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एमपी में प्रदेश का सबसे ऊंचा रेसीडेंशियल प्रोजेक्ट, 25 मंजिला होगा भवन, बिना ईंट की होंगी दीवारें
मध्यप्रदेश में सबसे ऊंची रेसीडेंशियल इमारत बनने जा रही है जिसका नाम है तुलसी ग्रीन। राजधानी भोपाल में हाउसिंग प्रोजेक्ट के तहत इसका निर्माण कराया जाएगा। पूरे प्रदेश में 25 मंजिल की फिलहाल कोई इमारत ऐसी नहीं जो 75 मीटर यानी 246 फीट ऊंची होगी। यह भवन बगैर ईंटों के तैयार होगा। इसमें शियर वॉल तकनीक का इस्तेमाल होने जा रहा है। इसकी सभी बाहरी और कमरों की दीवारें सीमेंट कंक्रीट की होंगी जो कॉलम का काम करेंगी।
तुलसी ग्रीन बनाने की तैयारी पूरी
राजधानी भोपाल में मप्र हाउसिंग बोर्ड ने तुलसी टावर के बाद तुलसी ग्रीन बनाने की तैयारी पूरी कर ली है। रेरा से परमिशन मिलते ही इसकी टेंडर प्रक्रिया प्रारंभ कर दी जाएगी। टेंडर होने के तीन साल में पजेशन देने शुरू कर दिए जाएंगे। सूत्रों का कहना है कि मप्र आईएएस एसोसिएशन ने तुलसी ग्रीन का एक पूरा टावर हाउसिंग बोर्ड से मांगा है। इसको एशिया के जाने माने और पद्मभूषण आर्किटेक्ट हफीज कॉन्ट्रैक्टर ने डिजाइन किया है।
प्रोजेक्ट की यह है खासियत
तुलसी ग्रीन 1.91 एकड़ में तैयार होगा। इसमें तीन टावर होंगे। दो टावर एक जैसे होंगे जो 25-25 मंजिला होंगे। हर फ्लोर पर दो फ्लैट होंगे। हर एक के लिए दो पार्किंग की व्यवस्था रहेगी। कमिश्नर हाउसिंग बोर्ड चंद्रमौली शुक्ला के मुताबिक इस प्रोजेक्ट पर हाउसिंग बोर्ड करीब 125 करोड़ रुपए खर्च करने जा रहा है। फिलहाल प्लान किया है कि इसकी कीमत ऐसे फ्लैट्स के बाजर मूल्य से भी कम यानी दो करोड़ से कम रखेंगे। इस हाईसोसाइटी कॉलोनी में तीन अलग-अलग टावर बनाए जोंगे। जिनमें से दो एक साथ होंगे जबकि एक इससे अलग होगा। यहां बच्चों और बड़ों के लिए दो स्विमिंग पूल, टेनिस कोर्ट, लिफ्ट लॉबी, रिसेप्शन, मल्टीपर्पज हॉल, जिम्नेजियम, इनडोर गेम्स और गार्डन भी रहेंगे।
यह है शियर वॉल तकनीक
हाउसिंग बोर्ड के इस प्रोजेक्ट में इमारत बनाने के लिए शियर वॉल तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। जिसमें बाहरी और कमरों की दीवारों को सीमेंट कंक्रीट का बनाया जाता है। फिलहाल इस तकनीक का इस्तेमाल कर इंदौर में पुलिस हाउसिंग ने पुलिसकर्मियों के लिए एक 11 मंजिला इमारत बनाई है। इस तकनीक से बनने वाली यह प्रदेश की दूसरी इमारत होगी। पुरानी और इस तकनीक की लागत तकरीबन बराबर रहती है। किंतु मजबूती की बात की जाए तो शियर वॉल में ज्यादा रहती है। इस तकनीक के इस्तेमाल से निर्माण में वक्त भी कम लगता है।