसोड: PM MODI बोले- यह कार्यक्रम नहीं, मेरे लिए आस्था-पूजा और व्रत है
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100th episode of Mann Ki Baat: रविवार 30 अप्रैल 2023 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के रेडिओ कार्यक्रम मन की बात के 100 एपिसोड पूरे हो गए. भारत समेत कई देशों और UN हेडक्वाटर में लोगों ने पीएम मोदी के 100वें मन की बात एपिसोड को सुना। इस प्रसारण को एक हजार से अधिक प्लेटफॉर्म्स पर प्रसारित किया गया.
मन की बात के 100वें एपिसोड में पीएम मोदी क्या बोले
What did PM Modi say in the 100th episode of Mann Ki Baat: पीएम मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में सबसे पहले कहा-
आज मन की बात का 100वां एपिसोड है. मुझे आप सबकी हजारों चिट्ठियां और सन्देश मिले हैं. मैंने यही प्रयास किया है कि ज़्यादा से ज़्यादा चीज़ों को पढ़ पाऊं। संदेशों को समझने की कोशिश करूं। कई बार तो मैं आपके भेजे पत्रों को पढ़कर भावुक हो गया. 100वें एपिसोड पर सच्चे दिल से कहता हूं कि बधाई आपने दी, पात्र आप सभी श्रोता हैं।
पीएम ने आगे कहा-
तीन अक्टूबर 2014 को विजयदशमी के मौके पर हम सबने मिलकर मन की बात की यात्रा प्रारम्भ की थी. विजयदशमी यानी बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व। अब यह ऐसा पर्व बन गया है जो हर महीने आता है. यकीन नहीं होता कि इतने साल गुजर गए, हर एपिसोड नया रहता है, देशवासियों की नई सफलताओं का विस्तार मिलता है.
पीएम आगे बोले- मेरे मार्गदर्शक लक्ष्मण राव कहते थे कि हमें दूसरों के गुणों की पूजा करनी चाहिए। उनकी बात मुझे प्रेरणा देती है.
जब मैं गुजरात के पीएम था, तब सामान्य तौर पर लोगों से मिलना जुलना होता था. 2014 में दिल्ली आने के बाद मैंने पाया कि यहां जीवन और काम का स्वरुप अलग है. सुरक्षा का तामझाम, समय और सीमा सब कुछ अलग है. शुरुआती दिनों में मैं खाली महसूस करता था.
50 साल पहले मैंने इस लिए घर नहीं छोड़ा था कि देशवासियों से सम्पर्क न हो पाए. देशवासी सबकुछ हैं. मैं उनसे कटकर नहीं रह सकता। मन की बात ने मुझे मौका दिया, पदभार और प्रोटोकॉल व्यवस्था तक सिमित रहा. जनसभा मेरा अटूट अंग बन गया.
यह मेरे लिए आस्था, पूजा और व्रत
पीएम मोदी ने कहा- मन की बात मेरे लिए सिर्फ कार्यक्रम नहीं है. यह मेरे लिए आस्था, पूजा और व्रत है. जैसे लोग ईश्वर की पूजा करने जाते हैं तो प्रसाद की थाल लाते हैं. मन की बात ईश्वर रुपी जनता जनार्दन के चरणों की प्रसाद की थाली है. यह मेरे लिए आध्यात्मिक यात्रा है. अहम से वयम की यात्रा है. यह तो मैं नहीं, तू ही की संस्कार साधना है