मध्यप्रदेश

रीवा के सरकारी डॉक्टरों के हाल! बेहतर इलाज चाहिए तो अस्पताल नहीं, उनके क्लिनिक जाइये...

Aaryan Dwivedi
16 Feb 2021 12:15 PM IST
रीवा के सरकारी डॉक्टरों के हाल! बेहतर इलाज चाहिए तो अस्पताल नहीं, उनके क्लिनिक जाइये...
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रीवा। संजय गांधी अस्पताल में पदस्थ डॉक्टर सिर्फ नाम के लिये वहां पदस्थ हैं, लेकिन पैसे की भूख उन्हें चौखट दर चौखट भटकाती रहती है। रीवा के स

रीवा। संजय गांधी अस्पताल में पदस्थ डॉक्टर सिर्फ नाम के लिये वहां पदस्थ हैं, लेकिन पैसे की भूख उन्हें चौखट दर चौखट भटकाती रहती है। रीवा के संजय गांधी अस्पताल की ओपीडी में समय पर उनका दर्शन मिलना मुश्किल है या तो अपने घर में ही मरीजों की लाइन लगवा रहे हैं अथवा रीवा शहर भर में संचालित नर्सिंग में दस्तक दे रहे हैं।

हालात तो ये हैं कि डाक्टर दवाई भी लिखेंगे तो अपनी पहचान वाली दुकान का पता खुद ही बताएंगे। जांच यहीं कराना, धोखे से दूसरी जगह हो गई तो वह बेकार...फिर कराकर लाओ। गरीब को एक बार जांच कराना मुश्किल था लेकिन डाक्टर साहब का कमीशन कट जाएगा इसलिए फिर कराओ। यदि बातें झूठी हो तो इसकी जांच की जा सकती है। यहां तक कि एक न्यूरोसर्जन डाक्टर अभी हाल ही में दो साल पहले पदस्थ हुए हैं, जो खुद का अस्पताल ही चला रहे हैं। इन डाक्टर का मरीजों को दम रहता है कि नर्सिंग होम में आओगे तभी दवाई हो पाएगी अन्यथा पड़े रहो रोते। फिर पहुंचिए नर्सिंग होम और लुट पिटकर घर जाइए।

रीवा के सरकारी डॉक्टरों के हाल! बेहतर इलाज चाहिए तो अस्पताल नहीं, उनके क्लिनिक जाइये...

नाम का रह गया अस्पताल, डॉक्टर कर रहे रोजगार

कहने के लिए तो रीवा में विंध्य का सबसे बड़ा संजय गांधी अस्पताल संचालित हो रहा है। लगभग 800 बिस्तर वाले अस्पताल में जाने-माने चिकित्सक पदस्थ किये गये हैं। जिसका उद्देश्य था कि विंध्य के गरीबों को समुचित चिकित्सा सुविधा मिल सके। लेकिन यहां पदस्थ डाक्टर संजय गांधी को रोजगार अड्डा बना लिये हैं। शासन से वेतन के रूप में मोटी रकम मिलने के बाद भी अस्पताल में दर्शन मिलना मुश्किल है। इनका शहर में संचालित नर्सिंग होमों में समय फिक्स हैं और शायद ही शहर को ऐसा कोई नर्सिंग होम बचे जहां संजय गांधी के डाक्टर सेवा न देते हों। हालांकि यह बात शासन-प्रशासन स्तर से छिपी नहीं है।

शहर में दर्जनों ऐसे प्राइवेट अस्पताल हैं जहां संजय गांधी अस्पताल के चिकित्सक मोटी रकम लेकर इलाज करते हैं। लेकिन जहां पदस्थ हैं वहां बैठना उचित नहीं समझते। संजय गांधी अस्पताल में सिर्फ पहचान के लिए पदस्थ हैं जिससे लोग जाने कि बड़े सरकारी अस्पताल के चिकित्सक हैं, बाकी दिन रात सिर्फ पैसे लेकिन चौखट दर चौखट दौड़ते रहते हैं।

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डाक्टरों की हर जगह सेटिंग

संजय गांधी अस्पताल के डाक्टरों हर जगह सेटिंग है, चाहे दवाई की दुकान हो अथवा जांच केंद्र। डाक्टर अपनी सेटिंग वाली दुकान में ही भेजते हैं। जहां मरीज जांच और दवाई के नाम पर लुटता है। साधारण बुखार और तकलीफ होने पर दो-चार यहां के डाक्टर जरूर कराएंगें। उस जांच का कोई दूसरा कारण नहीं बल्कि सेटिंग वाली दुकान को फायदा पहुंचाने का मकसद होता है और वही पैसा लौटकर डाक्टर के पास कमीशन के रूप में पहुंचता है।

डॉक्टर कॉलोनी के सरकारी निवास बन गए क्लिनिक

रीवा के डॉक्टर कॉलोनी में सभी सरकारी चिकित्सकों के लिए शासन ने निवास उपलब्ध कराएं हैं। पर यहाँ के रिहायशी भवनों को चिकित्सकों ने क्लिनिक बनाकर रख दिया, हर घर में क्लिनिक और सैकड़ों की संख्या में इलाज के लिए मरीजों की भीड़। अधिकाँश चिकित्सकों ने तो मरीजों के हित को ध्यान में रखते हुए घर में ही पैथॉलॉजी की भी व्यवस्था करवा रखी है। पैथॉलॉजी संचालक भी बिना किसी डर के उनके यहाँ अपना काम करते है। उसे किंचित भी पकडे जाने का डर नहीं होता, बचाएंगे तो साहब ही, कमीशन भी तो उन्ही को जाता है।

यहां नहीं होता सरकारी निर्देशों का पालन

सरकार का निर्देश है कि कोई भी सरकारी डाक्टर निजी नर्सिंग होम में मरीज नहीं देख सकता है। प्रदेश के मुख्यमंत्री गरीबों के लिए हर दिन बाते करते हैं लेकिन संजय गांधी अस्पताल के डाक्टरों की मनमानी पर लगाम कैसे लगेगी। गरीब किस तरह प्रताड़ित किया जाता है, यह कोई देखने वाला नहीं है। किस तरह से धरती का भगवान कहे जाने वाला डाक्टर कमीशन खोरी का खेल गरीबों के साथ खेलता है। गरीब, मजबूर, असहाय को परेशान करते हैं। चिकित्सक अपनी पर्ची में दवाई की दुकान का नाम चिपका रहे हैं। यह खेल कब बंद होगा यह समझ में नहीं आ रहा है। शासन प्रशासन की नजर इधर नहीं पड़ रही है।

Aaryan Dwivedi

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