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जबलपुर की शक्तिपीठ मां बड़ी खेरमाई का 800 वर्ष पुराना है इतिहास, जानें
Chaitra Navratri 2023: एमपी जबलपुर के शक्तिपीठ मां बड़ी खेरमाई का इतिहास लगभग 800 वर्ष प्राचीन है। पहले माता का शिला रूप में पूजन होता था, जो वर्तमान समय पर भी गर्भगृह में मुख्य प्रतिमा के नीचे स्थापित है। बड़ी खेरमाई ट्रस्ट के सचिव का कहना है कि गोंड शासन काल के दौरान राज को एक बार मुगल सेना ने पराजित कर दिया था तब वह यहां पर आकर रुके थे। उनके द्वारा शिला का पूजन किया गया। माता के पूजन के बाद दोबारा मुगलों से युद्ध किया और विजयश्री हासिल की। उनका कहना है कि गोंड राजा संग्राम शाह द्वारा यह मढ़िया बनवाई गई थी।
तांत्रिक पूजा का है केन्द्र बिंदु
बताया गया है कि गांव खेड़ों की पूज्य देवी को खेड़ा कहा जाता था जो कालांतर में खेरमाई हो गया। इतिहासकारों की मानें तो बड़ी खेरमाई का पूजन आज भी ग्राम देवी के रूप में लोगों द्वारा किया जाता है। एक समय ऐसा भी था जब यहां पर बलि प्रथा होती थी। मंदिर परिसर में आधा सैकड़ा ऐसे मंदिर हैं जो किसी न किसी तंत्र पूजा से जुड़े हुए हैं। यह तांत्रिक पूजा का केन्द्र बिंदु भी है। यहां तंत्र विद्या के लिए बड़े-बड़े साधक पहुंचते रहते हैं।
228 क्विंटल चांदी के आवरण से मंडित है गर्भगृह
मंदिर ट्रस्ट के पदाधिकारियों के मुताबिक देवी पुराण में वर्णित 52वें शक्तिपीठ पंचसागर शक्तिपीठ के रूप में मंदिर की मान्यता है। इस मंदिर को प्राचीन वैदिक मंदिर शिल्पकला एवं निर्माण कला के द्वारा पूर्ण रूप से धौलपुर के शिल्प के द्वारा निर्मित किया गया है। इस मंदिर के गर्भगृह को 228 क्विंटल चांदी के आवरण से मंडित किया गया है। नवरात्रि के अवसर पर बड़ी खेरमाई मंदिर में हर दिन माता का अलग-अलग रूप देखने को मिलता है। इस मौके पर दूर-दूर से भक्त माता का पूजन-अर्चन करने पहुंचते हैं।
सोमनाथ की तर्ज पर बना है मंदिर
मां बड़ी खेरमाई मंदिर का निर्माण सोमनाथ मंदिर की तर्ज पर बिना लोहे का इस्तेमाल कर किया गया है। गुजरात के रहने वाले सोमपुरा परिवार द्वारा इसका निर्माण कार्य किया गया। बताया गया है कि पुराने हो चुके जीर्ण शीर्ण मंदिर को तोड़कर बिना गर्भगृह की प्रतिमा हटाए ही तकरीबन ढाई वर्ष में नए मंदिर का निर्माण कराया गया है। पूरा मंदिर पत्थरों की लाकिंग सिस्टम पर खड़ा किया गया है। मंदिर परिसर में ही सैकड़ों वर्ष पुराना सिद्धिदाता पीपल का वृक्ष भी मौजूद है। यहां तीन प्राचीन बावलियों के साथ ही तीन प्रवेश द्वारा भी हैं। वैसे तो यहां हर समय भक्त पहुंचते रहते हैं किंतु नवरात्रि के समय यहां भक्तों का सैलाब उमड़ता है।